मैंने जो कुछ भी गाया है तुम उसको नारे बतलाओ
मुझे कोई परवाह नहीं है मुझको नारेबाज बताओ
लेकिन मेरी मजबूरी को तुमने कब समझा है प्यारे |
लो तुमको बतला देता हूँ मैंने क्यूँ गाये हैं नारे ||
जब दामन बेदाग न हो जी ,अंगारों में आग न हो जी
घूँट खून के पीना हो जी,जिस्म बेचकर जीना हो जी
मेहनतकश मजदूरों का भी,जब बदनाम पसीना हो जी
जनता सुना रही हो नारे,संसद भुना रही हो नारे
गम का अँगना दर्द बुहारे,भूखा बचपन चाँद निहारे
कोयल गाना भूल रही हो,ममता फाँसी झूल रही हो
मावस के डर से भय खाकर,,पूनम चीख़े और पुकारे
हो जाएँ अधिकार तुम्हारे,रह जाएँ कर्तव्य हमारे
छोड़ - छाड़ जीवन-दर्शन को तब लिखने पड़ते हैं नारे |
इसीलिए गाता हूँ नारे इसीलिए लिखता हूँ नारे ||
निर्वाचन लड़ते हैं नारे,चांटे से जड़ते हैं नारे
सत्ता की दस्तक हैं नारे,कुर्सी का मस्तक हैं नारे
गाँव-गली, शहरों में नारे,,सागर की लहरों में नारे
केसर की क्यारी में नारे,घर की फुलवारी में नारे
सर पर खड़े हुए हैं नारे,,दाएँ अड़े हुए हैं नारे
नारों के नीचे हैं नारे,नारों के पीछे हैं नारे
जब नारों को रोज पचाने ,को खाने पड़ते हों नारे
इन नारों से जान बचाने,को लाने पड़ते हों नारे
छोड़ गीत के सम्मोहन को तब लिखने पड़ते हैं नारे |
इसीलिए गाता हूँ नारे इसीलिए लिखता हूँ नारे ||