भारतीय लोकतंत्र के तीन स्तम्भ है जिनमे विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका है और मीडिया की भूमिका को देखते हुए इसको चौथा स्तम्भ माना गया था !लेकिन आज लोकतंत्र के इन चारों स्तम्भों पर से जनता अपना विश्वास खोती जा रही है सबसे पहले चर्चा विधायिका की जिसको हमारे संविधान ने सर्वोचता प्रदान की थी लेकिन आज सबसे ज्यादा जनता का अविश्वास इसी पर है और क्षण प्रति क्षण हो रहे घोटाले जनता का विश्वास और भी कमजोर कर रहे है और इसमें सुधार होने कि बजाय गिरावट की और ही अग्रसर है दूसरा स्तंभ कार्यपालिका है जो भी अपना विश्वास जनता में नहीं जगा पा रही है और वो केवल विधायिका के हाथों की कठपुतली बनकर रह गयी है तो जनता में इसके प्रति विश्वास जगे और अब बात न्यायपालिका की जिस पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहे है लेकिन इस पर अभी जनता का विश्वास बना हुआ है लेकिन बाकी दो स्तंभों के प्रति अविश्वास और उनका न्यायपालिका के प्रति असहयोग का रवैया न्यायपालिका के प्रति अविश्वास की भावना को ही बढ़ावा दे रहा है और चौथे स्तंभ की बात जिसको संविधान ने तो नहीं माना लेकिन विगत में उसकी भूमिका को देखते हुए माना गया था वो भी आज अपनी उस भूमिका में असफल होता दिख रहा है जिसका कारण है कि उसकी विधायिका और कार्यपालिका के साथ बढती नजदीकियां और अगर इस पर विचार नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब मीडिया भी अपना विश्वास खो दे !! जय हिंद !!
बुधवार, 11 जुलाई 2012
लोकतंत्र के सामने चुनोतियाँ
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भारतीय लोकतंत्र के तीन स्तम्भ है जिनमे विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका है और मीडिया की भूमिका को देखते हुए इसको चौथा स्तम्भ माना गया था !लेकिन आज लोकतंत्र के इन चारों स्तम्भों पर से जनता अपना विश्वास खोती जा रही है सबसे पहले चर्चा विधायिका की जिसको हमारे संविधान ने सर्वोचता प्रदान की थी लेकिन आज सबसे ज्यादा जनता का अविश्वास इसी पर है और क्षण प्रति क्षण हो रहे घोटाले जनता का विश्वास और भी कमजोर कर रहे है और इसमें सुधार होने कि बजाय गिरावट की और ही अग्रसर है दूसरा स्तंभ कार्यपालिका है जो भी अपना विश्वास जनता में नहीं जगा पा रही है और वो केवल विधायिका के हाथों की कठपुतली बनकर रह गयी है तो जनता में इसके प्रति विश्वास जगे और अब बात न्यायपालिका की जिस पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहे है लेकिन इस पर अभी जनता का विश्वास बना हुआ है लेकिन बाकी दो स्तंभों के प्रति अविश्वास और उनका न्यायपालिका के प्रति असहयोग का रवैया न्यायपालिका के प्रति अविश्वास की भावना को ही बढ़ावा दे रहा है और चौथे स्तंभ की बात जिसको संविधान ने तो नहीं माना लेकिन विगत में उसकी भूमिका को देखते हुए माना गया था वो भी आज अपनी उस भूमिका में असफल होता दिख रहा है जिसका कारण है कि उसकी विधायिका और कार्यपालिका के साथ बढती नजदीकियां और अगर इस पर विचार नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब मीडिया भी अपना विश्वास खो दे !! जय हिंद !!
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