शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

एक समान शिक्षा निति क्यों नहीं लागू हो सकती !

हमारी सरकारें शिक्षा के नाम पर तमाम दावे करती है लेकिन उन दावों में कोई सच्चाई नजर नहीं आती है ! भारत में तक़रीबन साढे छ: लाख गाँव है और गाँवों में चल रहे सरकारी विद्यालयों में जाकर देखेंगे तो आपको सरकारी दावों की सच्चाई का पता चल जाएगा ! उन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मिल रही शिक्षा देखेंगे तो आप सोचने पर विवश हो जायेंगे ! किसी दिन किसी भी गाँव के सरकारी विद्यालय का भ्रमण कर लीजिए ! आधी स्थति तो आपके सामनें विधालय में घुसते ही आ जायेगी और बाकी आधी आप उस विद्यालय के शिक्षकों से बात करेंगे तो सामने आ जायेगी !

सरकारी विधालयों को सरकारी घोषणाओं के आधार पर कर्म्मोनत तो कर दिया जाता है लेकिन अध्यापकों के नाम पर आज भी हर विद्यालय में शिक्षकों की कमी है ! और यह कोई दो चार साल से नहीं हो रहा है बल्कि पिछले दो दशक से यही हो रहा है और उसमें भी पिछले एक दशक में तो यह ज्यादा ही हुआ है ! कमी के बावजूद शिक्षकों पर हर वो काम थोपा गया जिसका असर छात्रों की पढ़ाई पर पड़ना तय था ! वोट करवाना , जनगणना करवानी , गाँवों में पशुओं की गिनती , पोलियो की दवा पिलाने ,मिड डे मिल जैसे तमाम काम कमी के बावजूद शिक्षकों के जिम्मे डाल दिए ! जिसका परिणाम जो होना था वही हुआ और शिक्षा का व्यापार शुरू हो गया और इसके पीछे सरकारों की नीतियां जिम्मेदार रही !

इन सब बातों का प्रभाव उन विद्यालयों में पढनें वाले छात्रों की शिक्षा पर पड़ना स्वाभाविक ही था ! जिसका परिणाम यह हुआ कि जो अभिभावक अपनें बच्चों को निजी शिक्षण संस्थानों में पढ़ा सकते थे उन्होंने अपनें बच्चों को निजी शिक्षण संस्थानों में पढ़ाना शुरू कर दिया ! इनमें वो अभिभावक भी थे जो सक्षम थे और वो भी जिन्हें अपनें बच्चो के भविष्य की चिंता थी लेकिन खर्च उठाने में सक्षम नहीं थे लेकिन फिर भी अपना पेट काटकर भी उन्होंने अपनें बच्चो के भविष्य के लिए ये कदम उठाना पड़ा ! और जो लोग इसमें भी सक्षम नहीं थे उनके बच्चे आज भी इन्ही सरकारी विधालयों में पढ़ रहे हैं ! और उनके उज्जवल भविष्य की दुआ करनें के सिवा कोई क्या उम्मीद कर सकता है !