होली और दीपावली हिंदुओं के दो प्रमुख त्यौहार है ! और हर कोई इन त्योहारों को बहुत उमंग और उत्साह से मनाना चाहता है लेकिन इन्ही दोनों त्योहारों से पहले मीडिया और अन्य लोगों का प्रलाप चालू हो जाता है ! जिसमें होली पर तो कहा जाता है कि पानी व्यर्थ खर्च मत करो और पानी से होली मत खेलिए ! इसी तरह का प्रलाप दीपावली से पहले चालू हो जाता है और जो लोग अपनें को समझदार मानते है वो कहते हैं कि पटाखे मत जलावो इससे वायु प्रदुषण और ध्वनि प्रदुषण होता है ! हालांकि में भी मानता हूँ कि पटाखों से प्रदुषण होता है और पानी कि महता को तो कोई नकार भी नहीं सकता ! लेकिन मेरा सवाल ऐसे लोगों से सीधा है कि ये त्यौहार हिंदुओं कि भावनाओं से जुड़े हुए है और ऐसी दलीलें देने वालों कि इस तरह कि बातों कि याद हिंदुओं के त्योहारों पर ही क्यों आती है जबकि बाकी मौकों पर ये सभी लोग चैन कि नींद सोते हैं !
माना कि पानी कि जरुरत है और पानी को बचाना भी बहुत जरुरी है ! लेकिन तब ये लोग कहाँ चले जाते हैं जब जल सरंक्षण कि बात आती है और बारिश के दिनों में सारा का सारा पानी नदियों में बहकर समुद्र में चला जाता है ! अगर उस पानी का सही तरीके से सरंक्षण हो और देश कि सब नदियों को आपस में जोड़ा जाए तो कभी भी कहीं भी सूखे के हालात ही नहीं पैदा होंगे ! जल सरंक्षण कि बात करने वाले लोग बहुत कम संख्या में नजर आते हैं ! होली के समय जो लोग पानी बचाने कि वकालत करते हैं वो लोग भी अपनी आवाज उन लोगों के साथ नहीं मिलाते हैं जो लोग जल सरंक्षण के लिए मुहीम चलाते है !
इसी तरह इनको होली के मौके पर होने वाली पानी कि बर्बादी की तो परवाह हो जाती है जिससे करोड़ों हिंदुओं कि भावनाएं और उमंगे जुडी रहती है लेकिन उन्ही लोगों को देश भर के कत्लखानों में रोजाना होने वाली पानी कि बर्बादी दिखाई नहीं देती है ! जहां पर पशुओं को काटा जाता है वहाँ पर लाखों लीटर पानी कि रोज बर्बादी होती है और उन कत्लखानों से निकलने वाला वही पानी जिसमें पशुओं का खून और गंदगी सम्मिलित होती है नदियों में जाकर जल को प्रदूषित करने का काम करता है ! लेकिन उनको वो पानी कि बर्बादी भी दिखाई नहीं देती और नदियों में होने वाला प्रदुषण भी दिखाई नहीं देता है !
माना कि पानी कि जरुरत है और पानी को बचाना भी बहुत जरुरी है ! लेकिन तब ये लोग कहाँ चले जाते हैं जब जल सरंक्षण कि बात आती है और बारिश के दिनों में सारा का सारा पानी नदियों में बहकर समुद्र में चला जाता है ! अगर उस पानी का सही तरीके से सरंक्षण हो और देश कि सब नदियों को आपस में जोड़ा जाए तो कभी भी कहीं भी सूखे के हालात ही नहीं पैदा होंगे ! जल सरंक्षण कि बात करने वाले लोग बहुत कम संख्या में नजर आते हैं ! होली के समय जो लोग पानी बचाने कि वकालत करते हैं वो लोग भी अपनी आवाज उन लोगों के साथ नहीं मिलाते हैं जो लोग जल सरंक्षण के लिए मुहीम चलाते है !
इसी तरह इनको होली के मौके पर होने वाली पानी कि बर्बादी की तो परवाह हो जाती है जिससे करोड़ों हिंदुओं कि भावनाएं और उमंगे जुडी रहती है लेकिन उन्ही लोगों को देश भर के कत्लखानों में रोजाना होने वाली पानी कि बर्बादी दिखाई नहीं देती है ! जहां पर पशुओं को काटा जाता है वहाँ पर लाखों लीटर पानी कि रोज बर्बादी होती है और उन कत्लखानों से निकलने वाला वही पानी जिसमें पशुओं का खून और गंदगी सम्मिलित होती है नदियों में जाकर जल को प्रदूषित करने का काम करता है ! लेकिन उनको वो पानी कि बर्बादी भी दिखाई नहीं देती और नदियों में होने वाला प्रदुषण भी दिखाई नहीं देता है !