रविवार, 30 जून 2013

मुंडे नें ऐसा क्या कह दिया जिसका पता चुनाव आयोग को नहीं था !!

भाजपा के वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे के चुनावी खर्च पर दिए गए बयान को लेकर चुनाव आयोग उनको नोटिस भेजने की तैयारी कर चूका है ! और अगर बयान सही पाया गया तो उनके ऊपर कार्यवाही भी की जा सकती है लेकिन आखिर गोपीनाथ मुंडे नें कोई ऐसी बात तो कही नहीं जिसके बारे में देश नहीं जानता हो ! हर कोई जानता है कि चुनावों में किस तरह पैसा पानी की तरह बहाया जाता है ! इस देश का हर विधायक और हर सांसद झूठा हलफनामा और चुनावी खर्च का ब्यौरा चुनाव आयोग को देता है ! फर्क यही है कि बाकी लोग अपनी बात को अपनें मुहं से स्वीकार नहीं करते हैं और गोपीनाथ मुंडे नें आवेग में आकर वो बात स्वीकार कर ली !  

आज जो चुनावी खर्च हो रहा है उसके बारे में पूरा देश जानता है तो क्या चुनाव आयोग में बैठे अधिकारी इस हकीकत से अनजान है ! जमीनी तौर पर आज की हकीकत को देखा जाए तो आज मनरेगा लागू होने के बाद कई जगह तो सरपंचों के चुनाव में सतर से अस्सी लाख रूपये खर्च किये जा रहे हैं ! जबकि हमारा चुनाव आयोग द्वारा सांसदों के लिए खर्च की सीमा चालीस लाख निर्धारित की गयी है और सरपंचों के लिए तो ये सीमा पांच हजार रूपये ही है ! सरपंचों के चुनावों में अधिकतम खर्च वाली चुनिन्दा जगहों को अलग भी कर दें तो भी पांच लाख से कम में तो आज कहीं भी सरपंच का चुनाव ही नहीं लड़ा जा रहा है ! जिसका जिक्र मैंने अपने एक आलेख "अवैध चुनावी चंदा ही भ्रष्टाचार की असल जड़ है " में किया था !

अब इस तरह से अंधाधुंध खर्च हो रहा है तो इसका जिम्मेदार कौन है ! क्या चुनाव आयोग इसके लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं है क्योंकि चुनावी खर्च की निगरानी का काम तो चुनाव आयोग का ही है ! अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि चुनाव आयोग का दायित्व संभाल रहे लोग इससे अनभिज्ञ हो और अनभिज्ञ है तो यह तो और भी चिंता की बात है ! क्योंकि जो लोग खुद अनभिज्ञ है वो अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कैसे कर पायेंगे ! और अगर अनभिज्ञ नहीं है तो फिर उन्हें सोचना चाहिए कि क्यों वो जिन्दा मक्खी निगलने को तैयार है !