किसी भी देश की शिक्षा पद्धति उस देश के आगामी भविष्य को तय करती है और उस देश का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि जो शिक्षा दी जा रही है वो आने वाले भविष्य की समस्याओं का सामना करने वाली पीढ़ी तैयार कर पा रही है या नहीं कर पा रही है ! जहां तक भारत के सन्दर्भ में देखें तो हमारी शिक्षा पद्धति इस तरह की लगती नहीं है और अब आजादी के पैंसठ सालों के बाद देखकर तो ऐसा लगता है कि हमारी शिक्षा पद्धति समस्याओं का सामना करने वाली पीढ़ी तैयार करने की बजाय समस्याएं ज्यादा पैदा करने वाली पीढ़ी ही तैयार कर रही है !
दरअसल आजादी मिलनें के बाद हमनें अपने हिसाब से कोई शिक्षा पद्धति बनायी ही नहीं और लोर्ड मेकाले द्वारा लागू की गयी उस शिक्षा पद्धति को ही अपना लिया जिसका उद्धेश्य ही भारतियों के मन में अंग्रेजों के वर्चस्व को स्थापित करना था ! और उस शिक्षा पद्धति का परिणाम ही है कि हम सदियों पहले भारतियों द्वारा खोज की गयी किसी बात पर तब तक विश्वास नहीं कर पाते हैं जब तक पश्चिमी देशों से जुड़े हुए कोई वैज्ञानिक अथवा चिकित्साविद्द उस पर अपनी मोहर ना लगा दे ! हम अपनी और से उस सच्चाई को जानने का प्रयास भी नहीं करते हैं जबकि पश्चिमी देशों के लोग जब प्रयास करते हैं और हमारे ही ज्ञान को हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं तो हम बिना विचार किये उसको स्वीकार और अंगीकार कर लेते हैं ! और मैकाले की शिक्षा पद्धति की यही सबसे बड़ी सोच थी जो कारगर होती हुयी दिखाई पड़ रही है !
हमनें हमारी शिक्षा पद्धति को केवल और केवल साक्षरता तक सिमित करके रख दिया है जिसको रोजगारोन्मुखी बनाने के बारे में कभी सोचा ही नहीं और सोचते भी कैसे हमनें तो अपनी अलग से कोई शिक्षा पद्धति बनायी ही नहीं ! जिसका परिणाम सामने हैं आज बेरोजगारों की लंबी लाइन देश में लगी हुयी है ! दरअसल इस बढती बेरोजगारी के पीछे हमारी ज्यादा जनसँख्या नहीं है बल्कि हमारी गलत शिक्षा पद्धति है ! अगर हमनें हमारी शिक्षा पद्धति को रोजगारोन्मुखी बनाया होता तो आज यही ज्यादा जनसँख्या हमारी आर्थिक सम्पनता को बढाने वाली होती लेकिन अफ़सोस हमनें इस और ध्यान ही नहीं दिया ! जिसका परिणाम यह हुआ कि इस शिक्षा पद्धति से निकले युवाओं के सामने नौकरी ही एकमात्र लक्ष्य रह जाता है ! और हमारे पास इतनी नौकरियां देने के लिए है नहीं जिससे बेरोजगारी दूर हो जाए ! इसलिए हमारी बढती बेरोजगारी के पीछे हमारी दोषपूर्ण शिक्षा पद्धति ही है !