मंगलवार, 7 अगस्त 2012

जनकल्याणकारी योजनाएं क्यों दम तोड़ देती है !!

वाजपेई सरकार के समय में नदियों को आपस में जोड़ने की एक महत्वाकांक्षी परियोजना लागू की गई थी लेकिन उसके बाद में आई मनमोहन सरकार ने उस योजना को ठन्डे बस्ते में डाल दिया ! यह एक ऐसी योजना थी जो बारिश के समय कई राज्य बाढ़ की चपेट में आते है और कई राज्य सूखे की मार झेलते है उन दोनों ही समस्याओं को सुलझा सकती थी और कृषि उत्पादन में भी निश्चय ही वृद्धि होती ! साथ ही सरकार के द्वारा हर साल दिया जाने वाले सुखा और बाढ़ के राहत पैकेजों से भी सरकार को छुटकारा मिल जाता लेकिन दुर्भाग्य से ऐसी लाभकारी परियोजना सरकारी उदासीनता के चलते मरने के कगार पर पहुँच गई !

आंकडो के हिसाब से १९८२ से २०१० तक हर साल औसतन ४६१७ लोग प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए और औसतन ५०००० लोग हर साल इससे प्रभावित हुए है ! हर साल करीब ७५ अरब रूपये का नुकशान हुआ है ! इस हिसाब से देखा जाए यह परियोजना अगर सही तरीके से लागू हो जाए तो बहुत फायदा हो सकता है ! एक अनुमान के हिसाब से इस योजना पर आने वाला खर्च ५००० अरब रूपये के आसपास बैठता है जो इस योजना के फायदों को देखा जाए तो कोई महंगा सौदा नहीं लगता है !
इसको पूरा करने में एक अड़चन कुछ लोगों के विस्थापित होने को लेकर है लेकिन यह भी कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका समाधान नहीं हो सकता क्योंकि ऐसे भी तो सरकारें कभी परमाणु सयंत्र , बड़े बाँध अथवा औद्योगीकरण के लिए लोगों को विस्थापित करती ही है और फिर पुनर्वास कार्यक्रम चलाती ही है तो इस तरह की योजनाओं के लिए किया जाए तो फायदा ही होगा !!

इस परियोजना के लागू होने से नुकशान से ज्यादा फायदा ही फायदा है इसलिए ऐसी योजनाओं को लागू करना चाहिए लेकिन इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति होना जरुरी है जो हमारे राजनैतिक नेताओं में दिखाई नहीं दे रही है

1 टिप्पणी :

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति होना जरुरी है जो हमारे राजनैतिक नेताओं में दिखाई नहीं दे रही है,,,,

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