शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

भारत बंद रखने के पीछे क्या सोच है !!

कभी ज़माना रहा होगा जब  बंद रखने से सरकारों को फर्क पड़ता होगा लेकिन आजकल ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिलता है तो फिर आजकल ये सब करने का मुझे तो कोई मतलब नजर नहीं आता हालांकि ये सब तरीके किसी भी लोकतान्त्रिक सरकार के सामने अपना विरोध दर्ज कराने के तरीके है  लेकिन जब सरकार को कोई फर्क ही नहीं पड़ता तो बेवजह जनता के सामने समस्याएं खड़ी करने का मुझे तो कोई फायदा नजर नहीं आता और जो लोग विरोध करने के लिए ये तरीके अपनाते है उनको इस पर फिर से विचार करना चाहिए !!

सरकारों पर किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शनों का असर नहीं पड़ने का सबसे बड़ा कारण यह है कि सरकारें यह मानकर चलती है कि एक बार उनको बहुमत मिल गया तो पांच साल तक उनको उनके हिसाब से देश को चलाने का लाइसेंस मिल गया और विरोध करने वाले कुछ दिन विरोध कर भी लें तो क्या हो जाएगा उनको सता से बेदखल तो कोई कर नहीं सकता है और रही बात फिर से सता में आने कि तो जो सता में है वो पार्टी यही सोचती है कि अगर अगली बार फिर जोड़तोड़ से सता तक पहुंचा जा सकता है और यह सत्य भी है कि आजकल कैसे नीतियां तो परदे के पीछे चली जाती है और सता ही अहम हो जाती है !!
आजकल किसी भी तरह का बंद या विरोध प्रदर्शन हो उनका सबसे पहला निशाना रेलगाडियां ही बन रही है जो  पिछले कई वर्षों से देखने को मिल रहा है यह बहुत ही गलत तरीका है अपना विरोध दर्ज करवाने का या फिर अपनी नाराजगी दिखाने का क्योंकि आपका विरोध आम जनता से तो है नहीं जो आप रेलगाड़ियों को अपना निशाना बनाते है आपका विरोध सरकार से है इसलिए आपको अपना विरोध सरकार का विरोध करके दिखाना चाहिए ना कि जनता को परेशान करके और कई बार तो राजनैतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं का तांडव देखने को मिलता है इन बंद करने वाले विरोध प्रदर्शनों के दौरान जो बिलकुल गलत होता है लेकिन सब पार्टियों कि मिलीभगत के चलते इन पर कोई कारवाई नहीं होती है !

इसीलिए जो भी पार्टियां बंद रखने का आह्वान करती है उनको इन बातों पर ध्यान देना चाहिए और आम जनता पर बंद जबरदस्ती नहीं थोपा जाना चाहिए बल्कि जनता को विश्वास में लेकर ही इसको सफल बनाने का प्रयत्न करना चाहिए !!






4 टिप्‍पणियां :

Unknown ने कहा…

मैं आपकी बात से सहमत हूँ यह आम जनता को तकलीफ ही पहुचाता है.

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रविकर ने कहा…

मरते मरते मर मिटे, अनशन अन्ना भक्त ।

जूं रेंगे न कान पर, सत्ता बेहद शख्त ।

सत्ता बेहद शख्त, बंद से क्या होना है ।

पब्लिक कई करोड़, चादरों में सोना है ।

पर दैनिक मजदूर, बताओ क्या हैं करते ?

रोगी जो गंभीर, कहो जीते या मरते ।।

virendra sharma ने कहा…

यह हमारे दौर की एक बड़ी विडम्बना है कि अब बंद करवाने वालों और उसमें शिरकत करके रेल की पटरी उखाड़ने ,पटरियों पर भैंस से जुगाली करवाने वालों ,बसों और इतर देश की पहले ही उन चीज़ों को जिनकी इस देश में कमी है आग के हवाले करने वालों को अराष्ट्रीय कहने में तकलीफ नहीं होती है .ये सरासर हुडदंगी है .विरोध नहीं है हिंसात्मक विरोध है .सत्या ग्रह का यह मतलब तो नहीं था .विरोध प्रतीकात्मक होता है .एक दिन का उपवास करो देश का अन्न बचाओ .बिजली बचाओ /बिजली घर को आग क्यों लगाते लगवाते हो ?

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बंद मात्र राजनीतिक हथकंडे है जिसमे परेशानी के सिवा कुछ हासिल नही होता,,उदाहरण सामने है
भारत बंद का क्या कोई फायदा हुआ,सिर्फ जनता को परेशान हुई,,,,,,

RECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का