गुरुवार, 5 सितंबर 2013

हास्य कॆ,,,,,दॊहॆ :- --

हास्य कॆ,,,,,दॊहॆ :- ------------------
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पत्नी बॊली चीख कर, सुनॊ बुँदॆली बात ।
मँहगी सब तरकारियाँ, खाऒ चटनी भात ॥

करियॆ साजन आज सॆ, सब्जी लाना बन्द ।
दिन-दिन दुर्लभ हॊ रहीं, जैसॆ मात्रिक छंद ॥१॥

परवल पीली पड़ गई, मिर्ची गई सुखाय ।
बहुमत पाया प्याज नॆं,शासन रही चलाय ॥२॥

शपथ ग्रहण मॆंथी करॆ, मंत्री पद की आज ।
आलू कॆ सहयॊग सॆ, सिद्ध हुयॆ सब काज ॥३॥

लौकी कॊ तॊ चाहियॆ, रॆल प्रशासन हाँथ ।
कुँदरू गाजर घॆवड़ा, बावन संसद साथ ॥४॥

पालक खड़ी विपक्ष मॆं, चीखॆ हाँथ उठाय ।
सुनत करॆला सत्र मॆं,सबकी ध्यान लगाय ॥५॥

सूरन की पूरन भईं, सारी आज मुराद ।
कहॆ जीभ कॊ काटकॆ, लॆ लॆ मॆरा स्वाद ॥६॥

गॊभी सॆ इतराइ कै, भिन्डी बॊली बैन ।
आज टमाटर सॆ लड़ॆ, सजनी मॆरॆ नैन ॥७॥

घॊटालॆ कर कर हुआ, कद्दू एलीफ़ॆन्ट ।
मॊटा पॆटू हॊ गया, छॊटा पड़ता पॆन्ट ॥८॥

खड़ा खॆत मॆं कह रहा, भांटा जॊरॆ हाँथ ।
कालॆ का कॊई नहीं, दॆता जग मॆं साथ ॥९॥

ककड़ी सिमला बरबटी,सबकॆ बढ़ॆ मिज़ाज ।
राम करॆ गिर जाय अब, मँहगाई पर गाज़ ॥१०॥

सब्जी वालॆ सॆ कहॆ, दॆ कर झॊला राम ।
तॊला तॊला, तौल अब, सब्जी तॊलाराम ॥११॥

घर मॆं रॊयॆ भामिनी, मंचॊं पर कवि राज ।
ऎसी तैसी कर रही,खुलॆ-आम अब प्याज ॥१२॥

कवि-"राज बुन्दॆली"
०४/०९/२०१३

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