हमारे देश में शासन व्यवस्था के आज के हालत देखें तो लोकतंत्र के नाम पर छद्म लोकतंत्र ही दिखाई देता है जिसमें लोकतंत्र होनें का आभास तो होता है लेकिन हकीकत स्थति उसके उलट दिखाई देती है ! संविधान नें भारतीय लोकतंत्र को सही तरीके से चलाने के लिए तीन स्तंभों विधायिका ,न्यायपालिका और कार्यपालिका को इसकी जिम्मेदारी दी गयी है और इसके लिए विधायिका को सबसे ज्यादा अधिकार प्रदान किये गये थे और उसका कारण था विधायिका का सीधा जनता द्वारा चुनाव होना लेकिन संविधान निर्माताओं नें कभी इस बात की सपनें में भी कल्पना नहीं की होगी कि विधायिका को दी गयी ज्यादा शक्तियां ही लोकतंत्र को छद्म लोकतंत्र में परिवर्तित करनें में उसके लिए मददगार होगी !
आजादी के बाद से ही विधायिका नें अपनें अधिकारों का दुरूपयोग करके ना केवल न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में दखलंदाजी की बल्कि कार्यपालिका को भी अपनें कब्जे में कर लिया ! और संविधान की मूल भावना का भी दोहन इसी विधायिका नें ही किया है ! संविधान की प्रस्तावना ( हम भारत के लोग ,भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन ,समाजवादी,पंथनिरपेक्ष ,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को : सामाजिक,आर्थीक और राजनितिक न्याय ,विचार,अभिव्यक्ति,विश्वास,धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करनें के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनें वाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनीं इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई० ( मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी , संवत दौ हजार छ: विक्रमी ) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत ,अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं ) को पढ़िए जो हमारे देश के संविधान की मूल भावना है ! जो हमारी शासन व्यवस्था के मूल से ही गायब हो चुकी है !
संविधान की प्रस्तावना में दिए गये एक एक शब्द की धज्जियां विधायिका नें अपने तरीके से उडाई है ! संविधान की प्रस्तावना में भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन ,समाजवादी,पंथनिरपेक्ष ,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए लिखा गया है लेकिन हमारे देश की विधायिका नें इसके उलट कार्य किये हैं ! चीन ,पाकिस्तान जैसे देश हमारी सम्प्रभुता को लगातार चुनौती देते आ रहें हैं लेकिन हमारी विधायिका घोड़े बेचकर सो रही है ! हमारे देश के लोगों के विरुद्ध विदेशों में अन्याय होता है तो भी हमारी विधायिका मौन धारण किये बैठे रहती है ! फिर कैसे सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन होनें की बात कही जा सकती है ! समाजवाद का हाल तो ऐसा है कि देश की तीन चौथाई जनता कुपोषण का शिकार है पूंजी महज कुछ लोगों तक सिमट कर रह गयी है !