मैं भी गीत सुना सकता हूँ , शबनम के अभिनन्दन के,
मैं भी ताज पहन सकता हूँ नंदन वन के चन्दन के
लेकिन जब तक पगडण्डी से संसद तक कोलाहल है
तब तक केवल गीत लिखूंगा जन गन मन के क्रंदन के
जब पंछी के पंखो पर हो पहरे बम और गोली के
जब पिंजरे में कैद पड़े हो सुर कोयल की बोली के
जब धरती के दामन पर हो दाग लहू की होली के
कोई कैसे गीत सुना दे बिंदिया कुमकुम रोली के
मैं झोपड़ियों का चारण हूँ आंसू गाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ
अन्धकार में समां गए जो तूफानों के बीच जले
मंजिल उनको मिली कभी जो चार कदम भी नहीं चले
क्रांतिकथा में गौण पड़े है गुमनामी की बाहों में
गुंडे तस्कर तने खड़े है राजमहल की राहों में
यहाँ शहीदों की पावन गाथाओं को अपमान मिला
डाकू ने खादी पहनी तो संसद में सम्मान मिला
राजनीति में लोह पुरुष जैसा सरदार नहीं मिलता
लाल बहादुर जी जैसा कोई किरदार नहीं मिलता
ऐरे गैरे नत्थू खैरे तंत्री बनकर बैठे है
जिनको जेलों में होना था मंत्री बनकर बैठे है
लोकतंत्र का मंदिर भी बाज़ार बनाकर डाल दिया
कोई मछली बिकने का बाज़ार बना कर डाल दिया
अब जनता को संसद भी प्रपंच दिखाई देती है
नौटंकी करने वालों का मंच दिखाई देती है
पांचाली के चीर हरण पर जो चुप पाए जायेंगे
इतिहासों के पन्नो में वे सब कायर कहलाये जायेंगे
कहाँ बनेंगे मंदिर मस्जिद कहाँ बनेगी रजधानी
मंडल और कमंडल पी गए सबकी आँखों का पानी
प्यार सिखाने वाले बस ये मजहब के स्कूल गए
इस दुर्घटना में हम अपना देश बनाना भूल गए
कहीं बमों की गर्म हवा है और कहीं त्रिशूल जले
सांझ चिरैया सूली टंग गयी पंछी गाना भूल चले
आँख खुली तो पूरा भारत नाखूनों से त्रस्त मिला
जिसको जिम्मेदारी दी वो घर भरने में व्यस्त मिला
क्या यही सपना देखा था भगत सिंह की फ़ासी ने?
जागो राजघाट के गाँधी तुम्हे जगाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ
जो अच्छे सच्चे नेता है उन सबका अभिनन्दन है
उनको सौ सौ बार नमन है मन प्राणों से वंदन है
जो सच्चे मन से भारत माँ की सेवा कर सकते है
हम उनके कदमो में अपने प्राणों को भी धर सकते है
लेकिन जो कुर्सी के भूखे दौलत के दीवाने है
सात समुंदर पार तिजोरी में जिनके तहखाने है
जिनकी प्यास महासागर है भूख हिमालय पर्वत है
लालच पूरा नीलगगन है दो कौड़ी की इज्जत है
इनके कारण ही बनते है अपराधी भोले भाले
वीरप्पन पैदा करते है नेता और पुलिस वाले
केवल सौ दिन को सिंघासन मेरे हाथों में दे दो
काला धन वापस न आये तो मुझको फांसी दे दो
जब कोयल की डोली गिद्धों के घर में आ जाती है
तो बागला भगतो की टोली हंसों को खा जाती है
जब जब भी जयचंदो का अभिनन्दन होने लगता है
तब तब सापों के बंधन में चन्दन रोने लगता है
जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है
तो माँ की अर्थी बेटों को भारी लगने लगती है
जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते है
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते है
सिंघो को म्याऊँ कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है
बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता तो दिल्ली में है
कहते है कि सच बोलो तो प्रण गवाने पड़ते है
मैं भी सच्चाई को गाकर शीश कटाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ
कोई साधू सन्यासी पर तलवारे लटकाता है
काले धन की केवल चर्चा पर भी आँख चढ़ाता है
कोई हिमालय ताजमहल का सौदा करने लगता है
कोई यमुना गंगा अपने घर में भरने लगता है
कोई तिरंगे झंडे को फाड़े फूके आज़ादी है
कोई गाँधी को भी गाली देने का अपराधी है
कोई चाकू घोप रहा है संविधान के सीने में
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में
कोई ढाँचे का गिरना यूएनओ में ले जाता है
कोई भारत माँ को डायन की गाली दे जाता है
कोई अपनी संस्कृति में आग लगाने लगता है
कोई बाबा रामदेव पर दाग लगाने लगता है
सौ गाली पूरी होते ही शिशुपाल कट जाते है
तुम भी गाली गिनते रहना जोड़ सिखाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ
( हरीओम पंवार जी की कविता )
1 टिप्पणी :
Very nice post.....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.
***HAPPY INDEPENDENCE DAY***
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