जब १९६० में देश में खाधान संकट उपस्थित हुआ तो गरीबों को आवश्यक खाद्य वस्तुओं को सरकारी दरों पर उपलब्ध करवाने के लिए देश में जिस सार्वजनिक वितरण प्रणाली की शुरुआत हुयी और जैसा हर सरकारी योजना के साथ होता है वैसा ही इसके साथ हुआ शुरुआत में यह योजना बहुत कारगर और सफल रही लेकिन धीरे धीरे सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी भ्रष्टाचार पनपना शुरू हो गया और आज हालात ये है इस योजना पर सरकारी खजाने को तो भारी भरकम चुना लगता है लेकिन अगर सरकारी आंकडो के हिसाब से भी माना जाए तो सतावन प्रतिशत लोगों तक इसका लाभ नहीं पहुँचता है जबकि सरकारी आंकड़ों को अलग करके जमीनी सच्चाई देखे तो मुश्किल से इसका लाभ पच्चीस से तीस प्रतिशत लोगों तक ही पहुँचता है जो इस योजना पर सवाल खड़े करता है !!
सरकारों ने खुद इस योजना में आने वाले गरीबों का अलग अलग वर्गीकरण ( एपीएल,बीपीएल आदि )करके इस योजना में कई पेच डालने का काम किया जबकि सच्चाई यह है कि अभी तक खुद सरकार ही इस दुविधा में है कि वो किसको बीपीएल और एपीएल में रखे और गरीबी का वास्तविक पैमाना क्या हो और किस पैमाने को मानकर इसका वर्गीकरण करें तो आप खुद समझ सकते है कि इस योजना सहित अन्य जितनी भी सरकारी योजनाएं चल रही है उनकी सफलता की आशा करना सिवाय मूर्खता के और कुछ नहीं है !!
इस योजना के तहत केन्द्र सरकार हर राज्यों के गरीबों की संख्या को आधार मानकर अलग अलग राज्यों को उनका हिस्सा आवंटित करती है और उनका वो हिस्सा भारतीय खाध्य निगम उन राज्यों में अपने गोदामों तक पहुंचाता है इसके बाद उस खाध्यसामग्री ( इसमें अन्नाज और केरोसिन ही मुख्य होता है ) को आपूर्ति करने का जिम्मा राज्य सरकारों के पास चला जाता है जहां उन गोदामों से जिले के गोदामों तक पहुँचता है और वहाँ से अलग अलग तरीके से राशन की दुकानों तक पहुँचता है यह तो हुयी अन्नाज की बात और केरोसिन राशन की दुकानों तक पहुँचाने का काम हिन्दुस्थान पेट्रोलियम कार्पोरेशन लि.करता है !!
इस योजना में आवश्यक उपभोक्ता सामग्री राज्य के गोदामों से निकलकर जनता तक पहुँचने के बीच में ही जितनी लुट होनी होती है वो हो जाती है और जनता को पता ही नहीं चलता है और पता चल भी जाता है तो सरकार कोई कारवाई नहीं करती बल्कि कारवाई के नाम पर मामलों को इतना लंबा खिंच देती है कि शिकायतकर्ता के ही होंसले पस्त हो जाते है इसलिए अगर सरकार वास्तव में गरीबों को फायदा पहुँचाना चाहती है तो उसको वास्तविक गरीबी रेखा सुनिश्चित करनी होगी तथा उसके हिसाब से ही गरीबों की सूची पुरे देश से बनानी चाहिए और सब्सिडी की रकम को उनके बेंक खातों में सीधा जमा करवा देना चाहिए ! और राशन दुकानों को एक निश्चित कमीशन के तहत सामग्री उपलब्ध करवानी चाहिए जहां से जनता अपनी जरुरत के हिसाब से खरीद सके इससे इस सामग्री कि कालाबाजारी भी रुक जायेगी क्योंकि फिर बाजार मूल्य और सरकारी मूल्य में ज्यादा अंतर नहीं रहेगा तो कोई कालाबाजारी क्यों करेगा और सरकारी खजाने से जितना धन गरीबों के नाम से निकलेगा उतना पूरा का पूरा उसके वास्तविक हकदारों तक पहुँच जाएगा !!
सरकारों ने खुद इस योजना में आने वाले गरीबों का अलग अलग वर्गीकरण ( एपीएल,बीपीएल आदि )करके इस योजना में कई पेच डालने का काम किया जबकि सच्चाई यह है कि अभी तक खुद सरकार ही इस दुविधा में है कि वो किसको बीपीएल और एपीएल में रखे और गरीबी का वास्तविक पैमाना क्या हो और किस पैमाने को मानकर इसका वर्गीकरण करें तो आप खुद समझ सकते है कि इस योजना सहित अन्य जितनी भी सरकारी योजनाएं चल रही है उनकी सफलता की आशा करना सिवाय मूर्खता के और कुछ नहीं है !!
इस योजना के तहत केन्द्र सरकार हर राज्यों के गरीबों की संख्या को आधार मानकर अलग अलग राज्यों को उनका हिस्सा आवंटित करती है और उनका वो हिस्सा भारतीय खाध्य निगम उन राज्यों में अपने गोदामों तक पहुंचाता है इसके बाद उस खाध्यसामग्री ( इसमें अन्नाज और केरोसिन ही मुख्य होता है ) को आपूर्ति करने का जिम्मा राज्य सरकारों के पास चला जाता है जहां उन गोदामों से जिले के गोदामों तक पहुँचता है और वहाँ से अलग अलग तरीके से राशन की दुकानों तक पहुँचता है यह तो हुयी अन्नाज की बात और केरोसिन राशन की दुकानों तक पहुँचाने का काम हिन्दुस्थान पेट्रोलियम कार्पोरेशन लि.करता है !!
इस योजना में आवश्यक उपभोक्ता सामग्री राज्य के गोदामों से निकलकर जनता तक पहुँचने के बीच में ही जितनी लुट होनी होती है वो हो जाती है और जनता को पता ही नहीं चलता है और पता चल भी जाता है तो सरकार कोई कारवाई नहीं करती बल्कि कारवाई के नाम पर मामलों को इतना लंबा खिंच देती है कि शिकायतकर्ता के ही होंसले पस्त हो जाते है इसलिए अगर सरकार वास्तव में गरीबों को फायदा पहुँचाना चाहती है तो उसको वास्तविक गरीबी रेखा सुनिश्चित करनी होगी तथा उसके हिसाब से ही गरीबों की सूची पुरे देश से बनानी चाहिए और सब्सिडी की रकम को उनके बेंक खातों में सीधा जमा करवा देना चाहिए ! और राशन दुकानों को एक निश्चित कमीशन के तहत सामग्री उपलब्ध करवानी चाहिए जहां से जनता अपनी जरुरत के हिसाब से खरीद सके इससे इस सामग्री कि कालाबाजारी भी रुक जायेगी क्योंकि फिर बाजार मूल्य और सरकारी मूल्य में ज्यादा अंतर नहीं रहेगा तो कोई कालाबाजारी क्यों करेगा और सरकारी खजाने से जितना धन गरीबों के नाम से निकलेगा उतना पूरा का पूरा उसके वास्तविक हकदारों तक पहुँच जाएगा !!
2 टिप्पणियां :
आपकी सलाह से पूर्ण रूप से सहमत,,,,
सच्चाई लिए सुंदर प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,
RECENT POST ....: प्यार का सपना,,,,
Great analysis. I agree with your points.
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