बुधवार, 24 जुलाई 2013

राजनैतिक विरोधाभास में क्या देश की गरिमा से खिलवाड़ किया जाना सही है !

जिस तरह से देश के ६५ माननीय (?) सांसदों नें अमेरिका को पत्र लिखकर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को पत्र लिखकर फेक्स के जरिये भेजा है वो ना केवल आपतिजनक है बल्कि इस देश की संप्रभुता, कानून व्यवस्था,न्याय व्यवस्था और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाने जैसा भी है जिसको हलके में कतई नहीं लिया जाना चाहिए ! क्योंकि इसके पीछे उनकी मंशा और सोच भले ही राजनैतिक विरोध की रही हो लेकिन उन्होंने इस सोच में दूसरे देश के सामने भारतीय व्यवस्था पर अविश्वास जताने जैसा काम किया है जिसके लिए उनका विरोध होना ही चाहिए !

उनके इस पत्र को लेकर कई तरह के सवाल खड़े होते हैं और उनमें सबसे पहला सवाल तो यही है कि क्या किसी को यह अधिकार है कि वो किसी भी वैध भारतीय नागरिक को वीजा देनें से रोकनें की मांग करे और मांग करनें वाले खुद सांसद हो तो और भी ज्यादा सवालों के घेरे में आ जाते हैं क्योंकि भारत में चुनी हुयी सरकार है और विदेश जानें वालों को उसी सरकार की और से वैध पासपोर्ट मिलता है और हर कोई जानता है कि विना वैध पासपोर्ट के वीजा की कोई अहमियत नहीं है तो फिर किसी के विदेश जानें को लेकर किसी को आपति है तो भारत सरकार को उचित कारण के साथ पासपोर्ट रद्द करवाने के लिए लिखना चाहिए ना कि विदेशी सरकार से वीजा ना देनें की अपील करके देश की किरकिरी करवाएं !

हालांकि मोदी के वीजे को लेकर खुद भारत सरकार भी कठघरे में खड़ी है क्योंकि जब भी अमेरिका द्वारा मोदी को वीजा नहीं देनें की बात कही गयी थी उस समय भारत सरकार नें अमेरिका के इस कथन का विरोध नहीं किया ! जबकि नीतिगत आधार पर इसका विरोध होना चाहिए था क्योंकि मोदी भारतीय नागरिक है और एक राज्य के मुख्यमंत्री भी हैं ! और मोदी अभी तक किसी भी मामले में दोषी साबित नहीं हुए है उसके बावजूद अमेरिका का मोदी को दोषी मानना और उनको वीजा नहीं देना भारतीय न्याय व्यवस्था पर अविश्वास करना जैसा है जिसका विरोध किया जाना जरुरी था लेकिन भारत सरकार नें ऐसा नहीं किया और उसनें कूटनीतिक तौर पर सोचनें के बजाय भारत की अंदरूनी राजनितिक सोच को आगे रखा !