रविवार, 21 अक्तूबर 2012

मन्त्र शक्ति मात्र एक ढकोसला नहीं बल्कि विज्ञान है !!


मंत्र ध्वनि-विज्ञान का सूक्ष्मतम विज्ञान है मंत्र-शरीर के अन्दर से सूक्ष्म ध्वनि को विशिष्ट तरंगों में बदल कर ब्रह्मांड में प्रवाहित करने की क्रिया है जिससे बड़े-बड़े कार्य किये जा सकते हैं ! प्रत्येक अक्षर का विशेष महत्व और विशेष अर्थ होता है ! प्रत्येक अक्षर के उच्चारण में चाहे वो वाचिक,उपांसू या मानसिक हो विशेष प्रकार की ध्वनि निकलती है तथा शरीर में एवं विशेष अंगो नाड़ियों में विशेष प्रकार का कम्पन पैदा करती हैं जिससे शरीर से विशेष प्रकार की ध्वनि तरंगे निकलती है जो वातावरण-आकाशीय तरंगो से संयोग करके विशेष प्रकार की क्रिया करती हैं ! विभिन्न अक्षर (स्वर-व्यंजन) एक प्रकार के बीज मंत्र हैं ! 

विभिन्न अक्षरों के संयोग से विशेष बीज मंत्र तैयार होते है जो एक विशेष प्रकार का प्रभाव डालते हैं, परन्तु जैसे अंकुर उत्पन्न करने में समर्थ सारी शक्ति अपने में रखते हुये भी धान,जौ,गेहूँ अदि संस्कार के अभाव में अंकुर उत्पन्न नहीं कर सकते वैसे ही मंत्र-यज्ञ आदि कर्म भी सम्पूर्ण फलजनित शक्ति से सम्पन्न होने पर भी यदि ठीक-ठीक से अनुष्ठित न किये जाय तो कदापि फलोत्पादक नहीं होते हैं ! घर्षण के नियमों से सभी लोग भलीभातिं परिचित होगें ! घर्षण से ऊर्जा आदि पैदा होती है ! मंत्रों के जप से भी श्वास के शरीर में आवागमन से तथा विशेष अक्षरों के अनुसार विशेष स्थानों की नाड़ियों में कम्पन(घर्षण) पैदा होने से विशेष प्रकार का विद्युत प्रवाह पैदा होता है, जो साधक के ध्यान लगाने से एकत्रित होता है तथा मंत्रों के अर्थ (साधक को अर्थ ध्यान रखते हुए उसी भाव से ध्यान एकाग्र करना आवश्यक होता है) के आधार पर ब्रह्मांड में उपस्थित अपने ही अनुकूल उर्जा से संपर्क करके तदानुसार प्रभाव पैदा होता है !