मुजफ्फरनगर दंगे के कारण दंगों को लेकर फिर सवाल खड़े हुए हैं और जो सबसे बड़ा सवाल है उस पर शायद कोई चर्चा नहीं करना चाहता है ! सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या परिस्थितियों के कारण दंगे भडकते हैं या फिर दंगे भडकाए जाते हैं ! जहाँ तक पिछले १०-१५ सालों में हुए दंगों को देखा जाए तो एक बात साफ़ निकल कर आती है कि ये अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ खुरापाती लोगों द्वारा ये दंगे देश के बहुसंख्यक समाज पर थोपे गएँ हैं और उन दंगों के असली गुनहगारों को बचाने का कार्य छद्म सेक्युलर पार्टियों नें किया और उसका पूरा दोष मीडिया के उन छद्म सेक्युलरवादियों की मदद से बहुसंख्यक समाज पर थोपनें की कोशिश की जो इन्ही पार्टियों की नीतियों के समर्थक हैं !
अगर आप गौर करेंगे तो मेरी बात आपको भी समझ में आ जायेगी ! गुजरात दंगे को लेकर मीडिया में बहुत चर्चा हुयी लेकिन चर्चा हमेशा इकतरफा ही रही क्योंकि गुजरात दंगे की शुरुआत गोधरा की घटना से हुयी थी और गोधरा की घटना के बारे में सबको पता है कि वो कोई आकस्मिक घटना नहीं थी बल्कि पहले से योजना बनाकर उस घटना को अंजाम दिया गया था ! और उसके कारण ही आक्रोश फैला जिसमें व्यापक नरसंहार हुआ ! अगर गोधरा नरसंहार नहीं हुआ होता तो गुजरात में कोई भी दंगा नहीं होता इसलिए गुजरात दंगों के असली आरोपी तो वही हैं जिन्होनें गोधरा नरसंहार को अंजाम दिया था ! दो समुदायों के बीच अगर ऐसी शुरुआत कोई करता है तो फिर उसके परिणाम आगे जाकर क्या होंगे और कितनें भयानक होंगे यह किसी को पता नहीं होता है !
इसी तरह २०११ में राजस्थान के भरतपुर जिले के गोपालगढ़ में दंगा हुआ जिसका कारण ये था कि अल्पसंख्यक समाज के लोगों को पंचायत नें कब्रिस्तान के लिए जगह दे दी और उस जगह को लेकर विवाद चल रहा था ! उसी विवाद को जबरन सुलझाने और हर कीमत पर कब्रिस्तान बनाने को लेकर पांच हजार लोगों की भीड़ इकटठी हो गयी और जबरन वहाँ कब्रिस्तान बनाने की कोशिश की गयी जिसमें विवाद हो गया जिसको सुलझाने की कोशिश भी दो स्थानीय विधायकों नें की थी जिनमें एक विधायक अल्पसंख्यक समुदाय से ही थी और दोनों पक्षों को इसके लिए राजी भी कर लिया कि सरकारी फैसले के आनें तक का इन्तजार किया जाएगा और उस फैसले को दोनों समुदाय मानेंगे ! उसके बाद अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों नें ईदगाह से गोलीबारी करनी शुरू कर दी और मामला दंगे में बदल गया !