पहले अन्ना हजारे का आंदोलन और अब बाबा रामदेव के आंदोलन में सरकार ने जिस बेरुखी का उदाहरण पेश किया है उसको क्या कहा जाएगा ! क्या सरकार जनांदोलनों कि प्रासंगिकता को ही समाप्त कर देना चाहती है ! क्योंकि जनांदोलन सरकार के पास जनता की भावनाओं को पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम होता है लेकिन सरकार की बेरुखी इस माध्यम को नुकशान पहुंचा रही है !
होना तो यह चाहिए था कि सरकार जनभावनाओ का सम्मान करते हुए उठाये गए मुद्दों पर सकारात्मक पहल दिखाती लेकिन इसका उल्टा हो रहा है ! सरकार इन आन्दोलनों को ही दबाना चाहती है और सरकार के मंत्री और सतारूढ़ पार्टी आंदोलनकारियों को ही बदनाम करने कि कोशिशों में लगी हुयी है तथा आंदोलनकारियों का उपहास उड़ा रही है जो कहीं ना कहीं यह दिखा रहा है कि सरकार के मंत्री दंभ से भरे हुए है लेकिन उनको पता होना चाहिए कि वो लोकतांत्रिक देश में है जहां पर उनको पांच साल बाद फिर जनता के पास जाना पड़ेगा और वहाँ पर उनको अपने घमण्ड का नुकशान भी उठाना पड़ेगा !
आंदोलन करने वाले मुद्दों को लेकर आंदोलन करते है और जनता उनके साथ कड़ी होती है तो सरकार को भी उन मुद्दों पर ही बात करनी चाहिए अगर मुद्दे जनहित के नहीं है तो सरकार जनता को साफ़ साफ़ बताए कि इन लोगों के द्वारा उठाये गए मुद्दे गैर जनहित के है इसलिए सरकार इनको नहीं मान सकती है और अगर मुद्दे जनहित के है तो फिर सरकार को आंदोलनकर्ताओं की मांगों को मानना चाहिए एक स्वस्थ लोकतंत्र का तो यही नियम है लेकिन सरकार को भी पता है कि अन्ना हजारे हो या बाबा रामदेव हो इनके मुद्दे देशहित में है और वो सीधे सीधे नकार नहीं सकती है और वो इनके ऊपर सकारात्मक पहल भी नहीं करना चाहती है क्योंकि इससे सतापक्ष से जुड़े लोगों के निजी हितों को जो आघात पहुँच रहा है !
इसीलिए सरकार ने पहले तो इन आंदोलनों को तवज्जो देकर यह साबित करने कि कोशिश की गयी की वो इन मुद्दों पर सकारात्मक है लेकिन कुछ ही समय में सरकार की सकारात्मकता जनता के सामने आ गयी क्योंकि सरकार इन मुद्दों पर जनता को लोलीपोप दे रही थी जब यह फार्मूला फ़ैल हो गया तो सरकार ने दमनात्मक रवैया अपनाया गया और बाबा रामदेव और आंदोलनकारियों पर रात के अँधेरे में लाठीचार्ज किया गया और फिर अन्ना को गिरप्तार किया गया लेकिन सुप्रीम कौर्ट में हुयी किरकिरी और जनता के विरोध के कारण यह फार्मूला भी सरकार दुबारा नहीं अपना सकती थी इस लिए इस बार सरकार ने एक नया रास्ता निकाला है जो यह है की आंदोलनकारियों की तरफ बिलकुल ध्यान ही मत दो थक हार कर अपने आप चले जायेंगे !
इससे एक खतरा और पैदा हो रहा है वो यह है की अगर शांतिपूर्ण आंदोलनों की इस सरकार द्वारा तरह से अवहेलना की जायेगी तो हो सकता आगे लोग शांतिपूर्ण आंदोलन करने के बजाय उग्र आंदोलनों का रास्ता ही अपनाये जो लोकतंत्र और देश के हित में तो कतई नहीं कहा जा सकता लेकिन अगर शांतिपूर्ण आंदोलनों की दुर्गति होती है तो फिर दूसरा रास्ता उग्र आंदोलनों की तरफ ही जाता है !!
1 टिप्पणी :
सशक्त सार्थक प्रस्तुति,,,,
सरकार को इस और ध्यान देना चाहिए,,,,
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
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