शनिवार, 3 नवंबर 2012

सतापक्ष और विपक्ष पर नकारात्मकता हावी है !!

भारत के आज के राजनैतिक परिद्रश्य पर नजर डाली जाए तो एक बात साफ़ निकल कर आती है कि हमारे देश  में सतापक्ष और विपक्ष के बीच विश्वासहीनता और संवादहीनता की स्थति बढती ही जा रही जिसके कारण आज सतापक्ष और विपक्ष दोनों ही एक दूसरे की बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं और सतापक्ष भी अपनी ही गलत सही  नीतियों को ही सही मानते हुए आगे बढ़ता  रहता  हैं और जिससे नुकशान देश का ही हो रहा है !

सतापक्ष और विपक्ष दोनों ही साफगोई से बचते हुए नजर आते हैं विपक्ष सतापक्ष की हर नीति की आलोचना करने को ही अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझने लगा है जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि सतापक्ष द्वारा लागू की गयी नीतियों के द्वारा प्रभावित तो इसी देश के लोगों को ही होना होगा और फायदा और नुकशान आखिर में इसी देश के लोगों का ही होना है इसलिए विपक्ष का कर्तव्य बनता है कि वो जनता के हित में सरकार की अच्छी नीतियों का स्वागत करे और ऐसी नीतियों का पुरजोर विरोध करें जिनसे इस देश के लोगों का नुकशान हो सकता हो ! लेकिन दुर्भाग्य से आज का विपक्ष ऐसा नहीं कर पा रहा है वह ना तो अच्छी नीतियों का स्वागत कर रहा है और ना ही खराब नीतियों का जबरदस्त तरीके से विरोध करता है !!

कुछ ऐसा ही हाल सतापक्ष का है उसका भी जनता से जुडी नीतियां बनाने में इकतरफा रवैया ही दिखाई देता है और सतापक्ष का हाल तो विपक्ष से भी ज्यादा निराशाजनक है क्योंकि सतापक्ष से यह आशा की जाती है कि वो जनहित से जुडी हुयी नीतियां बनाने से पहले विपक्ष और अन्य पार्टियों के लोगों से विचार विमर्श करके नीतियां बनाए जिससे जनहित से जुडी नीतियां को ज्यादा कारगर तरीके से लागू किया जा सके और उन नीतियों से जुड़ें अच्छे और बुरे हर पहलु सतापक्ष के सामने आ सके और उसमें लागू करने से पहले सुधार किये जा सके ! लेकिन अफ़सोस इस बात पर होता है कि आज का सतापक्ष विपक्ष और अन्य पार्टियों से विचार विमर्श करना तो दूर बल्कि अपनी ही सहयोगी पार्टियों से भी राय मशविरा करना जरुरी नहीं समझता है ऐसे में उन नीतियों में खामियां ही खामियां रहती है और जिसका फायदा भ्रष्टाचारी उठाते हैं !

ऐसे में होता यह है कि सतापक्ष अपनी नीतियों के सदा ही पक्ष में रहता है और विपक्ष सरकार की नीतियों की सदा ही बुराई करता रहता है और जनता इसी दुविधा में रहती है कि किस कि बात पर भरोसा किया जाए और जब तक जनता को उन नीतियों के अच्छे और बुरे पहलु का पता चलता है तब तक भ्रष्टाचारी अपनी जेब गरम करके निकल लेतें हैं और हमारे देश में शायद नीतियों का मूल्यांकन करने का तो कोई रिवाज ही नहीं है जिसके कारण कोई निति एक बार चालु कर दी जाती है तो वो अनवरत चलती ही रहती है !!


3 टिप्‍पणियां :

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सही लिखा आपने!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत सही दमदार आलेख,,,,

RECENT POST : समय की पुकार है,

अजय कुमार झा ने कहा…

एक एक शब्द सच कहा आपने मैं खुद यही मानता हूं कि आज सत्ता पक्ष के इस तरह से निरंकुश और कर्तव्यहीन हो जाने के पीछे बहुत बडा हाथ कमज़ोर विपक्ष का ही है । अफ़सोस कि दोनों ही लोकतंत्र का उद्देश्य और मकसद भूल कर बैठे हैं । सार्थक प्रश्न उठाती सामयिक पोस्ट