रविवार, 3 जुलाई 2022

कानुनपालिका की गरिमा को गिराने पर क्या कार्यवाही होगी !

 भारतीय जनमानस में कानुनपालिका को लेकर एक छवि बनी हुयी थी कि कानुनपालिका में बैठे जज गवाहों के बयान,सबूत और मामले की गंभीरता को देखते हुए फैसले करते हैं ! लेकिन अभी हाल ही में सुप्रीमकोर्ट के जज नें जिस तरह से मौखिक टिपण्णीयां करके नुपुर शर्मा की याचिका को वापिस लेनें के लिए मजबूर किया उससे कई गंभीर सवाल खड़े हो गए और भारत के लोगों में पहले से जो धारणा बनी हुयी थी उसको गहरा आघात लगा है ! कानुनपालिका का पूरा ढांचा लोगों के विश्वास पर ही टिका हुआ है और उस विश्वास पर जज की टिपण्णीयों नें गहरी चोट की है ! 

 

कानुनपालिका की गरिमा के कारण देश के लोग इसमें बैठे लोगों पर सवाल उठाने से बचते हैं लेकिन इन जज महोदय नें तो उसी गरिमा को गहरी चोट पहुँचाने का कार्य किया है और लोग पूरी कानुनपालिका को सवालों के घेरे में खड़े कर रहे हैं इस बात का संज्ञान लेकर चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया को लेकर कानुनपालिका की गरिमा को बचाने का कार्य करना चाहिए ! ऐसा नहीं है कि केवल इन्हीं जज महोदय नें कानुनपालिका की गरिमा को गिराने का कार्य किया है इससे पहले भी कई ऐसे मामले लोगों के बीच आये हैं जिनको लेकर लोग आज भी सवाल करते हैं ! आतंकी के लिए आधी रात को अदालत बिठाना हो या निचली अदालत में सलमान को मिली सजा के अगले आधे घंटे में हाईकोर्ट से जमानत मिलना हो जैसे कई मामले आज भी जनता के जहन में जिन्दा है और कानुनपालिका का जिक्र आते ही लोग इनका जिक्र कर बैठते हैं ! लेकिन इन जज महोदय नें जिस नुपुर शर्मा के मामले में बेवजह की निरर्थक टिप्पणीयां की उसका मामला अभी बेहद चर्चित मामला है और नुपुर शर्मा का समर्थन करने वाले दौ लोगों की मुस्लिम कट्टरपंथियों नें गले काटकर निर्मम हत्या कर दी गयी ! लोगों की हत्याओं को लेकर देश पहले से उबल रहा था ऊपर से इन जज महोदय नें उन्हीं मुस्लिम कट्टरपंथियों को प्रोत्साहित करने वाली टिपण्णीयां करके देश के लोगों को हतोसाहित करने वाला कार्य किया !  

गुरुवार, 5 अगस्त 2021

क्या हॉकी के फिर से अच्छे दिन आयेंगे !


भारत के राष्ट्रीय खेल हॉकी में भारतीय हॉकी टीम नें टोक्यो ओलम्पिक २०२० में जर्मनी को हराकर कांस्य पदक हासिल करके देश को गौरंवान्वित किया है ! १९२८ से १९८० तक ८ बार स्वर्ण पदक हासिल करने वाली भारतीय हॉकी टीम पिछले ४० वर्षों में पदक के लिए तरस गयी थी ! इतने वर्षों बाद पदक का सुखा ख़त्म करके भारतीय हॉकी टीम नें हॉकी के सुनहरे दिन आने की एक आशा की किरण जगाई है और बधाई योग्य कार्य किया है !  

बधाई के हकदार उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जी भी है जिन्होंने हॉकी फेडरेशन के जब बुरे दिन चल रहे थे तब भारतीय हॉकी टीम के प्रायोजक बनना स्वीकार किया और हॉकी को वो सुविधाएं मुहैया करवाई जो खिलाड़ियों को चाहिए थी ! २०१२ में जब सहारा नें बीसीसीआई की क्रिकेट टीम के प्रायोजक बनने से किनारा कर लिया तो सहारा के बुरे दिन आने भी शुरू हो गए थे क्योंकि क्रिकेट नेताओं का सबसे ज्यादा दखल वाला पसंदीदा खेल था ! और कहा तो यहाँ तक जाता है कि सहारा की बर्बादी का कारण भी वो फैसला रहा जिसमें वो क्रिकेट टीम के प्रायोजन से अलग हो गयी !

२०१८ आते आते सहारा की हालत इतनी खराब हो चुकी थी कि उसको हॉकी टीम के प्रायोजन से भी मज़बूरी में अलग होना पड़ा और इतने बड़े देश में दूसरा कोई व्यापारिक संस्थान हॉकी को प्रायोजित करने के लिए सामने नहीं आया ! हॉकी फेडरेशन गहरे आर्थिक संकट से घिर गयी लेकिन केंद्र सरकार का भी दिल नहीं पसीजा और उसनें भी किसी तरह की सहायता देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई ! ऐसे में हॉकी के मसीहा बनकर उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक जी सामनें आये और उड़ीसा सरकार को हॉकी का प्रायोजक बनाया ! उन्होंने हॉकी का प्रायोजक बनना तो स्वीकार किया ही साथ ही हॉकी के लिए मुलभुत सुविधाएं मुहैया करवाने की तरफ भी ध्यान दिया ! हॉकी के लिए बनावटी घास के मैदान की बात हो या हॉकी विश्वकप की मेजबानी की बात हो उड़ीसा सरकार बिना प्रचार के अपनें काम में लगी हुयी है !

रविवार, 25 जुलाई 2021

कथित किसान आन्दोलन कब तक चलेगा !!

तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहा कथित किसान आन्दोलन क्या अनंतकाल तक चलता रहेगा क्योंकि इसको लेकर सरकार और आन्दोलनकर्ता दोनों ही गंभीर नहीं है ! सरकार शुरू में आंदोलनकारियों को जरुर तवज्जो दे रही थी लेकिन धीरे धीरे सरकार को भी समझ में आ गया कि इस आन्दोलन के साथ किसान नहीं जुड़ रहे ! इसलिए जो वार्ता चल रही थी उससे भी सरकार अलग हो गयी जबकि आन्दोलन के मुखिया इस मृगतृष्णा में जी रहे थे कि किसानों के नाम पर वो सरकार से सबकुछ मनवा लेंगे ! 
 
किसी भी आन्दोलन के सफल होने की पहली शर्त होती है जनता का साथ और जनता उनके साथ होती है जो ईमानदार हो और आन्दोलन से जुडी बातों की जानकारी हो ! देश में ७०% आबादी किसानों की है और जब उनके बीच से ही सबसे पहले आन्दोलन की शोभा बढाने राजनितिक दलों के कार्यकर्ता गाँवों से निकले तो किसानों को समझ में आ गया कि आन्दोलन राजनितिक है ! आन्दोलन के कर्ताधर्ताओं में जो थे वो राजनितिक मोहरे और नेता थे जो किसानों को यह बताने में नाकामयाब रहे कि इन कानूनों में गलत क्या है ! वो केवल कानूनों को वापिस लेने पर अड़े रहे और सरकार वार्ता कर रही थी तभी कुछ नयी और मांगे सरकार के सामनें रख दी ! 
 
कोई भी सरकार इतनी नासमझ नहीं होती है जितनी ये लोग समझ रहे थे और सरकार को समझ में आ गया था कि किसानों का समर्थन इनको मिल नहीं रहा और इनका मकसद केवल सरकार को झुकाना है ! इसीलिए सरकार नें दौ टुक कह दिया कि कानून वापिस नहीं होंगे केवल चर्चा कानून की उन बातों पर होगी जिन पर आपति है ! अब इनको पूरी जानकारी ही नहीं थी तो ये उससे बचना ही चाहते थे इसलिए कानून वापिस लेने की उसी मांग पर अड़े रहे और इनके आन्दोलन का सम्मानजनक अंत नहीं हो सका ! आन्दोलन को चलते महीनों बीत गए और अभी कोई रास्ता निकलेगा ऐसा लगता नहीं है क्योंकि अब सरकारी दमन एकमात्र रास्ता बचा है जिसको सरकार अपनाना नहीं चाहती ! 

गुरुवार, 8 जुलाई 2021

क्या रविशंकर प्रसाद की कुर्सी ट्विटर पर कारवाई ना करने के कारण गयी !

एक बात बार बार कही जा रही है कि रविशंकर प्रसाद जी को मंत्रीपद से इसलिए हाथ धोना पड़ा क्योंकि वो ट्विटर के खिलाफ कारवाई करने में विफल रहे लेकिन इस बात में मुझे जरा सी भी सच्चाई नजर नहीं आती ! और मुझे लगता है कि उनको मंत्रीपद से इसलिए हटाया गया क्योंकि वो ट्विटर के खिलाफ कारवाई करना चाहते थे और ट्विटर को नियम मानने के लिए बाध्य करने की कोशिश कर रहे थे ! 

 
 
ट्विटर मनमानी कर रहा था और वो उस कानून को नहीं मान रहा था जो शोसल मीडिया के लिए लागू किया था इसीलिए वो ट्विटर पर कारवाई करना चाह रहे थे लेकिन कोई ऐसा था जो उनको यह करने नहीं दे रहा था ! अब वो कोई ऐरा गैरा तो होगा नहीं कोई ऐसा व्यक्ति ही होगा जो मंत्री को कारवाई करने से रोक सकता था ! अगर ऐसा नहीं होता तो रविशंकर प्रसाद जी शोसल मीडिया पर ट्विटर के खिलाफ नहीं लिखते क्योंकि कोई अपनी नाकामी का ढोल थोड़े ही पीटता है ! 


रविशंकर प्रसाद ट्विटर से खासे नाराज थे लेकिन कारवाई करने में असमर्थ इसीलिए वो शोसल मीडिया के जरिये ट्विटर के मनमाने तरीके का विरोध कर रहे थे ! जबकि पता उनको भी था कि सवाल उन्हीं पर ही उठने वाले हैं लेकिन वो ये जताना भी चाह रहे थे कि वो चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं और अब तो ट्विटर मुझे भी नहीं बख्स रहा ! क्योंकि उनका एकाउंट भी एक घंटे के लिए ट्विटर नें सस्पेंड कर दिया और उससे पहले कुछ समय तक उनको कुछ भी लिखने से रोक दिया गया था ! 

सोमवार, 5 जुलाई 2021

कांग्रेसमय होता संघ परिवार !!


आज की भाजपा कांग्रेस के रास्ते पर चलने को आमादा है और आज स्थतियां बदल चुकी है संघ भाजपा के पीछे चलने पर मजबूर है ! २०१४ से पहले भाजपा में क्या होगा यह संघ तय करता था लेकिन फिर स्थतियाँ बदलती गयी और आज संघ भाजपा के पीछे चलने पर मजबूर हो गया है और वही कर रहा है जो भाजपा चाहती है ! यही वही संघ है जिसनें १९८० के दशक में जनसंघ से भाजपा बनने के बाद भाजपा को सेक्युरिज्म का रोग लगा था तो वीएचपी का गठन कर दिया था और भाजपा फिर से उसी रास्ते पर आने को मजबूर हो गयी थी ! पर उस समय संघ के सरसंघचालक अपनें अन्दर इतनी क्षमता रखते थे !

संघ के वर्तमान सरसंघचालक वैसे नहीं है २०१४ के बाद इन्होने वैसे भी ख़ामोशी अख्तियार कर ली थी फिर भी पुरानी आदत आसानी से नहीं छुटती तो गाहे बगाहे बयानबाजी तो कर ही देते थे ! ऐसी ही बयानबाजी में इन्होने बिहार चुनावों से ठीक पहले आरक्षण की समीक्षा वाला बयान दिया और भाजपा हार गयी तो भाजपा के कर्ताधर्ता तो ऐसे ही मौके की ताक में थे तो दोष इनको दे दिया ! उसके बाद तो ये पूरी तरह दबाव में आ गए और भाजपा के कर्ताधर्ताओं के अनुसार चलने के लिए बाध्य हो गए ! यह इनकी कमजोरी थी क्योंकि अतीत में संघ का उद्देश्य हिन्दूहित की बात करना था भाजपा को सत्ता दिलाना नहीं ! 

उसके बाद तो भाजपा के कर्ताधर्ताओं नें संघ से जिन संस्थाओं से उनके विरुद्ध आवाज उठ सकती थी उन सबको किनारे लगा दिया क्योंकि वो मुखिया को झुकाने में कामयाब हो गए तो उनको कौन रोक सकता था ! इसका परिणाम ये हुआ कि संघ के करोड़ों कार्यकर्ताओं की मेहनत बेकार हो गयी और संघ का अनुषंगी संघटन सत्ता पर काबिज तो हो गया पर वो संघ से ही ऊपर निकल गया ! १९२५ से लेकर २०१४ तक की मेहनत विफल हो गयी आज हिन्दुओं की रोने वाला कोई संघटन नहीं है ! 

शनिवार, 3 जुलाई 2021

गौमाता की सुध कब लेगी मोदी सरकार !!!

भाजपा विपक्ष में थी तब गौहत्या रोकने के लिए केन्द्रीय कानून की मांग करती थी लेकिन अब जब वो सत्ता में है तो इससे कन्नी काट रही है और इस पर बोलने से भी बच रही है ! सत्ता से बाहर थे तब सत्ता पाने के लिए गौमाता का सहारा लिया और सत्ता में आने पर उसी गौमाता को भूल गए ! इस मुद्दे पर तो भाजपा नें कांग्रेस से दौ कदम आगे बढ़कर काम किया और प्रधानमंत्री नें गौरक्षकों को गुण्डा तक कह दिया ! इसका मतलब है कि भाजपा अब गौमाता की सुध कभी नहीं लेने वाली है !



राजनितिक नेताओं की नियत को जनता कैसे पहचान सकती है क्योंकि इन्हीं नरेंद्र मोदी जी नें २०१४ के चुनावों से पहले पिंक रिवोल्यूशन कहकर गौहत्या पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा था लेकिन सत्ता में आये तो पिंक रिवोल्यूशन भूल गए और वही डॉलर इनको प्रिय हो गए जो कांग्रेस को थे ! ये तो कांग्रेस से भी दौ कदम आगे बढ़कर गौरक्षकों को गुंडा बताने में लग गए !

मोदी जी नें सत्ता में आने के बाद गौहत्या रोकने के लिए एक कदम नहीं उठाया जिससे ये लगे कि ये कुछ करेंगे क्योंकि कुछ करने की इनकी मंशा ही नहीं है ! कहा जाता है राजनीति में मुद्दे ख़त्म नहीं किये जाते तो ये भी ठीक उसी नक्शेकदम पर चल रहे हैं क्योंकि इनकी सोच है कि इन्हीं मुद्दों पर हमको ५० साल सत्ता मिलती रहे जो कभी होगा नहीं ! भाजपा को यह लगता है कि शुरू में कांग्रेस नें जिस तरह मुस्लिम लीग के मुकाबले हिन्दू पार्टी होने के कारण इतनी साल सत्ता भोग ली तो हम भी भोग लेंगे तो यह उसकी मुर्खता है क्योंकि समय बदल चूका है अब संचार साधन बढ़ गए !

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

सरकार की जन कल्याणकारी योजनायें छलावा है !

मोदी सरकार नें जन कल्याणकारी योजनाओं को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और इनके सहारे वोट भी बटोरे लेकिन उसकी नीतियों से ये जन कल्याणकारी योजनायें लोगों को फायदा देनें में नाकाम रही ! सरकार एक तरफ सहायता देने का दिखावा कर रही है तो दूसरी तरफ सहायता से कई गुना ज्यादा लेने में भी परहेज नहीं कर रही है ऐसे में सरकार को जन कल्याणकारी सरकार कैसे कहा जा सकता है !
 
सरकार नें बड़े जोर शोर से उज्ज्वलता योजना उन लोगों के लिए शुरू की जो गैस कनेक्शन लेने की हालत में नहीं थे और कनेक्शन लेनें के लिए सहायता दी ! लेकिन फिर सरकार लगातार गैस सिलेंडर के दाम बढ़ाती गयी और आज ६०-७० % उज्ज्वला योजना धारक सिलेंडर को रिफिल नहीं करवा रहे हैं ! २०१६ में जब गैस सिलेंडर के दाम ५०० रूपये के आसपास थी तब सरकार की नजर में उन लोगों की क्षमता उतना वहन करने की भी नहीं थी लेकिन २०२१ में उन्ही लोगों से सरकार ८५० रूपये के आसपास लेने लगी ! ५०० रूपये जब थे तो लोगों को १७०-१८० रूपये सब्सिडी भी मिलती थी जो खाते में आती थी लेकिन कोरोना काल में सरकार नें मई २०२० में चुपचाप सब्सिडी बंद कर दी ! 
 
सरकार नें गैस सब्सिडी बंद करने में भी बड़ा खेल किया जो सिलेंडर ७०० रूपये के आसपास बिक रहे थे तो उनकी दरें कम करके ६०० रूपये के भीतर ले आई और सब्सिडी बंद कर दी ! कोरोनाकाल में लोग घरों में बैठे थे तब सरकार नें चुपके से सब्सिडी बंद कर दी लोगों को पता सितम्बर में लगा तब सरकार नें तर्क दिया कि सब्सिडी और गैर सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमतों में अंतर नहीं है इसलिए सब्सिडी बंद कर दी ! सरकार का यह तर्क हास्यास्पद था क्योंकि सरकार ही तो इनकी कीमतें तय करती है तो एक समान कीमतें होने कैसे दी ! हालांकि सरकार बहाना ये भी बनाती है कि कीमतें कम्पनियां तय करती है लेकिन सच्चाई तो यह है कि वो कम्पनियां भी सरकारी है और सरकारी मर्जी से ही काम करती है ! चुनावों में वही कम्पनियां कीमतें बढाने से परहेज करती है और चुनाव गुजरने के साथ ही उपभोक्ताओं पर कहर बरपा देती है !

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

निजामुद्दीन मरकज के मामले में सरकार का रवैया समझ से परे है !

निजामुद्दीन मरकज द्वारा  इतना बड़ा अपराध करने के बावजूद सरकार उसके ऊपर कारवाई करने से बचना क्यों चाहती है यह समझ में नहीं आ रहा है ! सरकार मौलाना साद और ५-६ अन्य लोगों के ऊपर कारवाई करके इस मामले में लीपापोती ही करना चाहती है ! अगर सरकार की मंशा वाकई कारवाई की होती तो मरकज पर अभी तक बेन लग जाना चाहिए था लेकिन  ऐसा नहीं हुआ जिससे सरकार की मंशा पर शक होना लाजमी है ! 

मरकज मामले में सरकार की भूमिका पहले दिन से ही संदेह के घेरे में आ गयी थी जब खबर ये आई कि अमित शाह के कहने पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल मरकज के मौलाना साद को समझाने के लिए मरकज गए थे ! ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या सरकार को सब पहले से ही पता था और निचले स्तर के अधिकारियों के समझाने से मौलाना नहीं माने थे और सरकार नें अंतिम प्रयास के तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भेजा था ! अगर ऐसा था तो भी सरकार पर ही सवाल उठेंगे कि जो व्यक्ति या संस्था ऐसी संकटकालीन परिस्थति में भी किसी की नहीं सुन रही थी तो उसकी मिन्नतें करने की जगह कारवाई क्यों नहीं की गयी !

सोमवार, 28 नवंबर 2016

केशलेश पालिसी अनिवार्य हो या एच्छिक !!

नोटबंदी पर सरकार को व्यापक जनसमर्थन मिला और यह कोई साधारण बात नहीं थी कि इतने बड़े फैसले पर देश की जनता प्रधानमंत्री के साथ खड़ी हो गयी ! लालबहादुर शास्त्री जी के बाद मोदी जी पहले प्रधानमंत्री होंगे जिन्होनें देश से एक अपील की और जनता साथ खड़ी हो गयी ! लेकिन मुझे अब ये समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर मोदी सरकार इस समर्थन को गंवाना क्यों चाह रही है ! आखिर मोदी सरकार इतनी हड़बड़ी में क्यों है कि नोटबंदी की समस्या से जनता उबर ही नहीं पायी है और सरकार ई वालेट,केशलेश इकोनोमी और लेशकेश इकोनोमी को लागू करनें की दिशा में आगे बढ़ने लग गयी है !

अगर सरकार केशलेश इकोनोमी को प्रोत्साहित करती और लोग उससे अपनी इच्छा से जुड़ते चले जाते तब तो ये भी स्वागत योग्य बात होती लेकिन सरकार तो इसको जबरदस्ती लागू करवाना चाह रही है बिना इस बात की परवाह किये कि जनता इसके लिए तैयार है भी या नहीं ! हालांकि मोदी जी नें सीधे जनता से कभी यह नहीं कहा कि वो इसको अनिवार्य रूप से लागू कर रहें हैं लेकिन उन्ही की सरकार के कई मंत्रालयों नें इस तरह के फरमान जारी कर दिए ! अब सवाल उठता है कि क्या केवल सरकारी फरमानों से केशलेश अर्थव्यवस्था लागू हो जायेगी !

प्रधानमंत्री जी नें कल कहा था कि ई वालेट बस व्हाट्सअप चलाने जैसा ही है तो प्रधानमंत्रीजी अभी तक तो देश में कई लोगों को तो यही पता नहीं है कि मोबाइल कैसे चलता है तो व्हाट्सअप क्या होता है उनको यह जानकारी कैसे होगी ! हाँ यह अलग बात है कि आप ऑनलाइन जुडना ज्यादा पसंद करते हैं और लोग आपसे ऑनलाइन जुड़ते भीं है तो आपनें मान लिया हो कि सभी केशलेश लेनदेन कर सकते हैं ! वैसे प्रधानमंत्रीजी ई वालेट का उपयोग करनें के लिए इतना तो जरुरी ही होगा कि वो लिखा हुआ पढ़ पाए तो पहले पता तो कीजिये देश में कितनें निरक्षर हैं !

शुक्रवार, 25 नवंबर 2016

सरकार की नोटबंदी योजना में सुराख नजर आने लगे !!


सरकार नें नोटबंदी की जो योजना लागू की वो अच्छी तो थी जिसका लोगों नें स्वागत भी किया लेकिन अब सरकार की इस योजना में कई कमियां भी नजर आनें लगी है ! अगर सरकार नें इनकी तरफ ध्यान नहीं दिया तो फिर इतनी कवायद का कोई लाभ भी नहीं होने वाला है ! फिर ये योजना केवल और केवल जनता को परेशान करने वाली योजना ही बनकर रह जायेगी ! अब तक नोटबंदी की जो योजना अच्छी नजर आ रही थी अब उसमें कई सुराख भी नजर आनें लगे हैं !

अभी कल ही दिल्ली में सताईस लाख रूपये के नए नोट पकडे गए हैं तो ऐसे में ये सवाल उठना लाजमी है कि आम जनता को जब बड़े पैमाने पर नए नोट दिए ही नहीं जा रहे हैं तो इन लोगों को इतनें रूपये नए नोटों में कहाँ से मिल गए ! नए नोट बैंको और डाकघरों के जरिये ही जनता तक पहुंचाए जा रहें हैं तो जाहिर है जिनको लाखों की संख्या में नए नोट मिले हैं वो बैंकों या डाकघरों के जरिये ही मिले होंगे ! और इससे पहले भी इस तरह के एक दौ मामले सामनें आये थे जो इतने बड़े नहीं थे ! ऐसे में यह बात तो निकलकर सामनें आ ही रही है कि कुछ बैंककर्मियों नें कोई सुराख तो खोज ही लिया है ! 

देश के कुछ क्षेत्रों के लोगों को आयकर से छुट मिली हुयी है जिसका फायदा भी पुरानें नोटों को नए नोटों में बदलने के लिए उठाया जा रहा है ! अभी हाल ही में साढे तीन करोड़ के पुरानें नोटों का जो मामला सामनें आया उससे तो यही लग रहा है ! सरकार को सोचना चाहिए कि जो मामले सामनें आते हैं वो तो एक बानगी भर होती है असल में तो ऐसे मामले बहुतायत में होते हैं जो पकड़ में नहीं आते ! 

नोटबंदी का विरोध कितना जायज है !!

देश के प्रधानमंत्री नें पांच सौ और हजार के नोट बंद करने की घोषणा की जो कालेधन की अर्थव्यवस्था पर जबरदस्त प्रहार था ! लेकिन इतने अच्छे निर्णय पर भी देश की राजनैतिक पार्टियां एकजुट नहीं हो सकी और एकजुट होना तो दूर की बात है अधिकतर पार्टियां तो विरोध पर उतर आई हैं ! तो ऐसे में कई सवाल उठ खड़े होते हैं कि क्या राजनैतिक पार्टियों के लिए राजनीति देशहित से ज्यादा अहम है !

नोट्बंदी का फैसला अभूतपूर्व था जिसका हर तरफ स्वागत भी किया गया और जैसा कि फैसला सामने आने के बाद ही पता चल गया कि जनता को अगले कुछ दिन परेशानी हो सकती है और जनता भी परेशानी सहने के लिए तैयार हो गयी थी ! लेकिन इस फैसले के बाद वो राजनैतिक पार्टियां विरोध में उतर आई जो केन्द्र में सत्ता में नहीं हैं और इसके कई नुकशान सामने आ रहें हैं ! इस राजनितिक विरोध के चलते सरकार लचीली हो गयी और कई जगहों पर पुराने नोटों को लेने की समयसीमा लगातार बढाती जा रही है ! जिसके परिणामस्वरुप ये हो रहा है कि कई कालेधन वाले अपनें नोटों को नए नोटों में तब्दील कर रहे हैं ! 

इसमें कोई शक नहीं कि सरकार की मंशा अच्छी थी लेकिन सरकार के फैसले में कई कमियां भी रही है इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है ! सरकार भले ही नोट वर्तमान व्यवस्था के तहत बदलती लेकिन उसको एक नियम ये बनाना था कि जिन लोगों के पास पुराने नोट जिस संख्या में है उनका स्पष्टीकरण एक सप्ताह में जमा करवाया जाए ! लेकिन सरकार नें ये नहीं किया जिसका परिणाम सामनें है कई लोग सोने , गरीबों के खाते और जिन लोगों को आयकर में छुट मिली हुयी है उनके जरिये अपने कालेधन के रूप में जमा पुराने नोटों को नए नोटों में बदलते जा रहे हैं !

सोमवार, 21 मार्च 2016

इलेक्ट्रोनिक मीडिया की विश्वनीयता !!

भारतीय लोकतंत्र में मीडिया को चौथे खम्भे के तौर पर जाना जाता है ! लेकिन वो चौथे खम्भे के तौर पर ही माना जा सकता है जब तक उसकी विश्वनीयता बची रहे ! लेकिन आज सवाल उसकी इसी विश्वनीयता पर ही उठ खड़े हुयें हैं ! इलेक्ट्रोनिक मीडिया के सामनें तो आज सबसे बड़ा संकट विश्वनीयता का ही है क्योंकि तेजी से ख़बरों को दिखाने की हड़बड़ी और राजनितिक झुकाव नें आज इसके सामनें विश्वनीयता का संकट खड़ा कर दिया है ! 

इलेक्ट्रोनिक मीडिया के हर चेन्नल का राजनितिक विचारधारा के प्रति झुकाव तो अब कोई नई बात रह ही नहीं गयी है ! लेकिन पिछले दिनों हुयी दादरी और जेनयु जैसी घटनाओं में यह राजनितिक विचारधारा का झुकाव हर सीमा को लांघ गया ! दादरी घटना के बाद असहिष्णुता शब्द को प्रायोजित करनें में इलेक्ट्रोनिक मीडिया के कुछ चेन्न्लों नें हर हद को पार कर दिया ! जहां आमजन के बीच पूरी सहिष्णुता थी वहीँ मीडिया चेन्न्लों के कार्यालयों में असहिष्णुता की मानो बाढ़ ही आ गयी हो ! वर्तमान में पूरी राजनितिक विचारधारा यूपीए और एनडीए दौ तबकों में बंटी हुयी है वैसे ही पूरा मीडिया ही दौ तबकों में बंट गया था ! 

गुरुवार, 29 जनवरी 2015

हिंदी क्या कभी न्याय की भाषा बन पाएगी !!

कुछ दिन पहले भारत सरकार नें सर्वोच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालयों में हिंदी लागू करने के प्रश्न को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में जो हलफनामा दायर किया था ! जिसका जिक्र अखबारों के पन्नों पर तो हुआ लेकिन उन इलेक्ट्रोनिक मीडिया चेन्न्लों की सुर्खियाँ नहीं बन सका जो अपनें को सबसे बड़े हिंदी समाचार चेन्नल होने का दावा जताते रहते हैं ! सरकारी हलफनामे में वही बातें थी जो आज तक अंग्रेजी को लागू रखने के समर्थक कहते रहे हैं ! 

सरकार उसी हलफनामे में यह कहती है कि हर एक न्यायालय और जनता को उच्च न्यायालय के फैसलों और आदेशों को जानने का अधिकार है और अभी अंग्रेजी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसमें यह काम हो सकता है ! सरकार का यह भी कहना है कि अभी तक कानून की किताबें ,वाद विवाद और केस स्टडी सब अंग्रेजी में होतें हैं इसलिए अगर अभी हिंदी को जबरन लागू किया गया तो न्यायिक प्रक्रिया की गुणवता फार असर पड़ सकता है ! 

जहां तक इस हलफनामे में सरकार सर्वोच्च न्यायालयों के फैसलों को जानने के अधिकार की बात कह रही है वो अपनें आपमें हास्यास्पद ही है ! सरकार नें अदालतों और जनता को एक ही नजर से देखने का कार्य किया है जो सही नहीं है ! क्योंकि अदालतें तो अंग्रेजी में सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को जान सकती है और समझ सकती है लेकिन जनता का एक बड़ा वर्ग इस कसौटी पर खरा नहीं उतरता है ! उसकी मूल भाषा अंग्रेजी नहीं है और ना ही वो अंग्रेजी पढ़ सकता है और ना ही समझ सकता है ! ऐसे में उस बहुसंख्यक जनता के अधिकार को क्यों नकारा जा रहा है !

सोमवार, 22 दिसंबर 2014

क्या भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया हिन्दुविरोधी एजेंडे पर काम कर रहा है !!

भारत का मीडिया ( मेरा यहाँ मीडिया से तात्पर्य केवल इलेक्ट्रोनिक मीडिया से है ) क्या किसी छुपे एजेंडे पर काम कर रहा है ! अगर विगत में और वर्तमान में घटित घटनाओं पर नजर डालें तो आपको आभास हो जाएगा कि भारतीय मीडिया हिंदू विरोधी एजेंडे पर काम कर रहा है ! अभी हाल ही में आगरा में हुए धर्मान्तरण को लेकर मीडिया नें जिस तरह से आक्रामक प्रदर्शन किया और हिंदू संघटनों से जुड़े लोगों के बयानों को आपतिजनक कहकर प्रसारित किया गया जबकि एक भी बयान आपतिजनक नहीं था ! किसी नें भी यह नहीं कहा कि हम जबरन धर्मांतरण करवाएंगे ! उससे कई सवाल उठ खड़े हुए हैं और उन सवालों के घेरे में खुद मीडिया है ! और जाहिर है उन सवालों का जबाब मीडिया की तरफ से नहीं आएगा क्योंकि आज तक ऐसा नहीं हुआ है कि दूसरों से सवाल करने वाले मीडिया नें कभी अपनें ऊपर उठ रहे सवालों का जबाब दिया हो ! 

आगरा और बलसाड में हुयी धर्मान्तरण की घटना क्या भारत में हुयी पहली धर्मान्तरण की घटनाएं थी जिस पर मीडिया इतना हल्ला मचा रहा है !  और वही मीडिया एत्मादपुर और भागलपुर पर ख़ामोशी क्यों धारण कर लेता है ! कहा जा रहा है कि आगरा में लालच देकर धर्म परिवर्तन करवाया गया तो यही आरोप तो एत्मादपुर में भी लग रहें हैं ! तो मीडिया क्या एत्मादपुर और भागलपुर पर इसलिए चुप्पी साध लेता है क्योंकि वहाँ हिंदुओं का धर्मांतरण होता है और आगरा और बलसाड में ईसाईयों और मुस्लिमों का धर्मान्तरण होता है इसीलिए आक्रामक हो जाता है ! इसाई मिशनरियां आजादी के पहले से धर्मान्तरण में लगी हुयी है और आजादी के बाद भी उनका धर्म परिवर्तन का अभियान जारी रहता है और उस पर खर्च करनें के लिए भारी धनराशि विदेश से आती है ! अगर एक अखबार की खबर पर विश्वास किया जाए तो हर साल करीब १०५०० करोड़ रूपये विदेश से आनें की जानकारी तो सरकारी खुफिया एजेंसियों को भी है जिसकी रिपोर्ट वो सरकार को सौंप चुकी है !  उस पर यही मीडिया आँखे मुंद लेता है ! 

पूर्वोतर भारत में आदिवासी जनजातियों का बड़े पैमाने पर ईसाई मिशनरियों नें धर्मांतरण कर दिया और लोभ और लालच के बल पर यह सब किया गया लेकिन कभी मीडिया का इस पर आक्रामक रवैया नजर आना तो दूर की बात है कभी चर्चा तक नहीं की ! वैसे भी महज कुछ अपवादों को छोड़ दे तो धर्मान्तरण का जरिया लोभ,लालच और दबाव ही रहा है ! स्वेच्छा से धर्मान्तरण उसको माना जाता है जिसमें व्यक्ति जिस धर्म में जाता है उसका अध्ययन करता है और उसमें अच्छाई नजर आती है ! जबकि धर्मान्तरण की असली हकीकत यह होती है कि जिनको धर्मान्तरित किया जाता है उनको तो उस धर्म का क,ख,ग भी नहीं मालुम होता है तो उसको स्वेच्छा से किया हुआ धर्मांतरण कैसे माना जा सकता है ! जाहिर है सच सामने आये या ना आये लेकिन ऐसे धर्मान्तरण के पीछे दबाव,लोभ,लालच ही होता है !

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

आधार अथवा निराधार !!

भारत सरकार आधार कार्ड को अनिवार्य जैसा ही करती जा रही है जबकि पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय नें स्पष्ट तौर पर सरकार को कहा था कि आधार कार्ड अनिवार्य नहीं किया जा सकता है ! और तत्कालीन सरकार नें भी सर्वोच्च न्यायालय में यही कहा था कि आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है ! तब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी नें तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी पर निशाना साधते हुए आधार कार्ड को जनता के पैसे की फिजूलखर्ची बताया था ! लेकिन उन्ही नरेंद्र मोदी जी नें जब सत्ता संभाली तो उसी फिजूलखर्ची को बदस्तूर जारी रखा ! जबकि आधार कार्ड बनाने को लेकर कई तरह की खामियां तो समय समय पर उजागर होती ही रही है साथ ही कई विशेषज्ञ इसको सुरक्षा के लिए खतरा भी मान रहे हैं !

अब भारत का गृह मंत्रालय कह रहा है कि आधार कार्ड को पते की प्रमाणिकता अथवा नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं माना जा सकता है ! अब सरकार द्वारा जनता को यह बताना चाहिए कि जब सरकार की नजर में आधार कार्ड ना तो भारतीय नागरिक होनें का और ना ही कहीं का मूलनिवासी होनें का वैध दस्तावेज है तो फिर इस तरह के निराधार कार्ड को बनाने का औचित्य क्या है ! क्यों जनता के पैसे को पानी की तरह बहाया जा रहा है ! जबकि पहले से ऐसे दस्तावेज़ मौजूद थे जो मूलनिवासी होनें के प्रमाणपत्र तो माने ही जाते रहे हैं तो फिर क्यों इस तरह के एक नए निराधार कार्ड को बनवाने के लिए लोगों को मजबूर किया जा रहा है ! जान बूझकर जनता के पैसे की बर्बादी का इससे बड़ा उदाहरण मेरी नजर में हो नहीं सकता !

एक तरफ सरकार सभी भारतियों के बायोमेट्रिक ब्योरे आधार कार्ड के नाम पर इकट्ठा कर रही है जो अगर चोरी हो जाते हैं तो आगे जाकर भारतीय नागरिकों के लिए मुसीबत खड़ी कर सकते हैं ! खासकर ख़ुफ़िया सेवाओं से जुड़े लोगों के लिए तो निश्चित ही ये ब्योरे चोरी होनें की दशा में मुसीबत का कारण बन ही सकते हैं ! तो दूसरी तरफ आधार कार्ड का कोई आधार ही सरकार के पास है ! सरकार तमाम आशंकाओं के बावजूद अनवरत रूप से आधार कार्ड बनाती जा रही है जबकि पिछले दिनों हनुमानजी का आधार कार्ड सामने आने के बाद ये तो पता चल ही गया कि आधार कार्ड बनाने वाली कम्पनी इसको बनाने में कितनी सावधानी बरतती है ! इस तरह की ख्यामखाली के बावजूद सभी देशवासियों के बायोमेट्रिक ब्योरे इकट्ठा करना कहाँ तक सही है इसका जबाब अभी तक सरकार के पास भी नहीं है !

रविवार, 14 सितंबर 2014

हिंदी दिवस : मन की व्यथा शब्दों की जुबानी !!

हर साल १४ सितम्बर को हिंदी दिवस आता है तो हिंदी प्रेमियों का मन एक ऐसी टीस ,ऐसी पीड़ा से भर जाता है जिसका अंत होनें का रास्ता दूर दूर तक दिखाई नहीं देता है ! हिंदी दिवस भी पितृ पक्ष के आस पास ही आता है और ऐसा लगता है जैसे पितृ पक्ष के दौरान जिस तरह से पूर्वजों को याद करते हैं उसी तरह से सरकारों द्वारा हिंदी दिवस के दिन हिंदी को याद कर लिया जाता है ! फिर पूरी साल हिंदी के नाम पर कुछ नहीं होता है ! आजादी के बाद जब से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया है तब से हिंदी के साथ यही हो रहा है !

इसमें कोई शक नहीं कि हिंदी का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है और हिंदी की अपनीं पहचान बढती भी जा रही है ! लेकिन हिंदी की सरकारी अवहेलना नें हिंदी को राष्ट्रभाषा के दर्जे से अभी तक वंचित कर रखा है जिसके कारण हिंदी आज भी अनिश्चय की स्थति में है ! देश में हिंदी बोलनें और लिखनें वालों की संख्या सबसे ज्यादा है ! फिर भी आज भी हिंदी के लिए संघर्ष की स्थति है तो इसका एक ही कारण है कि कुछ अंग्रेजी मानसिकता वाले लोगों नें एक ऐसा जाल बुन दिया है जिसको कोई आसानी से तोड़ नहीं पाए ! 

पिछले दिनों संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में सीसेट को लेकर विवाद हुआ था उसनें एक बात साफ़ कर दी थी कि कुछ लोग येनकेनप्रकारेण अंग्रेजी के वर्चस्व को बनाए रखना चाहते हैं ! नरेन्द्रमोदी जी नें जिस तरह से हिंदी को लेकर एक रवैया अपनाया है उसके बाद कुछ आशा की किरण तो दिखाई देती है लेकिन अभी मंजिल का कोई अता पता नहीं है ! कुछ राजनेता ऐसे भी है जिनकी राजनीति हिंदी विरोध पर ही चलती है और जब जब हिंदी की बात आएगी ये राजनेता सदैव विरोध में खड़े हो जायेंगे !

सोमवार, 8 सितंबर 2014

मोबाइल कंपनियां क्या टूजी घोटाले का नुकशान आम उपभोक्ता से वसूल रही है !!

मोबाइल कंपनियां क्या टूजी घोटाले का नुकशान आम उपभोक्ता से वसूल रही है या फिर सरकार द्वारा मोबाइल कंपनियों को खुली लूट की छुट दे दी गयी है ! अगर पिछले कुछ समय से मोबाइल कंपनियों द्वारा टूजी डाटा पैक की बढती हुयी कीमतों पर नजर डालें तो ऐसा ही कुछ नजर आ रहा है ! अगर आप दौ साल पहले के डाटा पैक और आज के डाटा पैक की तुलना करेंगे तो पायेंगे कि लगभग चारसौ प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की जा चुकी है और समयावधि में की गयी कटौती को जोड़कर हिसाब लगाया जाए तो यह बढ़ोतरी और भी ज्यादा हो जायेगी ! आखिर अचानक ऐसा क्या हो गया जो ये कंपनियां लगातार बढोतरी करती जा रही है !

आज से दौ साल पहले तक तमाम कंपनियों के टूजी डाटा पैक छियानवे रूपये से लेकर निनानवे रूपये तक के थे जिसमें दौ जीबी तक डाटा उपयोग में लेनें की सुविधा होती थी और समयावधि भी ३० दिन की होती थी ! आज उसी अठानवे रूपये के पैक पर ये कंपनियां ५०० एमबी डाटा उपयोग की सुविधा दे रही है और समयावधि २० दिन की दे रही है ! और आप अगर एक जीबी का पैक लेंगे तो आपको १५५ रूपये के आसपास पड़ेगा ! सरकारी कंपनी बीएसएनएल नें तो थ्रीजी के नाम पर टूजी डाटा पैक को ही खत्म कर दिया है और उसका थ्रीजी पैक आप लेंगे तो उसकी स्पीड वही मिलेगी जो पहले टूजी पैक के समय मिलती थी ! वैसे ये बढ़ोतरी का खेल लगातार जारी है ! कभी कीमतों में बढ़ोतरी की जाती है और कभी समयावधि में कमी कर दी जाती है लेकिन दोनों ही परिस्थितियों में नुकशान उपभोक्ता का ही होता है और फायदा कंपनियों को ही मिलता है !

क्या दौ साल के भीतर इन कंपनियों का संचालन खर्च बढ़ गया है जिसके कारण कंपनियां बढ़ोतरी करनें को मजबूर हो गयी ! इस पर यकीन नहीं किया जा सकता कि अचानक इनका संचालन खर्चा इतना बढ़ गया हो जिसके कारण ये कंपनियां आम उपभोक्ता के माथे पर बड़ा बोझ डाल रही है ! हाँ टूजी घोटाले में जो लाइसेंस रद्द हुए थे उसके कारण कुछ कंपनियों को उसका नुकशान उठाना पड़ा था लेकिन वो नुकशान इन कंपनियों द्वारा गैरकानूनी तरीके अपनाने के कारण उठाना पड़ा था और उसका संचालन खर्चे से कोई लेना देना नहीं था और वो नुकशान कंपनियों के माथे पर ही पड़ना चाहिए था ! 

गुरुवार, 4 सितंबर 2014

लव जिहाद : सच्चाई है या कपोल कल्पना है !!

आजकल मीडिया में लव जिहाद की चर्चा जोरों पर है लेकिन क्या लव जिहाद मीडिया की उपज है ! अगर हम इस शब्द की उपज पर ध्यान दें तो यह शब्द मीडिया की उपज नहीं है बल्कि शोशल मीडिया में लव जिहाद की चर्चा पहले से होती रही है ! लेकिन अब ये शब्द शोशल मीडिया की सीमाओं से होता हुआ राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियाँ बन चूका है ! रास्ट्रीय निशानेबाज तारा शाहदेव के मामले नें इसको राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियाँ बना दी ! सवाल ये उठता है कि क्या यह महज कपोल कल्पना है या फिर हकीकत में इसमें कुछ सच्चाई है !

जिस तरह से एक के बाद एक मामले सामने आ रहें हैं उसके बाद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ऐसा हो तो रहा है ! भले ही अभी कुछ ही मामले सामने आये हो लेकिन इस बात की और इशारा तो कर ही रहे हैं कि ऐसा कुछ घट तो रहा है जिसका निदान समय रहते हुए किया जाना बहुत जरुरी है ! वैसे भी इतिहास और वर्तमान देखा जाए तो येनकेनप्रकारेण इस्लामीकरण को बढ़ावा देनें की नीति रही है ! और इतिहास गवाह है कि जब बात इस्लामीकरण की आती है तो सही और गलत का फर्क भी मिट जाता है ! तैमूरलंग से लेकर औरंगजेब तक का शासनकाल और आज ईराक ,सीरिया में जो हो रहा है उससे इस बात को समझा जा सकता है !

कुछ लोग इसको प्यार से जोड़कर दख रहें हैं लेकिन इसको प्यार से जोड़ना ही गलत है ! प्यार कभी धोखा देना नहीं सिखाता है और निश्छल प्रेम को ही प्यार कहा जा सकता है ! वैसे इसको लव जिहाद की बजाय लव की आड़ में जिहाद कहना ज्यादा उपयुक्त होगा क्योंकि लव अंग्रेजी का शब्द है जिसका हिंदी अर्थ प्यार होता है ! प्यार में धोखा नहीं दिया जाता लेकिन यहाँ तो धोखा ही धोखा है ! जिहाद के नाम पर तो जो खूनखराबा दुनिया भर में हो रहा है वो दुनिया देख रही है इसीलिए इसको अगर प्यार की आड़ में जिहाद कहा जाए तो ज्यादा उपयुक्त शब्द होगा ! क्योंकि जिहाद के नाम पर दुनियाभर में चल रही गतिविधियां जिहाद की उस शब्दावली का खंडन करती है जो शब्दावली मुस्लिम बुद्धिजीवी सार्वजनिक मंचों पर देते हैं !

रविवार, 31 अगस्त 2014

उतरप्रदेश में लगातार बिगडती स्थतियाँ चिंताजनक है !!

उतरप्रदेश से जुड़े समाचारों को पढ़ते हैं तो एक ही सवाल दिमाग में उभरकर आ रहा है कि उतरप्रदेश किस रास्ते पर आगे बढ़ रहा है ! हर रोज कहीं ना कहीं से साम्प्रदायिक तनाव का समाचार अखबारों में रहता ही है ! उतरप्रदेश में जब से समाजवादी पार्टी की सरकार बनी है तब से ही वहां आपसी सौहार्द का वातावरण लगातार बिगड़ता जा रहा है ! एक तरफ आपसी भाईचारे का वातावरण बिगड़ता जा रहा है और दूसरी तरफ उतरप्रदेश सरकार अकर्मण्यता की शिकार है !

उतरप्रदेश सरकार की नाकामी नें लोगों के बीच एक ऐसा आशंकाओं का घेरा खड़ा कर दिया गया है जिसका परिणाम यह हो रहा है कि हर छोटी से छोटी घटना भी तनाव का कारण बन जाती है ! और आपसी विश्वास में जब कमी आती है तो ऐसा ही होता है क्योंकि तब एक सामान्य घटना में साजिश लगने लगती है ! और आज उतरप्रदेश में यही हो रहा है जिसके कारण छोटी छोटी घटनाएं आपसी तनाव में तब्दील हो रही है ! जिसमें पुलिस और कुछ अतिवादी तत्व बढ़ावा देनें का काम ही कर रहे हैं ! 

उतरप्रदेश सरकार और वहां की पुलिस का इकतरफा रवैया लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है जिसके कारण एक समुदाय में असुरक्षा का भाव पैदा हो गया है ! यही कारण है कि लोगों को अब प्रशासन पर कोई भरोसा नहीं रह गया है ! पिछले दिनों लव जिहाद पर जी न्यूज पर की गयी पड़ताल में यह बात भी सामने आई थी कि पुलिस लोगों की सुनवाई नहीं कर रही इसीलिए कुछ लोगों नें अपनें तरीके से निपटने के लिए संघटन बना लिए हैं जिनका दायरा बढ़ता जा रहा है ! ऐसी स्थतियाँ पैदा होना चिंता की बात है !

उतरप्रदेश सरकार  की अकर्मण्यता अथवा शिथिलता नें पुरे उतरप्रदेश में असुरक्षा का भाव पैदा कर दिया है जिसका निराकरण जल्दी करने की कोशिश नहीं की गयी तो स्थतियाँ लगातार बिगडती ही चली जायेगी और जितनी ज्यादा बिगड़ेगी संभालना उतना ही मुश्किल होता जाएगा !

सोमवार, 11 अगस्त 2014

हमास समर्थकों के तर्क अजीब होते हैं !

किसी कहने वाले नें सच ही कहा है कि आप सबसे ज्यादा मुर्ख तब बनते हैं जब आप सामने वाले को मुर्ख बनाने का प्रयास करते हैं ! यह बात छद्मवेशी धर्मनिरपेक्षतावादियों पर सटीक बैठती है ! हिन्दुस्तान में होनें वाली हर साम्प्रदायिक घटना का इमानदारी से विश्लेषण करने की बजाय ये लोग भाजपा,आरएसएस पर रटी रटाई तोहमत मढ़ देते हैं ! लेकिन उनके पास इस बात का कोई जबाब नहीं होता कि पाकिस्तान,बांग्लादेश म्यांमार ,चीन,रूस जैसे देशों में तो आरएसएस और भाजपा का कोई वजूद नहीं है फिर वहाँ इस तरह की घटनाएं क्यों होती है !

आपको इन लोगों का दोहरा चरित्र हर समय देखने को मिलेगा ! इजरायल द्वारा गाजा में हमास नामक आतंकवादी संघटन पर की जाने वाली कारवाई पर इनका विधवा विलाप आपको सुनने को मिल जाएगा लेकिन हमास द्वारा पहले इजरायल पर दागे जाने वाले रोकेटों और बम हमलों पर इनके मुख से आवाज तक नहीं निकलेगी ! अब इनसे कोई पूछे कि भाई क्या हमास जो रोकेट और बम हमले करता है तो क्या उनसे फुल बरसते हैं और इजरायल की मिसाइलों से आग बरसती है ! इजरायल का जो लोग समर्थन करते हैं उन लोगों को राक्षस,शैतान जैसे अलंकरणों से नवाजते हुए कहते हैं कि मासूमों और बेगुनाहों की हत्याएं करने वाले शैतान और राक्षस ही हो सकते हैं ! मानता हूँ कि बेगुनाहों और मासूमों की हत्याएं करना अपराध है लेकिन हमास जो हमले करता है उनमें भी तो मासूम और बेगुनाह ही मारे जाते हैं ! फिर हमास और हमास समर्थकों को इन अलंकरणों से क्यों नहीं नवाजा जाता है !