शनिवार, 17 अगस्त 2013

टिप्पणीकार टीसीए श्रीनिवास राघवन के मुताबिक 1946 में कांग्रेस को देश के पहले प्रधानमंत्री का चुनाव करना था। लेकिन उससे पहले कांग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव होना था। उस समय यह लगभग तय था कि कांग्रेस का अध्यक्ष ही देश का अगला प्रधानमंत्री बनेगा। तब कांग्रेस के अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद थे। कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव 1940 से भारत छोड़ो आंदोलन और दूसरे विश्व युद्ध के चलते छह सालों तक नहीं हो पाया था। इस माहौल में कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव शुरू हुआ। रेस में तीन नाम थे। मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू। कांग्रेस के नए अध्यक्ष के लिए नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 29 अप्रैल, 1946 थी। लेकिन 20 अप्रैल को ही गांधी जी ने आज़ाद के मुकाबले नेहरू को तरजीह देने का संकेत दे दिया था। 


नेहरू को लेकर गांधी जी की पसंद के बावजूद 15 प्रदेश कांग्रेस समितियों में से 12 ने सरदार पटेल का नाम आगे बढ़ाया। अन्य तीन समितियों ने भी नेहरू का नाम प्रस्तावित नहीं किया। लेकिन गांधी जी अपनी जिद पर अड़े थे। उन्होंने जेबी कृपलानी से नेहरू के पक्ष में माहौल बनाने के लिए कहा। इसके बाद कुछ लोगों के हस्ताक्षर जुटाए गए। हालांकि कांग्रेस का अध्यक्ष चुनने में इन लोगों की कोई भूमिका नहीं थी। यह अधिकार सिर्फ 15 प्रदेश कांग्रेस प्रमुखों के पास था। गांधी के कहने पर कृपलानी ने नेहरू को कांग्रेस का अगला अध्यक्ष बनाए जाने के लिए कुछ नेताओं के हस्ताक्षर जुटाए। टिप्पणीकार टीसीए श्रीनिवास राघवन के मुताबिक कृपलानी की कोशिश से नेहरू के पक्ष में जुटे हस्ताक्षरों को गांधी जी की वजह से किसी ने चुनौती नहीं दी। इसके बाद गांधी जी के कहने पर सरदार पटेल ने अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन वापस ले लिया। 


गांधी जी कहने पर जब पटेल ने 1946 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में अपना नामांकन वापस ले लिया तो गांधी जी ने यह बात नेहरू को बताई। लेकिन महात्मा गांधी की पूरी बात सुनने के बाद नेहरू ने सिर्फ चुप्पी से इसका जवाब दिया। नेहरू के लिए गांधी जी की इच्छा को देखते हुए कलाम ने भी अपने पैर पीछे खींच लिए। लेकिन राजेंद्र प्रसाद इस पूरे मामले को लेकर बहुत नाराज हुए। वे इस बात से नाराज थे कि पटेल को जबर्दस्ती नामांकन वापस लेना पड़ा। सरदार पटेल 15 में से 12 कांग्रेस प्रदेश समितियों के समर्थन के बावजूद पार्टी के अध्यक्ष पद के चुनाव से पीछे हट गए थे। टिप्पणीकार टीसीए श्रीनिवास राघवन के मुताबिक पटेल ने गांधी जी की इच्छा के सम्मान और जिन्ना के हिंदुस्तान को बांटने की कोशिशों का मुकाबला करते समय एकता बनाए रखने के लिए कांग्रेस के अध्यक्ष पद की रेस से अपने हाथ खींच लिए थे। इसी वजह से वे देश के पहले प्रधानमंत्री पद की रेस से भी बाहर हो गए।


कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मौलाना अबुल कलाम आजाद ने माना था कि पटेल पर नेहरू को चुनने का गांधी का फैसला गलत था। उन्होंने अपनी आत्मकथा में इस बारे में लिखा था। अबुल कलाम के निधन के बाद 1959 में प्रकाशित उनकी आत्मकथा में उन्होंने लिखा, 'यह मेरी गलती थी कि मैंने सरदार पटेल का समर्थन नहीं किया। हम कई मुद्दों पर अलग राय रखते थे। लेकिन मुझे लगता है कि अगर मेरे बाद पटेल कांग्रेस के अध्यक्ष बनते तो शायद कैबिनेट मिशन प्लान कामयाबी से लागू किया जाता। वे नेहरू की तरह जिन्ना को पूरे प्लान को बर्बाद करने का मौका देने जैसी गलती नहीं करते। मैं अपने को कभी माफ नहीं कर सकता। जब मैं सोचता हूं मैंने ये गलतियां नहीं की होतीं तो शायद बीते दस साल का इतिहास कुछ और होता।


कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मौलाना अबुल कलाम आजाद की तरह सी. राजगोपालाचारी ने भी लिखा, 'अगर नेहरू को विदेश मंत्री बनाया जाता और पटेल को प्रधानमंत्री तो बेशक अच्छा होता। मैं नेहरू को पटेल से ज्यादा समझदार समझने की गलती कर बैठा। पटेल को लेकर यह गलतफहमी बन गई थी कि वह मुस्लिमों के प्रति कठोर हैं। यह गलत सोच थी, लेकिन उस समय ऐसी ही पक्षपात पूर्ण बात पर जोर था।' राजगोपालाचारी पटेल से खफा रहते थे। उन्हें लगता था कि आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रपति बनने का अवसर पटेल के चलते उन्हें नहीं मिला। बावजूद इसके राजगोपालाचारी ने पटेल को लेकर ऐसी बात लिखी थी। 
( साभार : दैनिक भास्कर )

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