भारत सरकार आधार कार्ड को अनिवार्य जैसा ही करती जा रही है जबकि पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय नें स्पष्ट तौर पर सरकार को कहा था कि आधार कार्ड अनिवार्य नहीं किया जा सकता है ! और तत्कालीन सरकार नें भी सर्वोच्च न्यायालय में यही कहा था कि आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है ! तब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी नें तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी पर निशाना साधते हुए आधार कार्ड को जनता के पैसे की फिजूलखर्ची बताया था ! लेकिन उन्ही नरेंद्र मोदी जी नें जब सत्ता संभाली तो उसी फिजूलखर्ची को बदस्तूर जारी रखा ! जबकि आधार कार्ड बनाने को लेकर कई तरह की खामियां तो समय समय पर उजागर होती ही रही है साथ ही कई विशेषज्ञ इसको सुरक्षा के लिए खतरा भी मान रहे हैं !
अब भारत का गृह मंत्रालय कह रहा है कि आधार कार्ड को पते की प्रमाणिकता अथवा नागरिकता का प्रमाणपत्र नहीं माना जा सकता है ! अब सरकार द्वारा जनता को यह बताना चाहिए कि जब सरकार की नजर में आधार कार्ड ना तो भारतीय नागरिक होनें का और ना ही कहीं का मूलनिवासी होनें का वैध दस्तावेज है तो फिर इस तरह के निराधार कार्ड को बनाने का औचित्य क्या है ! क्यों जनता के पैसे को पानी की तरह बहाया जा रहा है ! जबकि पहले से ऐसे दस्तावेज़ मौजूद थे जो मूलनिवासी होनें के प्रमाणपत्र तो माने ही जाते रहे हैं तो फिर क्यों इस तरह के एक नए निराधार कार्ड को बनवाने के लिए लोगों को मजबूर किया जा रहा है ! जान बूझकर जनता के पैसे की बर्बादी का इससे बड़ा उदाहरण मेरी नजर में हो नहीं सकता !
एक तरफ सरकार सभी भारतियों के बायोमेट्रिक ब्योरे आधार कार्ड के नाम पर इकट्ठा कर रही है जो अगर चोरी हो जाते हैं तो आगे जाकर भारतीय नागरिकों के लिए मुसीबत खड़ी कर सकते हैं ! खासकर ख़ुफ़िया सेवाओं से जुड़े लोगों के लिए तो निश्चित ही ये ब्योरे चोरी होनें की दशा में मुसीबत का कारण बन ही सकते हैं ! तो दूसरी तरफ आधार कार्ड का कोई आधार ही सरकार के पास है ! सरकार तमाम आशंकाओं के बावजूद अनवरत रूप से आधार कार्ड बनाती जा रही है जबकि पिछले दिनों हनुमानजी का आधार कार्ड सामने आने के बाद ये तो पता चल ही गया कि आधार कार्ड बनाने वाली कम्पनी इसको बनाने में कितनी सावधानी बरतती है ! इस तरह की ख्यामखाली के बावजूद सभी देशवासियों के बायोमेट्रिक ब्योरे इकट्ठा करना कहाँ तक सही है इसका जबाब अभी तक सरकार के पास भी नहीं है !