सोमवार, 11 अगस्त 2014

हमास समर्थकों के तर्क अजीब होते हैं !

किसी कहने वाले नें सच ही कहा है कि आप सबसे ज्यादा मुर्ख तब बनते हैं जब आप सामने वाले को मुर्ख बनाने का प्रयास करते हैं ! यह बात छद्मवेशी धर्मनिरपेक्षतावादियों पर सटीक बैठती है ! हिन्दुस्तान में होनें वाली हर साम्प्रदायिक घटना का इमानदारी से विश्लेषण करने की बजाय ये लोग भाजपा,आरएसएस पर रटी रटाई तोहमत मढ़ देते हैं ! लेकिन उनके पास इस बात का कोई जबाब नहीं होता कि पाकिस्तान,बांग्लादेश म्यांमार ,चीन,रूस जैसे देशों में तो आरएसएस और भाजपा का कोई वजूद नहीं है फिर वहाँ इस तरह की घटनाएं क्यों होती है !

आपको इन लोगों का दोहरा चरित्र हर समय देखने को मिलेगा ! इजरायल द्वारा गाजा में हमास नामक आतंकवादी संघटन पर की जाने वाली कारवाई पर इनका विधवा विलाप आपको सुनने को मिल जाएगा लेकिन हमास द्वारा पहले इजरायल पर दागे जाने वाले रोकेटों और बम हमलों पर इनके मुख से आवाज तक नहीं निकलेगी ! अब इनसे कोई पूछे कि भाई क्या हमास जो रोकेट और बम हमले करता है तो क्या उनसे फुल बरसते हैं और इजरायल की मिसाइलों से आग बरसती है ! इजरायल का जो लोग समर्थन करते हैं उन लोगों को राक्षस,शैतान जैसे अलंकरणों से नवाजते हुए कहते हैं कि मासूमों और बेगुनाहों की हत्याएं करने वाले शैतान और राक्षस ही हो सकते हैं ! मानता हूँ कि बेगुनाहों और मासूमों की हत्याएं करना अपराध है लेकिन हमास जो हमले करता है उनमें भी तो मासूम और बेगुनाह ही मारे जाते हैं ! फिर हमास और हमास समर्थकों को इन अलंकरणों से क्यों नहीं नवाजा जाता है !


यहाँ एक बात और गौर कीजिये कि पहल हमास की तरफ से की जाती है और उसके बाद इजरायल की तरफ से कारवाई की जाती है ! इजरायल अपनें नागरिकों को मरता हुआ कैसे देख सकता है उसको भी तो कारवाई करने का अधिकार है ! भारत भी पाक समर्थित आतंकवाद से ग्रसित है और कल को भारत भी पाक काबिज काश्मीर में आतंकवादी अड्डों पर कारवाई करता है तो क्या भारत को रोका जा सकता है ! हर देश को उसके नागरिकों की जान लेनें वालों के विरुद्ध कारवाई करने का अधिकार है ! गाजा में मासूमों और बेगुनाहों की चिंता करने वाले और चुस्ती फुर्ती से लिखने वाले ईराक,सीरिया,लीबिया जैसे देशों पर मौन धारण कर लेते हैं और उनकी लेखन शैली उनका साथ छोड़ देती है ! आखिर इन छद्म धर्मनिरपेक्षतावादीयों का यह दोहरा चरित्र क्यों ! जब मासूमों और बेगुनाहों की हत्याओं पर आक्रोश का ज्वार उठता है तो केवल गाजा को लेकर क्यों उठता है ! हर जगह हर देश में होनें वाली हत्याओं को लेकर उठना चाहिए ! 


दोहरा चरित्र आजमाकर आप किसी दूसरे को मुर्ख नहीं बनाते हैं बल्कि आपकी खुद की मूर्खता साबित कर देते हैं क्योंकि आप अपनें उलजुलूल तर्कों से स्वंय को सच्चा सिद्ध नहीं कर सकते क्योंकि सामने वाला भी दिमाग लेकर पैदा होता है ! लेकिन आपकी मूर्खता को वो जरुर समझ जाएगा ! खून खराबा गलत है और वो सब  जगह गलत है ! देश , काल,सीमाएं और समुदाय बदलनें से वो कहीं गलत और कहीं सही नहीं हो सकता है और जब तक आप इस बात को नहीं मानेंगे तब तक आपका दोहरा चरित्र ही दिखाई देने वाला है ! 

7 टिप्‍पणियां :

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

पूरणजी ने जो लिखा है,उससे मै सहमत हुं , इस
विषय पर हमसभी को गम्भीरता से विचार करना
चाहिये,आतंकवाद समस्त विश्व के लिये खतरा
बन चुका है,अपने नागरिकों की रक्छा हर देश का
कर्तब्य बनता है,वह चाहे इसराइल हो या कोई अन्य
देश | मीडिया को चाहिये जो सही हो वही दिखाए...

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सहर्ष आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

महाशय , अगर आपनें अपशब्दों का प्रयोग नहीं किया होता तो में आपकी टिप्पणी की इज्जत करते हुए जबाब जरुर देता ! लेकिन आपनें गलत शब्दों का प्रयोग करके आपकी टिप्पणी हटाने के लिए मजबूर कर दिया !

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

Shah Nawaz ने कहा…

हमास और इज़राईल की लड़ाई बिलकुल हमारे मुल्क की अंग्रेज़ों से लड़ाई जैसी ही है...

खैर! वोह लड़ रहे हैं, एक-दूसरे के फ़ौजियों को मारते हैं, कोई हाय-तौबा नहीं करता, क्योंकि जंग में फ़ौजी मरते ही हैं.... परेशानी उत्पन्न होती है सिविलियंस के मरने पर।

अगर बात सिर्फ इस बार की लड़ाई की ही करें तो अब तक इज़राईल के दो सिविलियंस मारे गए हैं, जिनको इंसाफ दिलाने के लिए ज़िम्मेदारों को सज़ा मिलनी चाहिए, मगर उन 2000 से ज़्यादा मारे गए फिलिस्तीनी सिविलियंस की हत्या को कैसे और कौन जायज़ ठहरा सकता है? उनका बदला कौन लेगा, कैसे मिलेगा? और अगर नहीं मिलता है तो फिर इन्साफ कहाँ हुआ?

कम से कम मैं तो नाइंसाफी का साथ नहीं ही दे सकता हूँ... चाहे वोह नाइंसाफी फिलिस्तीनियों के साथ हुई हो, इराकियों के साथ, सिरियाइयों, मिस्रियों के साथ हो, या फिर मेरे मुल्क़ के कश्मीरी पंडित या मुसलामानों के साथ हो या किसी भी दंगे में मारे गए किसी भी क़ौम के मासूम लोगो के साथ हुई हो।

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

शाह नवाज जी , आपके विचारों का सम्मान करते हुए कहना चाहूँगा कि बेगुनाहों के साथ नाइंसाफी का कोई भी समर्थन नहीं कर सकता है ! लेकिन कुछ लोग विरोधाभाषी रवैया अपनाते हैं ! जगह और लोग बदलते ही उनका रवैया बदल जाता है ! मैनें अपनें लेख में वही लिखा है कि अगर अत्याचार गलत है तो हर जगह वो गलत ही होना चाहिए ! अगर कोई एक जगह पर हो रहे अत्याचार पर तो मुखर आवाज उठाये और दूसरी जगह हो रहे अत्याचार पर मौन धारण कर ले तो उसको फिर उसका समर्थन क्यों ना समझा जाए !
आभार !!