शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

अध्यादेश वापिस लेनें में राजनितिक नौटंकी के सिवा क्या था !!

राजनीति में अंदरूनी तौर पर रणनीतियाँ तो बनती है और उन्ही रणनीतियों के अनुरूप ही राजनितिक पार्टियां निर्णय लेती भी है ! लोकतंत्र में जनता सर्वोपरी होती है और यह सब जनता पर अपनी पार्टी का प्रभाव जमाने के लिए और जनता के वोट हासिल करने के लिए ही पार्टियां करती है ! लेकिन रणनीतियाँ बनाने और उन्हें अमलीजामा पहनाने के लिए भी कुशलता चाहिए वर्ना सफलता के बजाय असफलता हाथ लगती है !

अब देखिये ना दागी सांसदों और विधायकों पर आये सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को बदलने के लिए सरकार नें जो अध्यादेश राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा था उस पर कांग्रेस की सारी की सारी रणनीति हवा हो गयी और उससे ना निगलते बना और ना उगलते बना और  हर तरफ से मात ही मात हिस्से में आई !जहां एक और राष्ट्रपति नें अध्यादेश को लेकर सवाल खड़े करके जनता में विश्वास जगाया वहीँ कांग्रेस का यह मुगालता भी हवा हो गया कि कांग्रेस समर्थित राष्ट्रपति हैं इसलिए अध्यादेश पर बिना ना नुकर किये हस्ताक्षर कर देंगे ! कांग्रेस के रणनीतिकारों को इस बात का अंदेशा तक नहीं था कि राष्ट्रपति का रुख इस तरह का रहेगा ! 

जब राष्ट्रपति नें चार मंत्रियों को बुलाकर राष्ट्रपति नें अपनें रुख का इजहार किया तो कांग्रेस रणनीतिकारों नें आनन् फानन में एक नयी रणनीति का खाका तैयार किया ! जिसमें उन्होंने योजना तो बनायी जनता के बीच राहुल गांधी की छवि बनाने की लेकिन मामला उल्टा पड़ गया ! जिस तरह की राजनितिक नाटकबाजी हुयी उसे देखकर कांग्रेस के रणनीतिकारों पर सतर के दशक की हिंदी फिल्मों का प्रभाव साफ़ दिखाई पड़ रहा है ! उन फिल्मों में एक दृश्य होता था जिसमें नायक भाड़े के गुंडों को नायिका को छेडने के लिए कहता है और ऐनवक्त पर आकर गुंडों की पिटाई करता है ताकि नायिका पर उसका प्रभाव पड़ता और उनकी जान पहचान हो जाती थी ! कुछ वैसा ही इस राजनितिक नाटकबाजी में देखनें को मिला !