भारत की आजादी से पहले राजशाही हुआ करती थी जिसमें राजा को चुनने के लिए कोई चुनाव का प्रावधान नहीं होता था बल्कि वंशवाद के आधार पर ही उनका उतराधिकारी तय होता था ! कुछ कुछ वैसी हालत ही आज की ज्यादातर राजनैतिक पार्टियों की है जिनमें वंशवाद के आधार पर ही पार्टी के उतराधिकारी थोप दिए जाते है ! कैसी विडम्बना है कि लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में शासन करने वाली पार्टियां खुद अपने उतराधिकारी का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से करने का केवल दिखावा भर करती है !
देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस आजादी के बाद से लेकर अभी तक वंशवाद की बेड़ियों से बाहर नहीं निकल पायी है और आगे भी इससे बाहर निकलती दिखाई नहीं दे रही है ! समाजवादी लहर की उपज लालू यादव और मुलायम सिंह यादव की पार्टी राजद और सपा वंशवाद के रास्ते पर चल ही रही है और दोनों पार्टियां नए नए राजनितिक वारिश तैयार करने कि हौड़ में सबसे आगे दिखाई डे रही है ! शिवसेना भी तो परिवारवाद के रास्ते पर ही आगे बढ़ रही है ! जिसमें आजकल बालासाहेब ठाकरे के पुत्र और पोत्र शिवसेना की बागडोर संभाले हुए हैं ! राज ठाकरे कि मनसे भी इससे अलग नहीं है और उसके कर्ता धर्ता राज ठाकरे भी तो वंशवाद कि ही उपज है !
हरियाणा में भी कांग्रेस विरोध के नाम पर बनी हजका और इनेलो जैसी पार्टियां भी बुरी तरह से वंशवाद में जकड़ी हुयी है ! उधर रामविलास पासवान कि पार्टी लोजपा भी उसी रास्ते पर जाति हुयी दिख रही है ! आंध्र में वाईएसआर कांग्रेस भी इसी वंशवादी परम्परा कि उपज है तो सोनिया के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से अलग होकर बनी पार्टी राकांपा में भी महाराष्ट्र में शरद पंवार परिवारवाद को ही आगे बढ़ा रहे हैं तो दूसरी तरफ पूर्वोतर में पी.के.संगमा (जो अब इसमें नहीं है ) भी परिवारवाद को ही हावी करते जा रहे हैं !