उतराखण्ड में जो तबाही हुयी है वो किसी पत्थरदिल इंसान को भी हिलाकर रख दे फिर सामान्य जन के लिए तो पीड़ादायक है ही और जो लोग उस आपदा से प्रभावित हुए हैं और जिन्होंने अपनें परिवारजनों को खोया है उनके दुःख की तो केवल कल्पना करके मन सिहर उठता है ! हम तो केवल भगवान से प्रार्थना ही कर सकते हैं कि हे दयानिधान उनको इस दुःख से बाहर निकलने का हौसला प्रदान करें और आपदा में जान गवां चुके लोगों की आत्मा को चिर शान्ति प्रदान करें !
पृकृति द्वारा पैदा किये गए इस संकट का आज पांचवा दिन हो गया है लेकिन अभी तक वहाँ फंसे हुए लोगों को पूरी तरह से निकाला नहीं जा सका है ! और जब जिन्दा लोगों को नहीं निकाला जा सका है तो शवों को निकालना तो बाद में ही शुरू होनें वाला है ! यह सब सोचकर गुस्सा उन सरकारों पर आता है जो इतनी बड़ी आपदा में भी संवेदनहीन हो चुकी है ! इतनी बड़ी आपदा से प्रभावित लोगों को बचाने के लिए और निकालने के लिए क्यों नहीं हर संभव कोशिश की जा रही है ! जबकि जरुरत थी तमाम संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए लोगों को बचाने की और वहाँ से लोगों को बचाने का एकमात्र रास्ता हेलीकॉप्टरों द्वारा निकालने का ही था !
वहाँ से लोगों को निकालने के लिए महज सत्रह हेलिकोप्टर लगाए गए हैं जिनके द्वारा तक़रीबन ७०००० फंसे हुए लोगों को निकालना था ! क्या भारत के पास महज सत्रह हेलिकॉप्टर ही हैं जिसके कारण सरकार के सामने यह लाचारी उपस्थित हुयी है ! जबकि हकीकत यह है कि मुख्यमंत्रियों ,केन्द्र सरकार और तेल कंपनियों के पास हेलिकोप्टर हैं ! और ये सब जनता के पैसे से ही ख़रीदे गए हैं और आज जब जनता संकट से जूझ रही है तो महज सत्रह हेलिकोप्टर लगा कर राहत पहुंचाने की कोशिश की जा रही है ! आखिर किस विभाग के पास क्या है इससे जनता को कोई मतलब नहीं है बस उसको तो मतलब है कि संकट के समय सभी विभागों के पास जो संसाधन है वो उसके काम आ रहे है या नहीं ! और सच्चाई यह है कि वो सब संसाधन आज उतराखण्ड के आपदाग्रस्त लोगों के काम नहीं आ रहे हैं !
अब तो संदेह इस बात का भी पैदा हो गया है कि इस आपदा में लापता हुए सभी लोगों के बारे में सही जानकारी कभी मिल ही पाएगी ! क्योंकि कुछ तो सरकारें असली आंकड़े को छुपाने की कोशिश कर रही है और कुछ समाचार ऐसे भी आ रहे हैं कि स्थानीय ग्रामीण भी शवों का अपने तौर पर अंतिम संस्कार कर रहे हैं जिसके कारण असली तस्वीर सामनें आना मुश्किल ही है ! दरअसल सभी सरकारों को समन्वय बनाते हुए आपदाग्रस्त लोगों तक मदद पहुंचाने के प्रयास युद्धस्तर पर करने चाहिए थे लेकिन सरकारें इसमें नाकाम साबित हुयी है और जिसका कारण भी शायद यही हो कि वहाँ पर प्रभावित लोग किसी पार्टी के वोटबैंक नहीं थे और उनमें सताधारी पार्टियों को वोट दिखाई नहीं दिए !
12 टिप्पणियां :
सही कह रहे हैं आप, सरकारें तो बस नाम की लीपापोती कर देंगी और कुछ नही.
रामराम.
भ्रष्ट सरकारें सम्वेदनहीन हो चुकी है !
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन इस दुर्दशा के जिम्मेदार हम खुद है - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
आभार ताऊ ,
राम राम !!
सही कह रहे हैं आप !!
सादर आभार !!
सहर्ष आभार !!
जितने निकल आये या आजायेंगे ये उनकी किस्मत.अंदाज लगाइए दो दिन में ३५००० लोग नकल लिए,यह आंकड़ा सरकार का है,सेना का नहीं.कुछ और निकल आयेंगे,दूबारा बारिश होने की संभावना है,रहे सहे तब बह जायेंगे.कल सरकार का दावा आएगा सब लोगों को बचा लिया गया.कितने दूर दराज के गावों में फंसे पड़े हैं वहां तो धयान गया ही नहीं.कितने बह गए उसकी कोई गिनती नहीं. हो भी नहीं सकती सरकार हजारों के मरने के बावजूद सेंकडों का ही दावा कर रही है, क्योंकि सची बात से उसकी छवि ख़राब होती है.वह बहुत अच्छी तरह जानती है,कुछ दिन रो कर लोग चुप हो जायेंगे.
आदरणीय आप सही कह रहे हैं !!
सादर आभार !!
दुखद है .... ऐसी विपत्ति के समय तो सरकार चेते .....
हमारी सरकार विपति के समय कछुआ चाल से चल रही है !!
आभार !!
कोई बड़ी बात न होगी यदि इसके पीछे भी कोई सरकारी चाल छिपी हो, मगर इस आपदा के लिए केवल सरकार ही जिम्मेदार नहीं है कहीं न कहीं हम खुद भी इस संकट के जिम्मेदार हैं। माना की जितनी सहायता पहुंचनी चाहिए थी उतनी नहीं पहुँच पा रही है मगर प्रयास तो अब भी जारी है ज़रा यह भी तो सोचिए अगर इतना भी संभव ना हो पता तो क्या होता।
आभार !!
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