आज बाबा साहेब की आत्मा स्वर्ग में सोच रही होगी कि मैंने कैसे नासमझ लोगों को आरक्षण नाम का झुनझुना दे दिया जिन्होंने अपना वोट बेंक बनाने के चक्कर में मेरी बातों को तो नकार ही दिया साथ में आरक्षण की मूल सोच को भी ठेंगा दिखा रहे है !!
बाबा साहेब ने आरक्षण केवल दस साल के लिए समाज में बराबरी लाने कि सोच के साथ लागू किया था और साथ में ये जोड़ा था कि दस साल बाद आरक्षण की समीक्षा की जाये लेकिन हमारे देश के कर्णधारों ने ना केवल आरक्षण को बढ़ावा दिया बल्कि इसको अपना राजनैतिक एजेंडा बना लिया बिना ये जाने कि इससे वास्तव में उन लोगों का भला हो भी रहा है या नहीं जो लोग इसके वास्तविक हकदार है !!
आरक्षण हमारे संविधान की उस मूल भावना के भी खिलाफ है जिसमे जाति और धर्म को संविधान से दूर रखा गया है और सबके लिए समान भाव दर्शाया गया है ! आरक्षण जातिवादी भावना को ही बलवती करता है और अब तो हमारे नेता धर्म के आधार पर आरक्षण देने कि कोशिश कर रहे है क्या ये सीधा सीधा संविधान की मूल भावना को ठेंगा दिखाने जैसा नहीं है ! दरअसल आज देश अपनी आजादी की पैसंठवीं सालगिरह मना रहा है लेकिन आज तक आरक्षण को जारी रखने के बाद भी हमारे देश में बाबा साहेब का वो सपना पूरा नहीं हुआ जो उन्होंने समाज को बराबरी पर लाने का देखा था और आरक्षण की अगर वर्तमान व्यवस्था कायम रहती है तो वो शायद ही कभी पूरा हो !क्या हमारे देश के कर्णधारों को अब ये नहीं सोचना चाहिए कि गलती कहाँ हुयी है !!
वे लोग नासमझ है जो बाबा साहेब भीमराव अबेडकर को अपशब्द कहते है क्योंकि बाबा साहेब कि सोच साफ़ सुथरी थी और वो समाज के हर तबके को बराबरी पर लाना चाहते थे इसलिए उनकी सोच में कहीं भी कुछ गलत नहीं था बल्कि गलती उन लोगों की है जिन पर इसको अमलीजामा पहनाने का दायित्व था और उनकी सोच समाज में बराबरी लाने की नहीं थी बल्कि अपना वोट बेंक पक्का करने की सोच थी !
इस आरक्षण की पहेली को समझना बहुत ही जरुरी है जिसके लिए आपको जब देश आजाद हुआ था तब से आपको ये देखना पड़ेगा क्योंकि शुरुआत में आरक्षण के लिए जिन जातियों का चयन किया गया वे जातियां ही आरक्षण की वास्तविक हकदार थी लेकिन धीरे धीरे इसमें और जातियां जोड़ते चले गए और उसमे भी कई ऐसी जातियों को जोड़ दिया गया जो आरक्षण की हकदार तो कतई नहीं थी बल्कि जब उन जातियों को जोड़ा गया तब भी वो इतनी सक्षम थी की उनको जोड़ने के साथ साथ वो उन जातियों का हक भी मार ले गयी जो जातियां आरक्षण की वास्तिवक हकदार थी ! इसके दो नुकशान हो गए एक तो कमजोर जातियां थी वो वहीँ की वहीं रह गयी जहां पर वो पहले थी दूसरा नुकशान ये हुआ जो उन सक्षम जातियों के समकक्ष जो अन्य जातियां थी वो उस जाति से कमजोर होती गयी और उनमे असंतोष पनपना शुरू हो गया और वे भी आरक्षण की मांग करने लग गयी ! गुर्जरों की आरक्षण की मांग इसी का नतीजा है वर्ना जब तक मीणाओं को अति पिछड़ा वर्ग में शामिल नहीं किया गया था तब तक ये दोनों जातियां एक दूसरे के समकक्ष थी ! इसी तरह जब तक जाटों को जब तक अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल नहीं किया गया था तब तक जाट और राजपूत एक दूसरे के समकक्ष थे ! अभी जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित किये हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है लेकिन जैसे जैसे ये फर्क बढ़ता जाएगा वैसे वैसे आप देखते जाइए राजपूतों की तरफ से भी आरक्षण की मांग जोर पकड़ने लगेगी !
मैंने आपको राजस्थान के दो ऐसे उदाहरण दिए है जो ये समझने के लिए काफी है कि कैसे ये आरक्षण का नासूर ना केवल समाज में बराबरी लाने में अक्षम है बल्कि उल्टा जाति विभेद को बढ़ावा दे रहा है और समाज को एक टकराव के मुहाने पर ले जाकर खड़ा कर रहा है ! इसके लिए में आपको एक उदाहरण और देना चाहूँगा कि कैसे जाति के नाम पर शासन को मजबूर किया जाता है और दूसरी बात मीणा जाति ने किस स्तर पर आरक्षण का लाभ उठाया है ! जब राजस्थान में गुर्जर आंदोलन अपने चरम पर था और राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार थी तब मुख्यमंत्री ने सभी जिला कलेक्टरों से गुर्जरों की स्थति के बारे में रिपोर्ट देने को कहा तब उस समय राजस्थान के बतीस जिलों में से २१ जिलों में कलेक्टर मीणा थे और उन्होंने इसका जबाव तक नहीं दिया ! में राजस्थान से आता हूँ इसलिए में राजस्थान की वास्तविक स्थति से भली भांति परिचित हूँ इसीलिए आपको वहीँ की हकीकत से रूबरू करवाया हूँ लेकिन अगर आप अपने अपने राज्यों में भी गौर करेंगे तो कमोबेश यही स्थति ही सामने आएगी हाँ लाभ लेने वाली जातियां जरुर बदल जायेगी ! और ऐसा नहीं है कि राजनितिक जमात इससे अनभिज्ञ है लेकिन उनको इसी आधार पर जातियों के वोट थोक में मिल जाते है इसलिए वो इस स्थति को ही ना केवल बरकरार रखना चाहते है बल्कि इसमें और इजाफा भी करना चाहते है !इसका एक दुष्परिणाम योग्यता वाला भी है कि कैसे आरक्षण की बैसाखी के सहारे कम योग्यता वाला आदमी भी अधिक योग्यता वाले आदमी को पीछे धकेलकर आगे बढ़ जाता है जिसका नुकशान अंत में तो देश को ही उठाना पड़ेगा !
ऐसे बहुत सारे दुष्प्रभाव आरक्षण के है जिससे निकलने का एक ही रास्ता है कि सरकार ऐसी व्यवस्था करे जिससे गरीबों की वास्तविक गणना की जा सके और फिर उन गरीबों को आर्थिक सहायता देकर उनके बच्चों को समान शिक्षा का अधिकार देकर उनको आगे बढ़ने का मौका दे और आरक्षण को पूर्ण रूप से समाप्त किया जाये इससे बाबा साहेब कि समान समाज की सोच भी पूरी होगी और देश को भी योग्यता से समझोता नहीं करना होगा !!
आरक्षण हमारे संविधान की उस मूल भावना के भी खिलाफ है जिसमे जाति और धर्म को संविधान से दूर रखा गया है और सबके लिए समान भाव दर्शाया गया है ! आरक्षण जातिवादी भावना को ही बलवती करता है और अब तो हमारे नेता धर्म के आधार पर आरक्षण देने कि कोशिश कर रहे है क्या ये सीधा सीधा संविधान की मूल भावना को ठेंगा दिखाने जैसा नहीं है ! दरअसल आज देश अपनी आजादी की पैसंठवीं सालगिरह मना रहा है लेकिन आज तक आरक्षण को जारी रखने के बाद भी हमारे देश में बाबा साहेब का वो सपना पूरा नहीं हुआ जो उन्होंने समाज को बराबरी पर लाने का देखा था और आरक्षण की अगर वर्तमान व्यवस्था कायम रहती है तो वो शायद ही कभी पूरा हो !क्या हमारे देश के कर्णधारों को अब ये नहीं सोचना चाहिए कि गलती कहाँ हुयी है !!
वे लोग नासमझ है जो बाबा साहेब भीमराव अबेडकर को अपशब्द कहते है क्योंकि बाबा साहेब कि सोच साफ़ सुथरी थी और वो समाज के हर तबके को बराबरी पर लाना चाहते थे इसलिए उनकी सोच में कहीं भी कुछ गलत नहीं था बल्कि गलती उन लोगों की है जिन पर इसको अमलीजामा पहनाने का दायित्व था और उनकी सोच समाज में बराबरी लाने की नहीं थी बल्कि अपना वोट बेंक पक्का करने की सोच थी !
इस आरक्षण की पहेली को समझना बहुत ही जरुरी है जिसके लिए आपको जब देश आजाद हुआ था तब से आपको ये देखना पड़ेगा क्योंकि शुरुआत में आरक्षण के लिए जिन जातियों का चयन किया गया वे जातियां ही आरक्षण की वास्तविक हकदार थी लेकिन धीरे धीरे इसमें और जातियां जोड़ते चले गए और उसमे भी कई ऐसी जातियों को जोड़ दिया गया जो आरक्षण की हकदार तो कतई नहीं थी बल्कि जब उन जातियों को जोड़ा गया तब भी वो इतनी सक्षम थी की उनको जोड़ने के साथ साथ वो उन जातियों का हक भी मार ले गयी जो जातियां आरक्षण की वास्तिवक हकदार थी ! इसके दो नुकशान हो गए एक तो कमजोर जातियां थी वो वहीँ की वहीं रह गयी जहां पर वो पहले थी दूसरा नुकशान ये हुआ जो उन सक्षम जातियों के समकक्ष जो अन्य जातियां थी वो उस जाति से कमजोर होती गयी और उनमे असंतोष पनपना शुरू हो गया और वे भी आरक्षण की मांग करने लग गयी ! गुर्जरों की आरक्षण की मांग इसी का नतीजा है वर्ना जब तक मीणाओं को अति पिछड़ा वर्ग में शामिल नहीं किया गया था तब तक ये दोनों जातियां एक दूसरे के समकक्ष थी ! इसी तरह जब तक जाटों को जब तक अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल नहीं किया गया था तब तक जाट और राजपूत एक दूसरे के समकक्ष थे ! अभी जाटों को अन्य पिछड़ा वर्ग में सम्मिलित किये हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है लेकिन जैसे जैसे ये फर्क बढ़ता जाएगा वैसे वैसे आप देखते जाइए राजपूतों की तरफ से भी आरक्षण की मांग जोर पकड़ने लगेगी !
मैंने आपको राजस्थान के दो ऐसे उदाहरण दिए है जो ये समझने के लिए काफी है कि कैसे ये आरक्षण का नासूर ना केवल समाज में बराबरी लाने में अक्षम है बल्कि उल्टा जाति विभेद को बढ़ावा दे रहा है और समाज को एक टकराव के मुहाने पर ले जाकर खड़ा कर रहा है ! इसके लिए में आपको एक उदाहरण और देना चाहूँगा कि कैसे जाति के नाम पर शासन को मजबूर किया जाता है और दूसरी बात मीणा जाति ने किस स्तर पर आरक्षण का लाभ उठाया है ! जब राजस्थान में गुर्जर आंदोलन अपने चरम पर था और राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार थी तब मुख्यमंत्री ने सभी जिला कलेक्टरों से गुर्जरों की स्थति के बारे में रिपोर्ट देने को कहा तब उस समय राजस्थान के बतीस जिलों में से २१ जिलों में कलेक्टर मीणा थे और उन्होंने इसका जबाव तक नहीं दिया ! में राजस्थान से आता हूँ इसलिए में राजस्थान की वास्तविक स्थति से भली भांति परिचित हूँ इसीलिए आपको वहीँ की हकीकत से रूबरू करवाया हूँ लेकिन अगर आप अपने अपने राज्यों में भी गौर करेंगे तो कमोबेश यही स्थति ही सामने आएगी हाँ लाभ लेने वाली जातियां जरुर बदल जायेगी ! और ऐसा नहीं है कि राजनितिक जमात इससे अनभिज्ञ है लेकिन उनको इसी आधार पर जातियों के वोट थोक में मिल जाते है इसलिए वो इस स्थति को ही ना केवल बरकरार रखना चाहते है बल्कि इसमें और इजाफा भी करना चाहते है !इसका एक दुष्परिणाम योग्यता वाला भी है कि कैसे आरक्षण की बैसाखी के सहारे कम योग्यता वाला आदमी भी अधिक योग्यता वाले आदमी को पीछे धकेलकर आगे बढ़ जाता है जिसका नुकशान अंत में तो देश को ही उठाना पड़ेगा !
ऐसे बहुत सारे दुष्प्रभाव आरक्षण के है जिससे निकलने का एक ही रास्ता है कि सरकार ऐसी व्यवस्था करे जिससे गरीबों की वास्तविक गणना की जा सके और फिर उन गरीबों को आर्थिक सहायता देकर उनके बच्चों को समान शिक्षा का अधिकार देकर उनको आगे बढ़ने का मौका दे और आरक्षण को पूर्ण रूप से समाप्त किया जाये इससे बाबा साहेब कि समान समाज की सोच भी पूरी होगी और देश को भी योग्यता से समझोता नहीं करना होगा !!
7 टिप्पणियां :
वोट की राजनीति ने ही आरक्षण को जन्म दिया है बहुत बढ़िया बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,
हिंदी टूल के लिए...
आप ऐसा करिए टेम्पलेट को एक्सपैंड करने के बाद जहाँ भी आपको यह लाइन मिले:
<a expr:href='data:post.commentFormIframeSrc' id='comment-editor-src'/>
ठीक उसके नीचे पोस्ट में बताया गया 'Typing Box Code' कोड कॉपी कर दीजिए।
आपका काम हो जायेगा।
समसामायिक पोस्ट !
मेरे से आपका ये नहीं हो पा रहा है क्षमा कीजियेगा आपकी ये टिपन्नी गलती से हट गयी है !!
@पूरण खण्डेलवाल; आपके ब्लॉग पर यह ठीक से काम कर रहा है। अत्यधिक जावास्क्रिप्ट के प्रयोग के कारण यह सबसे बाद में खुल रहा है। :)
हाँ जी आपकी बात सच है आपका धन्यवाद !
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