निजामुद्दीन मरकज द्वारा इतना बड़ा अपराध करने के बावजूद सरकार उसके ऊपर कारवाई करने से बचना क्यों चाहती है यह समझ में नहीं आ रहा है ! सरकार मौलाना साद और ५-६ अन्य लोगों के ऊपर कारवाई करके इस मामले में लीपापोती ही करना चाहती है ! अगर सरकार की मंशा वाकई कारवाई की होती तो मरकज पर अभी तक बेन लग जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ जिससे सरकार की मंशा पर शक होना लाजमी है !
मरकज मामले में सरकार की भूमिका पहले दिन से ही संदेह के घेरे में आ गयी थी जब खबर ये आई कि अमित शाह के कहने पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल मरकज के मौलाना साद को समझाने के लिए मरकज गए थे ! ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या सरकार को सब पहले से ही पता था और निचले स्तर के अधिकारियों के समझाने से मौलाना नहीं माने थे और सरकार नें अंतिम प्रयास के तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को भेजा था ! अगर ऐसा था तो भी सरकार पर ही सवाल उठेंगे कि जो व्यक्ति या संस्था ऐसी संकटकालीन परिस्थति में भी किसी की नहीं सुन रही थी तो उसकी मिन्नतें करने की जगह कारवाई क्यों नहीं की गयी !