गुरुवार, 16 अगस्त 2012

नितीश बनाम मोदी और धर्मनिरपेक्षता !!

आजकल मीडिया नितीश बनाम मोदी के नाम पर धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता की लड़ाई में उलझा हुआ है और दोनों के छोटे से छोटे बयान को तूल देकर अपने मतलब निकालने में लगा हुआ है पुरे के पुरे दिन इनके एक बयान पर जाया कर रहे है न्यूज चेनलों वाले आखिर क्यों, कौन धर्मनिरपेक्ष है और कौन नहीं मीडिया इसी में लगा हुआ है !

आखिर यह लड़ाई है क्या और क्या वाकई धर्मनिरपेक्षता की ही लड़ाई है यह या फिर प्रधानमन्त्री पद पाने की नितीश कुमार की चाहत है ! और अगर धर्मनिरपेक्षता के नाम की ही लड़ाई है तो क्या आज की तारीख में कोई नेता और कोई भी पार्टी धर्मनिरपेक्ष है इस पर भी गौर करना जरुरी है !

किसी भी आदमी से धर्मनिरपेक्षता के परिभाषा पूछी जाए तो सबका एक ही जवाब होगा कि सभी धर्मो के प्रति तटस्थ रहना या फिर सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखना ही धर्मनिरपेक्षता है लेकिन क्या आज कोई भी नेता या पार्टी इस परिभाषा पर खरी उतरती है तो जवाब यक़ीनन नहीं में ही होगा !

एक भाजपा और शिवसेना को छोडकर तमाम पार्टियां मुस्लिम तुस्टीकरण के खेल में लगी हुयी है तथा भाजपा और शिवसेना हिंदू तुस्टीकरण का खेल खेल रही है तो ऐसे में किसी भी पार्टी को धर्मनिरपेक्ष कैसे माना जा सकता है जब सारा मामला इतना सुलझा हुआ है तो फिर आखिर मीडिया क्यों किसी को धर्मनिरपेक्षता का प्रमाणपत्र बाँट रहा है !

मीडिया के ऊपर समाज को सच बताने की और सबको सच्चाई का आयना दिखाने कि जिम्मेदारी है लेकिन आज मीडिया खुद सच्चाई का गला घोट रहा है ! मीडिया ने धर्मनिरपेक्षता की एक नयी परिभाषा गढ़ ली और वो परिभाषा है हिन्दुओं का तिरस्कार करने वाले या हिंदुओं का विरोध करने को ही मीडिया धर्मनिरपेक्षता मान रहा है अब यह तो मीडिया वाले ही जाने कि यह परिभाषा वो कहाँ से खोज कर लाये है ! दरअसल बात यह है कि हर आदमी कि अपनी एक मानसिकता होती है और अखबारों में तो सम्पादकीय का एक अलग पृष्ठ होता है लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया में ऐसा अलग से कुछ नहीं होता जहाँ पर संपादक अपनी भड़ास निकाल सके इसके लिए उन्होंने अपना एक नया रास्ता निकाल लिया और हर खबर पर अपनी मानसिकता थोप देते है और दुर्भाग्य से इलेक्ट्रोनिक मीडिया में ज्यादातर लोग हिंदू विरोधी मानसिकता से ही ग्रसित है जिसका उदहारण तो आसाम हिंसा के बाद एनडीटीवी के राजदीप सरदेसाई के ट्विट्टर मेसेज ने दे ही दिया !

धरमनिर्पेक्षता कि मीडिया कि परिभाषा को दरकिनार करके सही तौर पर आंकलन किया जाए तो कोई पार्टी धर्मनिरपेक्ष नहीं है और अगर नितीश कुमार धर्मनिरपेक्ष है तो मोदी भी धर्मनिरपेक्ष है और अगर कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष है तो फिर भाजपा भी धर्मनिरपेक्ष है क्योंकि आप यह आशा नहीं कर सकते कि एक पार्टी अगर धर्म के नाम पर धुर्वीकरण करती है तो दूसरी पार्टी वैसा नहीं करेगी ! अगर कोई पार्टी मुस्लिम वोटों का धर्म का सहारा लेकर धुर्वीकरण करेगी तो जाहिर है दूसरी पार्टी हिंदू वोटों का धुर्वीकरण करेगी ही !

इसलिए मीडिया को अपने अंदर झाँकने कि जरुरत है और अगर उसको अपनी विश्वनीयता बचानी है तो अपनी मानसिकता को दरकिनार करके खबर दिखाना चाहिए क्योंकि आज ज़माना बदल रहा है और ख़बरों का माध्यम केवल मीडिया ही नहीं रह गया है बल्कि शोशल मीडिया आज मीडिया से ज्यादा ताकतवर और जागरूक होता जा रहा है जहां पर कुछ ही समय में वो ख़बरें भी आ जाती है जिनको या तो मीडिया छुपाना चाहता है या फिर तोड़मरोड़कर अपने हिसाब से दिखाता है और मीडिया का असली चेहरा सामने आ जाता है !












6 टिप्‍पणियां :

sm ने कहा…

प्रभावपूर्ण

virendra sharma ने कहा…


धर्म निरपेक्षता राज्य की धर्म से पूर्ण अलहेदगी है .चर्च की राज्य से दूरी है .हमारे यहाँ तो राज पाट ही चर्च के एजेंट चला रहें हैं (लिंग पे ध्यान न दें ,इशारा समझें ),जहां चुनाव अभियान मंदिर से शुरु होतें हैं वहां कैसी और काहे की धर्म निरपेक्षता .धर्म निरपेक्षता में हज सब्सिडी का क्या मतलब होता है .शाहबानो का ?एक राज्य एक क़ानून एक संविधान ही नहीं है आप धर्म निरपेक्षता की क्या बात करतें हैं .बिना बात का क्षेपक जड़ दिया संविधान की मूल प्रस्तावना में धर्म निरपेक्ष शब्द था ही नहीं लेकिन इंदिरा जी कर गईं भारतीय धर्म -निरपेक्ष गण -राज्य .आज कितना भारतीय है कितना इतालवी सब जानतें हैं .चर्च की हुकूमत चल रही है हिन्दुस्तान में ऊपर से धर्म निरपेक्ष होने का तुर्रा .

रविकर ने कहा…

आज बनी निरपेक्षता, सत्ता के सापेक्ष |
आड़ धर्म का ले चतुर, लगा रहे आक्षेप |
लगा रहे आक्षेप, करे निज उल्लू सीधा |
चल नीतीश के तीर, अगर बीधा तो बीधा |
एक तीर से आज, शिकारी करे अनोखा |
देखे दिल्ली राज, बना ऊपर से चोखा ||

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह !
मीडिया तो सबसे ज्यादा धर्म निरपेक्ष है !

बेनामी ने कहा…

कोई भी व्यक्ति किसी भी सूरत में भी धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता चाहे वो कोई भी हो वैसे ये धर्मनिरपेक्षता ये शब्द भी गलत ही है क्यौन की ये आज तक अपरिभाषित है वैसे ये शब्द तो केवल कोङ्ग्रेस्सी हो के रह गया है और उतना ही संदेहास्पद है जितना की मनमोहन के आर्थिक सुधार......................



पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आपकी बात सत्य है कोई भी धर्मनिरपेक्ष हो ही नहीं सकता यहाँ तक कि पशु पक्षी भी अपना धर्म निभाते हैं तो मनुष्य धर्मनिरपेक्ष कैसे हो सकता है !!