हर साल पूरा भारत स्वतंत्रता दिवस मनाता है और कल भी मनाएगा लेकिन क्या आजादी के लिए बलिदान देने वाले शहीदों ने इसी आजादी का सपना देखा था ! अंग्रेजों के जाने के बाद भी क्या बदला है इस देश में केवल शासन करने वाले ही तो बदले है !
अंग्रेजों के जमाने में भी भारत का सरकारी कामकाज अंग्रेजी में चलता था और आज भी अंग्रेजी में ही चलता है हम आजादी के पेंसठ वर्षों में अंग्रेजी भाषा को हटाकर अपनी भाषा को भी स्थापित नहीं कर पाए , क्या हमको इस पर गर्व करना चाहिए की हम अंग्रेजी का वर्चस्व बरकरार रख पाए है !
अंग्रेजों के जमाने में भी पैसे वाले लोगों की पहुँच तो उतनी ही थी जितनी आज के शासन में है गरीब और किसान उस समय भी असहाय थे और आज भी उतने ही असहाय है और किसान तो उलटे अंग्रेजों के शासन से इस समय ज्यादा असहाय है क्या इस पर गर्व करें !
अंग्रेजों के शासनकाल में धार्मिक भेदभाव को बढ़ाया गया लेकिन आजादी के बाद भारत के सताधिशों ने तो अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया और उस धार्मिक भेदभाव को तो बढ़ाया ही उसके ऊपर जातिवाद को भी बढ़ावा दे दिया ! क्या यह गर्व करने का विषय है !
अंग्रेजों के शासन में भी कानून उनके खुद के बचाने के लिए ही बनाये जाते थे और आज भी सता में बेठे लोग कानून अपने को बचाने के लिए ही बनाते है उनके शासन में भी लोगों को अपनी बात शासन तक पहुँचाने के लिए विरोध प्रदर्शनों का ही सहारा लेना पड़ता था और आज भी विरोध प्रदर्शनों का हि सहारा लेना पड़ता है जिसका उस समय अंग्रेजों पर फर्क पड़ता था या नहीं इसका तो मुझे पता नहीं लेकिन आज सता पर बेठे लोगों पर तो उन विरोध प्रदर्शनों का भी असर नहीं पड़ता है क्या इस पर गर्व करें !
अंग्रेजों के जमाने में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं थी और आजादी के बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिल गयी बस यही एक अधिकार आजादी के बाद मिला है क्या इतना हि काफी है आजादी का जश्न मनाने के लिए !
एक तरफ सड़ता अनाज है तो दूसरी तरफ तीन चौथाई भारत कुपोषण का शिकार है ,एक तरफ आत्महत्या करता किसान है तो दूसरी तरफ अरबों के घोटाले करने वाले और राजसी ठाठ से रहने वाले नेता है ! कुल मिलाकर आजादी का विश्लेषण करें तो कवि राजबुन्देली जी की यह कविता आज की हकीकत लगती है -
तुम कहतॆ हॊ मना रहॆ हैं, जन्म-दिवस आज़ादी का !!
मैं कहता मत जश्न मनाओ, भारत की बरबादी का !!
जलता आज चिताओं पर, दॆखॊ भाई-चारा है,
हॊतॆ यहाँ मज़हबी दंगॆ, हर नॆता ना-कारा है,
महगाई तॊ अंबर चूमॆ, है दल-दल सी बॆकारी,
दॆ रही है अग्नि-परीक्षा, आज़ाद दॆश मॆं नारी,
राम-राज्य आय़ॆगा कैसॆ,भारत की झाँकी मॆं,
चॊर-लुटॆरॆ हैं छुपॆ यहाँ,जब खादी मॆं खाकी मॆं,
हुए दॆश कॆ टुकड़ॆ-टुकड़ॆ, क्या पैग़ाम यही आज़ादी का !!१!!
मैं कहता मत....................................................
सागर की लहरॊं जैसी, सरकार यहाँ लहराती
आज खून कॆ आँसू पी, जनता प्यास बुझाती,
हर तरफ घॊटालॊं कॆ, चक्र-सुदर्शन मँड़रातॆ हैं,
कूटनीति कॆ कौआ, अब मंत्री बनकर आतॆ हैं,
शासन बना दुःशासन,दॆखॆ चीर-हरण कॆ सपनॆं,
अपनी माँ कॆ सीनॆं पर,बारूद गिरातॆ हैं अपनॆं,
समझ सुंदरी सत्ता कॊ सब, अब रचॆं स्वयंवर शादी का !!२!!
मैं कहता मत.......................................................
राम त्याग की कहाँ भावना, गाँधी का उपदॆश कहाँ,
नीति विदुर की कहाँ गई,वह नॆहरू का संदॆश कहाँ,
लाल बाल पाल कॆ,सीनॆं की,वह जलती आग कहाँ,
झाँसी की तलवार कहाँ, भगतसिंह का त्याग कहाँ,
तानसॆन की तान कहाँ, वंदॆ-मातरम का गान कहाँ,
अमर शहीदॊं कॆ सपनॊं का, प्यारा हिन्दुस्तान कहाँ,
आज़ाद भगत सुखदॆव सरीखा, अब कहाँ पुत्र आज़ादी का !!३!!
मैं कहता मत.........................................................
न झुकॆं शीश अधर्म पर,नहीं रुकॆं कदम तूफ़ानॊं सॆ,
गद-गद हॊ माँ की ममता, जब बॆटॊं कॆ बलिदानॊं सॆ,
भारत की नारी चण्डी बन, फिर लड़ॆ युद्ध मैदानॊं मॆं,
इंक्लाब का नारा गूँजॆगा, जन जन कॆ जब कानॊं मॆं,
जाति-पाँति कॊ भूलॆं हम,सब दॆश भक्ति कॆ गानॊं मॆं,
राम-राज्य आ चुका, समझना, तब सच्चॆ पैमानॊं मॆं,
कवि "राज" लहू की बूँदॊं सॆ, कॊई गीत लिखॆ आज़ादी का !!४!!
तब इस दिन कॊ कहना, हॆ भाई,जन्म दिवस आज़ादी का !!
अंग्रेजों के जमाने में भी भारत का सरकारी कामकाज अंग्रेजी में चलता था और आज भी अंग्रेजी में ही चलता है हम आजादी के पेंसठ वर्षों में अंग्रेजी भाषा को हटाकर अपनी भाषा को भी स्थापित नहीं कर पाए , क्या हमको इस पर गर्व करना चाहिए की हम अंग्रेजी का वर्चस्व बरकरार रख पाए है !
अंग्रेजों के जमाने में भी पैसे वाले लोगों की पहुँच तो उतनी ही थी जितनी आज के शासन में है गरीब और किसान उस समय भी असहाय थे और आज भी उतने ही असहाय है और किसान तो उलटे अंग्रेजों के शासन से इस समय ज्यादा असहाय है क्या इस पर गर्व करें !
अंग्रेजों के शासनकाल में धार्मिक भेदभाव को बढ़ाया गया लेकिन आजादी के बाद भारत के सताधिशों ने तो अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया और उस धार्मिक भेदभाव को तो बढ़ाया ही उसके ऊपर जातिवाद को भी बढ़ावा दे दिया ! क्या यह गर्व करने का विषय है !
अंग्रेजों के शासन में भी कानून उनके खुद के बचाने के लिए ही बनाये जाते थे और आज भी सता में बेठे लोग कानून अपने को बचाने के लिए ही बनाते है उनके शासन में भी लोगों को अपनी बात शासन तक पहुँचाने के लिए विरोध प्रदर्शनों का ही सहारा लेना पड़ता था और आज भी विरोध प्रदर्शनों का हि सहारा लेना पड़ता है जिसका उस समय अंग्रेजों पर फर्क पड़ता था या नहीं इसका तो मुझे पता नहीं लेकिन आज सता पर बेठे लोगों पर तो उन विरोध प्रदर्शनों का भी असर नहीं पड़ता है क्या इस पर गर्व करें !
अंग्रेजों के जमाने में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं थी और आजादी के बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिल गयी बस यही एक अधिकार आजादी के बाद मिला है क्या इतना हि काफी है आजादी का जश्न मनाने के लिए !
एक तरफ सड़ता अनाज है तो दूसरी तरफ तीन चौथाई भारत कुपोषण का शिकार है ,एक तरफ आत्महत्या करता किसान है तो दूसरी तरफ अरबों के घोटाले करने वाले और राजसी ठाठ से रहने वाले नेता है ! कुल मिलाकर आजादी का विश्लेषण करें तो कवि राजबुन्देली जी की यह कविता आज की हकीकत लगती है -
तुम कहतॆ हॊ मना रहॆ हैं, जन्म-दिवस आज़ादी का !!
मैं कहता मत जश्न मनाओ, भारत की बरबादी का !!
जलता आज चिताओं पर, दॆखॊ भाई-चारा है,
हॊतॆ यहाँ मज़हबी दंगॆ, हर नॆता ना-कारा है,
महगाई तॊ अंबर चूमॆ, है दल-दल सी बॆकारी,
दॆ रही है अग्नि-परीक्षा, आज़ाद दॆश मॆं नारी,
राम-राज्य आय़ॆगा कैसॆ,भारत की झाँकी मॆं,
चॊर-लुटॆरॆ हैं छुपॆ यहाँ,जब खादी मॆं खाकी मॆं,
हुए दॆश कॆ टुकड़ॆ-टुकड़ॆ, क्या पैग़ाम यही आज़ादी का !!१!!
मैं कहता मत....................................................
सागर की लहरॊं जैसी, सरकार यहाँ लहराती
आज खून कॆ आँसू पी, जनता प्यास बुझाती,
हर तरफ घॊटालॊं कॆ, चक्र-सुदर्शन मँड़रातॆ हैं,
कूटनीति कॆ कौआ, अब मंत्री बनकर आतॆ हैं,
शासन बना दुःशासन,दॆखॆ चीर-हरण कॆ सपनॆं,
अपनी माँ कॆ सीनॆं पर,बारूद गिरातॆ हैं अपनॆं,
समझ सुंदरी सत्ता कॊ सब, अब रचॆं स्वयंवर शादी का !!२!!
मैं कहता मत.......................................................
राम त्याग की कहाँ भावना, गाँधी का उपदॆश कहाँ,
नीति विदुर की कहाँ गई,वह नॆहरू का संदॆश कहाँ,
लाल बाल पाल कॆ,सीनॆं की,वह जलती आग कहाँ,
झाँसी की तलवार कहाँ, भगतसिंह का त्याग कहाँ,
तानसॆन की तान कहाँ, वंदॆ-मातरम का गान कहाँ,
अमर शहीदॊं कॆ सपनॊं का, प्यारा हिन्दुस्तान कहाँ,
आज़ाद भगत सुखदॆव सरीखा, अब कहाँ पुत्र आज़ादी का !!३!!
मैं कहता मत.........................................................
न झुकॆं शीश अधर्म पर,नहीं रुकॆं कदम तूफ़ानॊं सॆ,
गद-गद हॊ माँ की ममता, जब बॆटॊं कॆ बलिदानॊं सॆ,
भारत की नारी चण्डी बन, फिर लड़ॆ युद्ध मैदानॊं मॆं,
इंक्लाब का नारा गूँजॆगा, जन जन कॆ जब कानॊं मॆं,
जाति-पाँति कॊ भूलॆं हम,सब दॆश भक्ति कॆ गानॊं मॆं,
राम-राज्य आ चुका, समझना, तब सच्चॆ पैमानॊं मॆं,
कवि "राज" लहू की बूँदॊं सॆ, कॊई गीत लिखॆ आज़ादी का !!४!!
तब इस दिन कॊ कहना, हॆ भाई,जन्म दिवस आज़ादी का !!
2 टिप्पणियां :
लेकिन आजादी के बाद भारत के सताधिशों ने तो अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया और उस धार्मिक भेदभाव को तो बढ़ाया ही उसके ऊपर जातिवाद को भी बढ़ावा दे दिया ! क्या यह गर्व करने का विषय है !
बिलकुल नही जी.
आप सही कह रहे हैं
सार्थक विचारणीय प्रस्तुति.
कवि राज बुंदेली जी कविता शेयर करने के लिए आभार.
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