शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

राजनितिक दल और विचारशून्यता !!

आज देश के राजनितिक हालात देखें तो साफ़ दिखाई दे रहा है कि भारत के राजनैतिक दल विचारशून्यता की स्थति में हैं किसी भी पार्टी को समझ में नहीं आ रहा है कि वो दरअसल किन नीतियों को लेकर आगे बढे और जब इन दलों के अंदर ही स्थति ऐसी है तो ये जनता के सामने कौनसी नीतियां या कौनसे वादों के साथ जायेंगे और जाहिर है ऐसी स्थति में सब दल तात्कालिक मुद्दों को ही अपना हथियार बनायेंगे  !!

सरकार चला रही सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस हैं लेकिन उसके नौ वर्षों के शासनकाल में उसके पुराने सारे मुद्दे हवा हो चुके हैं क्योंकि सरकार नें नौ वर्षों के अपने कार्यकाल में अपने उन्ही मुद्दों कि धज्जियां उड़ाई है जिनके सहारे वो आज तक सता तक पहुँचती रही है और चुनावों में जनता के बीच जाती रही है ऐसे में वो पुराने मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा नहीं सकती और  ऊपर से उस पर भ्रस्टाचार का लेबल  और चस्पा हो गया ऐसी स्थति में कांग्रेस के पास ऐसा कुछ भी नहीं हैं जिसको लेकर वो जनता के बीच जा सके !!

सरकार में शामिल दूसरी पार्टियों और सरकार का समर्थन कर रही पार्टियों की भी कुछ ऐसी ही स्थति है वो सरकार में शामिल तो हैं लेकिन यह भी जानती हैं कि उन्होंने भी अपनी नीतियों को सत्त्तासुख के लिए तिलांजली दे दी इसलिए दृढता के साथ उन नीतियों को लेकर जनता के बीच जा नहीं सकती और यही उहापोह कि स्थति उनके अंदर साफ़ देखि जा सकती है जो कभी सरकार के साथ रहना चाहती है और कभी सरकार से दूर जाना चाहती हैं !!

दूसरी और सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भाजपा की स्थति भी इससे अलग नहीं कही जा सकती उसनें भी अपने पुराने उन मुद्दों और नीतियों को तो गटबंधन निभाने के चलते ठन्डे बस्ते में डाल चुकी है जिनके बल पर देश कि सबसे बड़ी पार्टी बनी और आज उसकी हालत भी ऐसी है कि वो निर्णय नहीं कर पा रही है कि वो किस निति के साथ जनता के बीच जाए ऊपर से गटबंधन और पार्टी की अंदरूनी खींचतान उसकी समस्याओं को और बढ़ा रही है और कुछ कसर बाकी रह रही है वो पूरी हो रही है उसके कुछ नेताओं पर लग रहे भ्रस्टाचार और कांग्रेस से नजदीकियों के आरोपों से ऐसे में वो भी कशमकश कि स्थति में ही है !

वामपंथी पार्टियां भी इसी कशमकश के दौर से गुजर रही है क्योंकि वो अपनी नीतियों पर तो अटल हैं लेकिन उनको भी लग रहा है कि जनता उनकी नीतियों पर पुरे मन से उनके साथ है नहीं और उनका जनाधार भी धीरे धीरे कम होता जा रहा है ऐसे में अपनी नीतियों को लेकर उनमे भी संशय कि स्थति ही ज्यादा दिख रही और वो भी अपनी नीतियों को लेकर दृढता के साथ आगे बढती हुयी नहीं दिखाई दे रही हैं !

भाजपा के साथ गटबंधन में शामिल पार्टियों कि हालत भी इससे जुदा नहीं हैं और वो अपने अपने स्वार्थों और मजबूरियों के चलते तय नहीं कर पा रहीं है कि वो किस दिशा में आगे बढे और किन नीतियों को अपनाये और किन नीतियों का विरोध करें !!

और इनसे अलग कुछ छोटी छोटी पार्टियों कि तो अपनी कोई स्थिर नीतियां ही नहीं है और पल पल अपना नजरिया बदलती रहती है इसलिए ऐसी पार्टियों कि तो नीतियों पर बात करना भी बेमानी है ! आज कि पूरी राजनैतिक स्थति पर गौर करें तो एक बात साफ़ निकल कर आती है कि देश कि सारी कि सारी राजनैतिक पार्टियां विचारशून्यता की स्थति में है जो देश के लिए अच्छा तो कतई नहीं कहा जाएगा !!

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2 टिप्‍पणियां :

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सारी देश की पार्टियां,सबका है यही हाल
गठबंधन की राजनीति,देश हुआ बेहाल,,,,,,

MY RECENT POST: माँ,,,

surenderpal vaidya ने कहा…

बहुत ही विचारणीय आलेख । यह राजनीतिक विचार शून्यता की स्थिति देश के लिए बहुत ही घातक है । विशेषकर राष्ट्रवादी दलोँ का वैचारिक भटकाव तथा स्खलन ।