हमारे देश में इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है कि हिंदी को मातृभाषा का दर्जा तो मिल गया लेकिन आज भी उसको राजभाषा के तौर पर लागू नहीं करवा पाए हैं और उसके लिए आज भी आंदोलन करना पड़ता है और उसके लिए शांतिपूर्ण आंदोलन करनें वाले लोगों को सरकार तिहाड़ जेल भिजवा देती है ! कैसे कह दें कि ये भारतीय राज है क्योंकि आज भी कारनामें अंग्रेजी राज के ही है ! ऐसा लगता है हिंदी की बात करना ही इस देश में गुनाह हो गया है !
पिछले दिनों भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह द्वारा हिंदी के पक्ष में बोलनें पर मीडिया और सरकार चला रही पार्टी के नेताओं का आक्रामक रुख देखनें को मिला जैसे राजनाथ सिंह नें कोई बहुत ही जघन्यकारी बात कह दी हो और उसके पक्ष में और विपक्ष में बोलनें वालों की लाइन लग गई ! लेकिन जब दिल्ली की पुलिस नें हिंदी के जुनूनी सेनानी श्यामरुद्र पाठक जी को गिरप्तार करके तिहाड़ जेल भेज दिया तो उन्ही सब लोगों की जबान पर ताला लग गया और किसी की जुबान से एक शब्द तक नहीं निकला ! शब्द निकलना तो दूर बल्कि मीडिया नें इसकी भनक तक नहीं लगनें दी !
श्यामरुद्र जी पाठक पिछले २६० दिनों से अदालतों में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ के पक्ष में अपना आंदोलन कर रहे थे और उन्होंने अपनें आंदोलन का दायरा दस जनपथ के आसपास तय कर रखा था जिसके कारण उन्हें पुलिस पकड़ कर ले जाती और दिल्ली के तुगलक रोड़ थानें में बिठाकर दिन भर रखती और रात को छोड़ देती और ये हिंदी का जुनूनी सेनानी फिर उसी तरह से अपनें आंदोलन में लग जाता ! यह सिलसिला लगातार चल रहा था लेकिन पिछले २०-२५ दिनों से श्यामरूद्र पाठक जी नें आमरण अनशन चालु कर दिया था ! जिसके बाद दिल्ली पुलिस नें उन्हें उठाकर तिहाड़ जेल में डाल दिया है !