रविवार, 14 सितंबर 2014

हिंदी दिवस : मन की व्यथा शब्दों की जुबानी !!

हर साल १४ सितम्बर को हिंदी दिवस आता है तो हिंदी प्रेमियों का मन एक ऐसी टीस ,ऐसी पीड़ा से भर जाता है जिसका अंत होनें का रास्ता दूर दूर तक दिखाई नहीं देता है ! हिंदी दिवस भी पितृ पक्ष के आस पास ही आता है और ऐसा लगता है जैसे पितृ पक्ष के दौरान जिस तरह से पूर्वजों को याद करते हैं उसी तरह से सरकारों द्वारा हिंदी दिवस के दिन हिंदी को याद कर लिया जाता है ! फिर पूरी साल हिंदी के नाम पर कुछ नहीं होता है ! आजादी के बाद जब से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया है तब से हिंदी के साथ यही हो रहा है !

इसमें कोई शक नहीं कि हिंदी का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है और हिंदी की अपनीं पहचान बढती भी जा रही है ! लेकिन हिंदी की सरकारी अवहेलना नें हिंदी को राष्ट्रभाषा के दर्जे से अभी तक वंचित कर रखा है जिसके कारण हिंदी आज भी अनिश्चय की स्थति में है ! देश में हिंदी बोलनें और लिखनें वालों की संख्या सबसे ज्यादा है ! फिर भी आज भी हिंदी के लिए संघर्ष की स्थति है तो इसका एक ही कारण है कि कुछ अंग्रेजी मानसिकता वाले लोगों नें एक ऐसा जाल बुन दिया है जिसको कोई आसानी से तोड़ नहीं पाए ! 

पिछले दिनों संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में सीसेट को लेकर विवाद हुआ था उसनें एक बात साफ़ कर दी थी कि कुछ लोग येनकेनप्रकारेण अंग्रेजी के वर्चस्व को बनाए रखना चाहते हैं ! नरेन्द्रमोदी जी नें जिस तरह से हिंदी को लेकर एक रवैया अपनाया है उसके बाद कुछ आशा की किरण तो दिखाई देती है लेकिन अभी मंजिल का कोई अता पता नहीं है ! कुछ राजनेता ऐसे भी है जिनकी राजनीति हिंदी विरोध पर ही चलती है और जब जब हिंदी की बात आएगी ये राजनेता सदैव विरोध में खड़े हो जायेंगे !

शनिवार, 14 सितंबर 2013

हिंदी प्रेमियों के लिए एक नयी उमंग और नए सपनों का दिन हिंदी दिवस !!

किसी भी देश कि भाषा और संस्कृति ही उस देश को गौरवान्वित करने वाली होती है लेकिन यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि भारत की राष्ट्र भाषा को अपने ही देश में दोयम दर्जे का अधिकार मिला हुआ है और हिंदी अपने ही देश में राजनीतिक चालों का शिकार बन गयी और आज भी अपनें उस गौरव को नहीं पा सकी जिसकी वो हकदार थी ! यह पीड़ा हिंदी प्रेमियों को सदैव उद्वेलित करती है और जब १४ सितम्बर को हिंदी दिवस को मनाते हैं तो ये घाव हरे हो जाते हैं !

जब १९३६ में गांधीजी के नेतृत्व में राष्ट्र भाषा प्रचार समिति की स्थापना की गयी और इससे उस समय के बड़े नेता जब इससे जुड़े जिनमें जवाहर लाल नेहरु ,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ,सरदार वल्लभ भाई पटेल ,जमना लाल बजाज ,चक्रवर्ती राजगोपालाचारी आदि थे जो चाहते थे कि हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा मिले लेकिन उस समय तो अंग्रेजो का राज था उसके बाद जब भारत आजाद हुआ और जब संविधान सभा ने एकमत से १४ सितम्बर १९४९ को हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया तब से लेकर आज तक हम इस दिन को हिंदी दिवस के रूप मनाते आ रहे हैं ! हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा तो मिला हुआ है लेकिन उसको उसका उचित सम्मान आज तक नहीं मिला !!

इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि राष्ट्र भाषा का दर्जा तो मिला लेकिन राज भाषा का दर्जा उसको आज तक नहीं मिला जिस पर आज देश आजाद होने के छियासठ साल बाद भी विदेशी भाषा अंग्रेजी अपना कब्ज़ा जवायें बैठी है ! भारत को भाषाई तौर पर जोड़े रखनें में हिंदी का कोई विकल्प है नहीं और हिंदी अपना ये दायित्व बखूबी तौर पर निभा भी रही है और आज भी अलग अलग प्रान्तों के लोगों के आपसी वार्तालाप की भाषा हिंदी ही है ! एक जमाने में हिंदी का विरोध करनें वाले दक्षिण भारतीय राज्यों में भी हिंदी का प्रभाव स्पष्ट तौर पर उस समय देखनें को मिल जाता है जब वहाँ के लोग अपनीं बात हिंदी में कहने लगे हैं !