शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

कमजोर होता जनलोकपाल आंदोलन !!


अन्ना जी द्वारा शुरू किया गया जनलोकपाल का जन आंदोलन सरकार की हठधर्मिता के आगे दम तोड़ता हुआ नजर आ रहा है जो जन आंदोलनों के लिए अच्छा तो कतई नहीं कहा जा सकता है और इससे जन आंदोलनों पर विपरीत प्रभाव ही पड़ेगा तथा सरकारों की तानाशाही और मुखर होकर उभरेगी !!
आजादी के बाद सबसे पहला बड़ा जन आंदोलन जयप्रकाशनारायण जी द्वारा शुरू किया गया था और वो सफल भी हुआ लेकिन फिर आई अल्पकाल की सरकारों और उनके अनुयायीयों ने उस आंदोलन की सफलता पर ही पानी फेर दिया ! और जनता को फिर वही विकल्प के रूप में कांग्रेस ही नजर आई तथा उनके जो समाजवादी पुरोधा थे वे भी कांग्रेस कि गौद में जाकर बैठ गए !!
फिर लंबे समय से राममंदिर वाले धार्मिक आंदोलन को छोड़ दे तो कोई बड़ा जनआंदोलन नहीं हुआ फिर जब अन्ना जी और बाबा रामदेव ने लोकपाल और कालेधन के मुद्दे पर आंदोलन छेड़ा तो भ्रस्टाचार से तंग आई जनता को एक उम्मीद बंधी कि इससे भ्रष्टाचार से कुछ तो निजात मिलेगी लेकिन सरकार के लटकाऊ रवैये ने अन्ना के आंदोलन की हवा निकाल दी तथा बाबा के आंदोलन के विरुद्ध सरकार का दमनात्मक रवैया जारी है और जनता को लगने लग गया कि यह आज की राजनैतिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार को सहन करना ही उसकी नियति है !!
अन्ना जी के आंदोलन को असफल करने में उनके सहयोगियों कि भी अहम भूमिका है जिसको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है जिन्होंने समय समय पर दंभ भरे और आपतिजनक बयान देकर लोगों की नजर में आंदोलन को संदिग्ध बना दिया तथा वो मीडिया को ही अपना हथियार समझ बैठे लेकिन मीडिया आज तक किसी का हुआ है जो इनका होता और मीडिया ने किनारा किया तो लोगों ने भी आंदोलन से किनारा करना शुरू कर दिया वैसे इन आदोलनों को लेकर मीडिया की भूमिका भी संदिग्ध ही है !!
लेकिन इस आंदोलन की असफलता निश्चय ही जनता की हार ही है क्योंकि जनांदोलनों से ही लोकतंत्र में सरकार को जनहित में फैसले लेने पर मजबूर किया जाता है तथा जनआंदोलनों से लोकतंत्र और मजबूत होता है लेकिन इनकी असफलता लोकतंत्र को कमजोर और सरकारों के तानाशाही रवैये को मजबूत करती है जो देश हित में तो कतई नहीं कहा जा सकता है !!

कोई टिप्पणी नहीं :