बुधवार, 8 अगस्त 2012

स्वदेशी सोच का अभाव !!

भारतीय समाज अपने ज्ञान विज्ञान पर ना तो गर्व करता है और ना ही उसको विश्वसनीय मानता है ! आयुर्वेद में वर्णित कई रोगों के इलाज के तरीके और कई औषधियों पर जब कोई विदेशी वैज्ञानिक हमारे ही ऋषियों द्वारा की गयी खोजों को आधार मानकर शोध करके उसको नए नाम से पेटेंट करवाता है तब भारतीय लोग उस पर विश्वास भी करते है और फिर हल्ला भी मचाया जाता है की यह तो भारत सदियों से चली आ रही औषधि और इलाज की पद्धति है !

आखिर क्या कारण है कि हमारे वैज्ञानिक भारतीय पद्धतियों पर शोध नहीं करते है जबकि वही काम विदेशी करते है और हमारे ही तरीके और हमारी औषधियों का नए नाम के साथ पेटेंट करवा लेते है या फिर अपनी खोज बताकर प्रचारित करते है ! उदाहरणार्थः हमारे आयुर्वेद में एक पद्धति है " दुग्धकल्प " जिसको इस नाम के साथ कोई ज्यादा महत्व नहीं मिला ना ही इसको किसी ने उपयोग किया लेकिन जब इसी को एक रुसी वैज्ञानिक ने अपनी खोज बताकर एक नए नाम " मिल्क थेरेपी " के नाम से चिकित्सा जगत में उतारा तो वही पद्धति सारे विश्व में प्रचलित हो गयी !

यह हमारी शिक्षा व्यवस्था ( जिसको मैकाले की देन माना जाता है ) की सबसे बड़ी खामी है जिसमे शुरू से यह सिखाया जाता है कि भारत में चल रहा कुछ भी अच्छा नहीं है और विदेशों में चल रहा ही सबसे अच्छा है ! यही कारण है कि इसी शिक्षा व्यवस्था में पढकर बड़े हुए हमारे वैज्ञानिक भारतीय ज्ञान विज्ञान पर शोध नहीं करते और हमारे ज्ञान पर निरंतर खतरा मंडरा रहा है !!

जरुरत है आज हमारे पुराने ज्ञान को पुनर्स्थापित करने की जिसके लिए हमारी सरकारों और हमारे वैज्ञानिकों को अपना यह नजरिया बदलना होगा कि भारत में कुछ भी अच्छा नहीं है और विदेशी जो करते है अच्छा ही अच्छा है !!