भारत में शराब के नशे में होने वाले अपराधों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है और उसी रफ़्तार से देश में बढ़ रही है शराब की खपत जो यह सोचने को मजबूर करती है कि हमारा समाज किस दिशा की और बढ़ रहा है एक आंकलन के हिसाब से देश में शराब की खपत हर वर्ष पेंतीस फीसदी की रफ़्तार से बढ़ रही है और ये तो आधिकारिक आंकड़ा है जबकि इसमें अवैध शराब की होने वाली खपत को जोड़ा जाए तो यह और भी ज्यादा हो जायेगी जो निश्चय ही विचारणीय प्रश्न है !!
आज आप देश में होने वाले अपराधों पर नजर डालेंगे तो पायेंगे कि ज्यादातर घटनाओं में अपराधी शराब के नशे में होतें हैं जो यह बताने के लिए काफी है कि किस तरह शराब अपराधियों के हौसले को अपराध करने के बढ़ा रही है और लिए शराब की वजहों से होने वाली घरेलु हिंसा को एक साथ जोड़कर देखें तो शराब की वजह से होने वाले अपराधों की भयावहता और भी बढ़ जायेगी !!
दिनोंदिन बढ़ रही शराब की खपत इसमें और बढोतरी ही करेगी और ऐसा नहीं कि इस बात को सरकारें जानती नहीं है लेकिन सरकारें यह सब जानने के बावजूद भी शराब कि बिक्री को नियंत्रित करने के बजाय इसको प्रोत्साहन ही दे रही है जिसकी दोषी सभी राज्यों कि सरकारें है चाहे वो किसी भी पार्टी कि हो केवल गुजरात ही इसका अपवाद है जहां भी अवैध शराब कि बिक्री तो हो ही रही है लेकिन सरकार ने अपनी तरफ से शराबबंदी लागू कर रखी है जो अच्छी बात है !!
शराब के मामले में सरकारों का सबसे बड़ा तर्क होता है राजस्व का लेकिन यहाँ ये भी विचारणीय है कि क्या राजस्व के लिए सरकारें हर तरफ से आँखें मुंद लेगी और लोगों के जीवन से जुड़े हुए सरोकारों की तरफ बिलकुल ध्यान नहीं देगी और यहाँ भी ध्यान देने योग्य बात यह कि शराब से जितना राजस्व सरकारी खाते में आता है उससे कहीं ज्यादा पिछले दरवाजे से उन लोगों के खातों में जाता है जो शराब से जुडी हुयी नीतियां बनाते हैं यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में राज्यों कि सरकारों द्वारा शराब कि बिक्री को जबरदस्त प्रोत्साहन दिया गया !!
आज देश में हालत ये है कि आप कहीं यात्रा पर भी जा रहें हो और आपको प्यास लगी हो तो आपको पीने का पानी आसानी से नहीं मिलेगा लेकिन शराब कि दुकाने एक के बाद एक आपकी आँखों के सामने से गुजरती जायेगी तब सवाल यही उठता है कि हमारी सरकारें देश को किस दिशा में ले जाना चाहती है और आप यकीन मानिए अगर हमारी सरकारें शराब पर रोक लगा देती है और अवैध शराब कि बिक्री पर भी प्रभावी रूप से शिकंजा कसती है तो अपराधों का ग्राफ पचास फीसदी से ज्यादा निचे आ सकता है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इस दिशा में हमारी सरकारें सोचती भी है या नहीं !!
1 टिप्पणी :
आपसे शत-प्रतिशत सहमत....
आज के परिप्रेक्ष्य में एक सार्थक और उम्दा लेख...|
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