आज देश जब स्वतंत्रता दिवस की सड़सठवीं वर्षगाँठ मना रहा है उस समय क्या कारण है कि लोगों में उत्साह नहीं है बल्कि निराशा का वातावरण है ! ज्यों ज्यों आजादी मिलनें के वर्ष बीतते जा रहें है उसी तरह लोगों की यह सोच बलवती होती जा रही है कि उन्हें तो केवल आजादी के नाम पर छला जा रहा है और केवल सत्ता का हस्तांतरण भर हुआ है ! जहाँ केवल शासन करने वाले बदले है और कुछ नहीं बदला है ! नीतियां वही,कानून वही ,भाषा वही तो फिर बदला क्या है !
देश में पूंजी की असमानता तेजी से बढती जा रही है और सत्ताओं में बैठे लोग हकीकत से मुहं चुराते नजर आते हैं ! गरीबी अमीरी की बढती खाई को दूर करने के बजाय आंकड़ों के मायाजाल में उलझा रहे हैं ! देश का सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ता जा रहा है और सत्तानशीं उसको गंभीरता से लेनें के बजाय उल्टा बयानबाजी करके उसको प्रोत्साहित कर रहें हैं ! पिछले दौ सालों में देश भर में पच्चास से ज्यादा साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वाली घटनाएं हो चुकी है ! अर्थव्यवस्था रसातल में चली जा रही है और हमारी मुद्रा में लगातार गिरावट का दौर जारी है जिसके कारण हमारे सताधारी हमारे बाजार को आर्थिक सुधार के नाम पर लगातार विदेशियों के हवाले करते जा रहें हैं !
आजादी से पहले भी किसानों की हालत ज्यादा अच्छी नहीं थी लेकिन आज तो उससे भी बदतर होती जा रही है और कृषिप्रधान देश में किसानों की आत्महत्याओं के समाचार लगातार सुनने को मिल रहे हैं ! और इसके लिए हमारे सत्ताधारियों की विदेशों से आयातित वो नीतियां जिम्मेदार है जिनको कठघरे में खड़ा करना तक हमारे सत्ताधारियों को पसंद नहीं है ! कानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा चुकी है जिसके कारण हर किसी के अंदर भय का माहौल व्याप्त है ! सुरसा के मुहं की तरह बढती महंगाई नें लोगों की जेब को खोखला करनें में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है और जो लोग सत्ताओं पर बैठे हैं और देश की दशा और दिशा तय करनें की जिम्मेदारी जिन लोगों पर है उनके तमाम वायदे खोखले साबित हो चुके हैं !