शनिवार, 28 जुलाई 2012

देव वाणी संस्कृत !!






संस्कृत की इस समृद्धि ने पाश्चात्य विद्वानों को अपनी ओर आकर्षित किया। इस भाषा से प्रभावित होकर सर विलियम जोन्स ने २ फरवरी, १७८६ को एशियाटिक सोसायटी, कोलकाता में कहा- "संस्कृत एक अद्भुत भाषा है।

यह ग्रीक से अधिक पूर्ण है, लैटिन से अधिक समृद्ध और अन्य किसी भाषा से अधिक परिष्कृत है।" इसी कारण संस्कृत को सभी भाषाओँ की जननी कहा जाता है। संस्कृत को इंडो-इरानियन भाषा वर्ग के अंतर्गत रखा जाता है और सभी भाषाओँ की उत्पत्ति का सूत्रधार इसे माना जाता है।

समस्त विश्व की भाषाओँ को ११ वर्गों में बाँटा गया है :-

(१) इंडो इरानियन- इसके भी दो उपवर्ग है –
एक में इंडो-आर्यन जिसमें संस्कृत एवं इससे उद्भूत भाषाएँ हैं, दूसरे वर्ग में ईरानी भाषा जिसमें अवेस्तन, पारसी एवं पश्तो भाषाएँ आती हैं।

( २ ) बाल्टिक : इसमें लुथी अवेस्तन लेटवियन आदि भाषाएँ आती हैं।
( ३ ) स्लैविक : इसमें रसियन, पोलिश, सर्वोकोशिया,आदि भाषाएँ सम्मिलित हैं।
( ४ ) अमैनियम : इसके अंतर्गत अल्बेनिया आती हैं।
( ५ ) ग्रीक :
( ६ ) सेल्टिक : इसके अंतर्गत आयरिश, स्कॉटिश गेलिक,वेल्स एवं ब्रेटन भाषाएँ आती है।
( ७ ) इटालिक : इसमें लैटिन एवं इससे उत्पन्न भाषाएँ सम्मिलित हैं।
( ८ ) रोमन : इटालियन, फ्रेंच, स्पेनिश, पोर्तुगीज, रोमानियन एवं अन्य भाषाएँ इसमें सम्मिलित हैं।
( ९ ) जर्मनिक : जर्मन, अंग्रेजी, डच, स्कैनडीनेवियन भाषाएँ आती है इस वर्ग में।
( १० ) अनातोलियन : हिटीट पालैक, लाय्दियाँ, क्युनिफार्म, ल्युवियान,हाइरोग्लाफिक ल्युवियान और लायसियान।
( ११ ) लोचरीयन (टोकारिश) : इसे उत्तरी चीन में प्रयोग किया जाता है,इसकी लिपि ब्राह्मी लिपि से मिलती है।

भाषाविद मानते हैं कि इन सभी भाषाओँ की उत्पत्ति के तार कहीं-न-कहीं से संस्कृत से जुड़ा हुआ है; क्योंकि यह सबसे पुरानी एवं समृद्ध भाषा है। किसी भी भाषा की विकासयात्रा में उसकी यह विशेषता जुडी होती है कि वह विकसित होने की कितनी क्षमता रखती है। जिस भाषा में यह क्षमता विद्यमान होती है, वह दीर्घकाल तक अपना अस्तित्व बनाये रखती है, परन्तु जिसमें इस क्षमता का आभाव होता है उनकी विकासयात्रा थम जाती है। यह सत्य है कि संस्कृत भाषा आज प्रचालन में नहीं है परन्तु इसमें अगणित विशेषताएं मौजूद हैं। इन्हीं विशेषताओं को लेकर इसपर कंप्यूटर के क्षेत्र में भी प्रयोग चल रहा है। कंप्यूटर विशेषज्ञ इस तथ्य से सहमत है कि यदि संस्कृत को कंप्यूटर की डिजिटल भाषा में प्रयोग करने की तकनीक खोजी जा सके तो भाषा जगत के साथ-साथ कंप्यूटर क्षेत्र में भी अभूतपूर्व परिवर्तन देखें जा सकते हैं। जिस दिन यह परिकल्पना साकार एवं मूर्तरूप लेगी, एक नए युग का उदय होगा। संस्कृत उदीयमान भविष्य की एक महत्वपूर्ण धरोहर है।

अपने देश में संस्कृत भाषा वैदिक भाषा बनकर सिमट गयी है। इसे विद्वानों एवं विशेषज्ञों कि भाषा मानकर इससे परहेज किया जाता है। किसी अन्य भाषा कि तुलना में इस भाषा को महत्त्व ही नहीं दिया गया, क्योंकि वर्तमान व्यावसायिक युग में उस भाषा को ही वरीयता दी जाती है जिसका व्यासायिक मूल्य सर्वोपरि होता है। कर्मकांड के क्षेत्र में इसे महत्त्व तो मिला है, परन्तु कर्मकांड कि वैज्ञानिकता का लोप हो जाने से इसे अन्धविश्वास मानकर संतोष कर लिया जाता है और इसका दुष्प्रभाव संस्कृत पर पड़ता है। यदि इसके महत्त्व को समझकर इसका प्रयोग किया जाये तो इसके अगणित लाभ हो सकते हैं। संस्कृत की भाषा विशिष्टता को समझकर लन्दन के बीच बनी एक पाठशाला ने अपने जूनियर डिविजन में इसकी शिक्षा को अनिवार्य बना दिया है। श्री आदित्य घोष ने सन्डे हिंदुस्तान टाइम्स ( १० फरवरी, २००८ ) में इससे सम्बंधित एक लेख प्रकाशित किया था। उनके अनुसार लन्दन की उपर्युक्त पाठशाला के अधिकारीयों की यह मान्यता है कि संस्कृत का ज्ञान होने से अन्य भाषाओँ को सिखने व समझने की शक्ति में अभिवृद्धि होती है। इसको सिखने से गणित व विज्ञान को समझने में आसानी होती है। Saint James Independent school नामक यह विद्यालय लन्दन के कैनिंगस्टन ओलंपिया क्षेत्र की डेसर्स स्ट्रीट में अवस्थित है। पाँच से दस वर्ष तक की आयु के इसके अधिकांश छात्र काकेशियन है। इस विद्यालय की आरंभिक कक्षाओं में संस्कृत अनिवार्य विषय के रूप में सम्मिलित है।

इस विद्यालय के बच्चे अपनी पाठ्य पुस्तक के रुप में रामायण को पढ़ते हैं। बोर्ड पर सुन्दर देवनागरी लिपि के अक्षर शोभायमान होते हैं। बच्चे अपने शिक्षकों से संस्कृत में प्रश्नोत्तरी करते हैं और अधिकतर समय संस्कृत में ही वार्तालाप करते हैं। कक्षा के उपरांत समवेत स्वर में श्लोकों का पाठ भी करते हैं। दृश्य ऐसा होता है मानो यह पाठशाला वाराणसी एवं हरिद्वार के कसीस स्थान पर अवस्थित हो और वहां पर किसी कर्मकांड का पाठ चल रहा हो। इस पाठशाला के शिक्षकों ने अनेक शोध-परीक्षण करने के पश्चात् अपने निष्कर्ष में पाया कि संस्कृत का ज्ञान बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है। संस्कृत जानने वाला छात्र अन्य भाषाओँ के साथ अन्य विषय भी शीघ्रता से सीख जाता है। यह निष्कर्ष उस विद्यालय के विगत बारह वर्ष के अनुभव से प्राप्त हुआ है।

Oxford University से संस्कृत में Ph.D करने वाले डॉक्टर वारविक जोसफ उपर्युक्त विद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष हैं। उनके अथक लगन ने संस्कृत भाषा को इस विद्यालय के ८०० विद्यार्थियों के जीवन का अंग बना दिया है। डॉक्टर जोसफ के अनुसार संस्कृत विश्व की सर्वाधिक पूर्ण, परिमार्जित एवं तर्कसंगत भाषा है। यह एकमात्र ऐसी भासा है जिसका नाम उसे बोलने वालों के नाम पर आधारित नहीं है। वरन संस्कृत शब्द का अर्थ ही है "पूर्ण भाषा"। इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक पॉल मौस का कहना है कि संस्कृत अधिकांश यूरोपीय और भारतीय भाषाओँ की जननी है। वे संस्कृत से अत्यधिक प्रभावित है। प्रधानाचार्य ने बताया कि प्रारंभ में संस्कृत को अपने पाठ्यक्रम का अंग बनाने के लिए बड़ी चुनौती झेलनी पड़ी थी।

प्रधानाचार्य मौस ने अपने दीर्घकाल के अनुभव के आधार पर बताया कि संस्कृत सिखने से अन्य लाभ भी हैं। देवनागरी लिपि लिखने से तथा संस्कृत बोलने से बच्चों की जिह्वा तथा उँगलियों का कडापन समाप्त हो जाता है और उनमें लचीलापन आ जाता है। यूरोपीय भाषाएँ बोलने से और लिखने से जिह्वा एवं उँगलियों के कुछ भाग सक्रिय नहीं होते है। जबकि संस्कृत के प्रयोग से इन अंगों के अधिक भाग सक्रिय होते हैं। संस्कृत अपनी विशिष्ट ध्वन्यात्मकता के कारण प्रमस्तिष्कीय (Cerebral) क्षमता में वृद्धि करती है। इससे सिखने की क्षमता, स्मरंशक्ति, निर्णयक्षमता में आश्चर्यजनक अभिवृद्धि होती है। संभवतः यही कारण है कि पहले बच्चों का विद्यारम्भ संस्कार कराया जाता था और उसमें मंत्र लेखन के साथ बच्चे को जप करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता था। संस्कृत से छात्रों की गतिदायक कुशलता भी विकसित होती है।

आज आवश्यकता है संस्कृत के विभिन्न आयामों पर फिर से नवीन ढंग से अनुसन्धान करने की, इसके प्रति जनमानस में जागृति लाने की; क्योंकि संस्कृत हमारी संस्कृति का प्रतीक है। संस्कृति की रक्षा एवं विकास के लिए संस्कृत को महत्त्व प्रदान करना आवश्यक है। इस विरासत को हमें पुनः शिरोधार्य करना होगा तभी इसका विकास एवं उत्थान संभव है।

( साभार : गौरी रॉय जी )

2 टिप्‍पणियां :

बेनामी ने कहा…

If cerebral are not activated by the English Languvage than why all the great invention are discovered by the European or American. Like TV fridge, Internet, Bulb, Electricity, Aeroplane, car......or .....
Manuwadi r engaged in fake reaserch.

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

महाशय आपकी बात का जवाब इसी लेख और मेरे अन्य लेखों में दिया गया है !!