बुधवार, 11 जुलाई 2012

हिंदी को क्यों उचित स्थान नहीं मिला !!




किसी भी देश कि भाषा और संस्कृति ही उस देश को गोरवान्वित करने वाली होती है लेकिन यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि भारत कि राष्ट्र भाषा को अपने ही देश में दोयम दर्जे का अधिकार मिला हुआ है और हिंदी अपने ही देश में राजनीतिक चालों का शिकार बन गयी जब १९३६ में गांधीजी के नेतृत्व में राष्ट्र भाषा प्रचार समिति की स्थापना की गयी और इससे उस समय के बड़े नेता जब इससे जुड़े जिनमे जवाहर लाल नेहरु ,नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ,सरदार वल्लभ भाई पटेल ,जमना लाल बजाज ,चक्रवर्ती राजगोपालाचारी आदि थे जो चाहते थे कि हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा मिले लेकिन उस समय तो अंग्रेजो का राज था उसके बाद जब भारत आजाद हुआ और जब संविधान सभा ने एकमत से १४ सितम्बर १९४९ को हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया तब से लेकर आज तक हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा तो मिला हुआ है लेकिन उसको उसका उचित सम्मान आज तक नहीं मिला !!
इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि राष्ट्र भाषा का दर्जा तो मिला लेकिन राज भाषा का दर्जा उसको आज तक नहीं मिला जिस पर आज देश आजाद होने के पेंसठ साल बाद भी विदेशी भाषा अंग्रेजी अपना कब्ज़ा जमाये बेठी है और राजभाषा के साथ रोजगार का मुदा जुड़ा होने के कारण ना चाहते हुए भी जबरदस्ती अंग्रेजी सीखनी पड़ती है क्योंकि आज कोई भी सरकारी विभागों में अंग्रेजी नहीं जानने वालों को नियुक्ति नहीं मिलती है इसलिए हिंदी को दोयम दर्जे का अधिकार मिला हुआ है !!
इसके कारण आज हमारे बच्चे केवल अंग्रेजी रट्टू बन रहे है क्योंकि किसी को भी मौलिक ज्ञान अपनी भाषा में ही मिल सकता है और जिस उम्र में हमारे बच्चों को मौलिक ज्ञान सीखना चाहिए वो उम्र अंग्रेजी को रटने में निकल जाती है इस तरह हम अपने बच्चों पर मानसिक अत्याचार भी कर रहे है तो अब आखिर सवाल उठता है कि अंग्रेजी आखिर जरुरी क्यों है हमारे देश में !!
इस सवाल का जवाब मेरी नजर में तो यही है कुछ लोग जो अंग्रेजी पढ़े लिखे है वो अपना वर्चस्व छोड़ना नहीं चाहते है और दुर्भाग्य से आजादी के बाद से सता पर उन्ही लोगों का वर्चस्व रहा है जिनको अंग्रेजी से बेहद लगाव था और उनकी मानसिकता भी अंग्रेजो जैसी ही थी और उन्ही लोगों कि राजनितिक चालों के कारण आज हिंदी को यह दिन देखना पड़ रहा है !!
अब अंग्रेजी के जो लोग हिमायती है उनके तर्क भी अजीब होते है अंग्रेजी को बनाये रखने के बारे में सबसे पहले तो उनका तर्क होता है कि अंग्रेजी विश्व कि भाषा है जबकि अंग्रेजी मात्र बारह देशों में ही बोली और समझी जाती है जिसमे भारत जैसे देश भी है यह तो हुयी देशों कि गणना और अगर लोगों के हिसाब से देखे तो चाइनीज विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है और हिंदी दूसरे नंबर पर है तो यह तर्क भी उनका गलत लगता है कि अंग्रेजी विश्व कि भाषा है अब उनका दूसरा तर्क होता है कि अंग्रेजी ज्ञान और तकनिकी कि भाषा है तो इस तर्क में भी दम नहीं है क्योंकि चीन ,जापान और फ़्रांस जैसे देश तकनिकी के मामले में अंग्रेजी बोलने वाले देशों से आगे है और अंग्रेजी का जन्मदाता देश इंग्लेंड इन देशो के साथ गणना में भी नहीं आता तो यह तर्क भी बेदम नजर आता है एक तर्क और भी देते है कि अंग्रेजी समृद्ध भाषा है तो इसमें भी कोई दम नहीं है क्योंकि अंग्रेजी के पास कई शब्दों के लिए उसके पास शब्द ही नहीं है और जो भी है उसमे से आधे से ज्यादा दूसरी भाषाओ से उधार लिए हुए ही है !!
बहुत सोचने के बाद यही समझ में आता है कि ये जो अंग्रेजी प्रेम वाले लोग सताओं में बेठे है यह अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए ही अंग्रेजी को बनाए रखना चाहते है और हिंदी को उसका उचित स्थान नहीं मिलने दे रहे है और भारत कि तरक्की का राज भी इसी में छिपा है!!
शायद कभी मेकाले ने यही सोच कर भारत कि शिक्षा पद्दति को बदला होगा कि अंग्रेजी पढ़ने वाले लोग अंग्रेजों और अंग्रेजियत के समर्थक हो जायेंगे और  मेकाले कि दूरदृष्टी की सराहना भी करनी होगी  क्योंकि उसकी सोच सही साबित हुयी और आज जो अंग्रेजी पढ़े लिखे लोग है उनके मन में यह धारणा गहरे से बैठती जा रही है कि पश्चिमी देश जिस भाषा या जिस संस्कृति को अपनाते है वही उतम है और ये सब हिंदी की कमजोर होती दशा और मजबूत हो रही अंग्रेजी के कारण हो रही है इसके और पहलुओ पर चर्चा किसी अगले लेख में करूँगा !!

1 टिप्पणी :

बेनामी ने कहा…

खरगोश का संगीत राग रागेश्री पर
आधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में पंचम का
प्रयोग भी किया है,
जिससे इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
..

हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.
.. वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट
से मिलती है...
Here is my website ; संगीत