रविवार, 25 जुलाई 2021

कथित किसान आन्दोलन कब तक चलेगा !!

तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहा कथित किसान आन्दोलन क्या अनंतकाल तक चलता रहेगा क्योंकि इसको लेकर सरकार और आन्दोलनकर्ता दोनों ही गंभीर नहीं है ! सरकार शुरू में आंदोलनकारियों को जरुर तवज्जो दे रही थी लेकिन धीरे धीरे सरकार को भी समझ में आ गया कि इस आन्दोलन के साथ किसान नहीं जुड़ रहे ! इसलिए जो वार्ता चल रही थी उससे भी सरकार अलग हो गयी जबकि आन्दोलन के मुखिया इस मृगतृष्णा में जी रहे थे कि किसानों के नाम पर वो सरकार से सबकुछ मनवा लेंगे ! 
 
किसी भी आन्दोलन के सफल होने की पहली शर्त होती है जनता का साथ और जनता उनके साथ होती है जो ईमानदार हो और आन्दोलन से जुडी बातों की जानकारी हो ! देश में ७०% आबादी किसानों की है और जब उनके बीच से ही सबसे पहले आन्दोलन की शोभा बढाने राजनितिक दलों के कार्यकर्ता गाँवों से निकले तो किसानों को समझ में आ गया कि आन्दोलन राजनितिक है ! आन्दोलन के कर्ताधर्ताओं में जो थे वो राजनितिक मोहरे और नेता थे जो किसानों को यह बताने में नाकामयाब रहे कि इन कानूनों में गलत क्या है ! वो केवल कानूनों को वापिस लेने पर अड़े रहे और सरकार वार्ता कर रही थी तभी कुछ नयी और मांगे सरकार के सामनें रख दी ! 
 
कोई भी सरकार इतनी नासमझ नहीं होती है जितनी ये लोग समझ रहे थे और सरकार को समझ में आ गया था कि किसानों का समर्थन इनको मिल नहीं रहा और इनका मकसद केवल सरकार को झुकाना है ! इसीलिए सरकार नें दौ टुक कह दिया कि कानून वापिस नहीं होंगे केवल चर्चा कानून की उन बातों पर होगी जिन पर आपति है ! अब इनको पूरी जानकारी ही नहीं थी तो ये उससे बचना ही चाहते थे इसलिए कानून वापिस लेने की उसी मांग पर अड़े रहे और इनके आन्दोलन का सम्मानजनक अंत नहीं हो सका ! आन्दोलन को चलते महीनों बीत गए और अभी कोई रास्ता निकलेगा ऐसा लगता नहीं है क्योंकि अब सरकारी दमन एकमात्र रास्ता बचा है जिसको सरकार अपनाना नहीं चाहती ! 

गुरुवार, 8 जुलाई 2021

क्या रविशंकर प्रसाद की कुर्सी ट्विटर पर कारवाई ना करने के कारण गयी !

एक बात बार बार कही जा रही है कि रविशंकर प्रसाद जी को मंत्रीपद से इसलिए हाथ धोना पड़ा क्योंकि वो ट्विटर के खिलाफ कारवाई करने में विफल रहे लेकिन इस बात में मुझे जरा सी भी सच्चाई नजर नहीं आती ! और मुझे लगता है कि उनको मंत्रीपद से इसलिए हटाया गया क्योंकि वो ट्विटर के खिलाफ कारवाई करना चाहते थे और ट्विटर को नियम मानने के लिए बाध्य करने की कोशिश कर रहे थे ! 

 
 
ट्विटर मनमानी कर रहा था और वो उस कानून को नहीं मान रहा था जो शोसल मीडिया के लिए लागू किया था इसीलिए वो ट्विटर पर कारवाई करना चाह रहे थे लेकिन कोई ऐसा था जो उनको यह करने नहीं दे रहा था ! अब वो कोई ऐरा गैरा तो होगा नहीं कोई ऐसा व्यक्ति ही होगा जो मंत्री को कारवाई करने से रोक सकता था ! अगर ऐसा नहीं होता तो रविशंकर प्रसाद जी शोसल मीडिया पर ट्विटर के खिलाफ नहीं लिखते क्योंकि कोई अपनी नाकामी का ढोल थोड़े ही पीटता है ! 


रविशंकर प्रसाद ट्विटर से खासे नाराज थे लेकिन कारवाई करने में असमर्थ इसीलिए वो शोसल मीडिया के जरिये ट्विटर के मनमाने तरीके का विरोध कर रहे थे ! जबकि पता उनको भी था कि सवाल उन्हीं पर ही उठने वाले हैं लेकिन वो ये जताना भी चाह रहे थे कि वो चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं और अब तो ट्विटर मुझे भी नहीं बख्स रहा ! क्योंकि उनका एकाउंट भी एक घंटे के लिए ट्विटर नें सस्पेंड कर दिया और उससे पहले कुछ समय तक उनको कुछ भी लिखने से रोक दिया गया था ! 

सोमवार, 5 जुलाई 2021

कांग्रेसमय होता संघ परिवार !!


आज की भाजपा कांग्रेस के रास्ते पर चलने को आमादा है और आज स्थतियां बदल चुकी है संघ भाजपा के पीछे चलने पर मजबूर है ! २०१४ से पहले भाजपा में क्या होगा यह संघ तय करता था लेकिन फिर स्थतियाँ बदलती गयी और आज संघ भाजपा के पीछे चलने पर मजबूर हो गया है और वही कर रहा है जो भाजपा चाहती है ! यही वही संघ है जिसनें १९८० के दशक में जनसंघ से भाजपा बनने के बाद भाजपा को सेक्युरिज्म का रोग लगा था तो वीएचपी का गठन कर दिया था और भाजपा फिर से उसी रास्ते पर आने को मजबूर हो गयी थी ! पर उस समय संघ के सरसंघचालक अपनें अन्दर इतनी क्षमता रखते थे !

संघ के वर्तमान सरसंघचालक वैसे नहीं है २०१४ के बाद इन्होने वैसे भी ख़ामोशी अख्तियार कर ली थी फिर भी पुरानी आदत आसानी से नहीं छुटती तो गाहे बगाहे बयानबाजी तो कर ही देते थे ! ऐसी ही बयानबाजी में इन्होने बिहार चुनावों से ठीक पहले आरक्षण की समीक्षा वाला बयान दिया और भाजपा हार गयी तो भाजपा के कर्ताधर्ता तो ऐसे ही मौके की ताक में थे तो दोष इनको दे दिया ! उसके बाद तो ये पूरी तरह दबाव में आ गए और भाजपा के कर्ताधर्ताओं के अनुसार चलने के लिए बाध्य हो गए ! यह इनकी कमजोरी थी क्योंकि अतीत में संघ का उद्देश्य हिन्दूहित की बात करना था भाजपा को सत्ता दिलाना नहीं ! 

उसके बाद तो भाजपा के कर्ताधर्ताओं नें संघ से जिन संस्थाओं से उनके विरुद्ध आवाज उठ सकती थी उन सबको किनारे लगा दिया क्योंकि वो मुखिया को झुकाने में कामयाब हो गए तो उनको कौन रोक सकता था ! इसका परिणाम ये हुआ कि संघ के करोड़ों कार्यकर्ताओं की मेहनत बेकार हो गयी और संघ का अनुषंगी संघटन सत्ता पर काबिज तो हो गया पर वो संघ से ही ऊपर निकल गया ! १९२५ से लेकर २०१४ तक की मेहनत विफल हो गयी आज हिन्दुओं की रोने वाला कोई संघटन नहीं है ! 

गुरुवार, 1 जुलाई 2021

सरकार की जन कल्याणकारी योजनायें छलावा है !

मोदी सरकार नें जन कल्याणकारी योजनाओं को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और इनके सहारे वोट भी बटोरे लेकिन उसकी नीतियों से ये जन कल्याणकारी योजनायें लोगों को फायदा देनें में नाकाम रही ! सरकार एक तरफ सहायता देने का दिखावा कर रही है तो दूसरी तरफ सहायता से कई गुना ज्यादा लेने में भी परहेज नहीं कर रही है ऐसे में सरकार को जन कल्याणकारी सरकार कैसे कहा जा सकता है !
 
सरकार नें बड़े जोर शोर से उज्ज्वलता योजना उन लोगों के लिए शुरू की जो गैस कनेक्शन लेने की हालत में नहीं थे और कनेक्शन लेनें के लिए सहायता दी ! लेकिन फिर सरकार लगातार गैस सिलेंडर के दाम बढ़ाती गयी और आज ६०-७० % उज्ज्वला योजना धारक सिलेंडर को रिफिल नहीं करवा रहे हैं ! २०१६ में जब गैस सिलेंडर के दाम ५०० रूपये के आसपास थी तब सरकार की नजर में उन लोगों की क्षमता उतना वहन करने की भी नहीं थी लेकिन २०२१ में उन्ही लोगों से सरकार ८५० रूपये के आसपास लेने लगी ! ५०० रूपये जब थे तो लोगों को १७०-१८० रूपये सब्सिडी भी मिलती थी जो खाते में आती थी लेकिन कोरोना काल में सरकार नें मई २०२० में चुपचाप सब्सिडी बंद कर दी ! 
 
सरकार नें गैस सब्सिडी बंद करने में भी बड़ा खेल किया जो सिलेंडर ७०० रूपये के आसपास बिक रहे थे तो उनकी दरें कम करके ६०० रूपये के भीतर ले आई और सब्सिडी बंद कर दी ! कोरोनाकाल में लोग घरों में बैठे थे तब सरकार नें चुपके से सब्सिडी बंद कर दी लोगों को पता सितम्बर में लगा तब सरकार नें तर्क दिया कि सब्सिडी और गैर सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमतों में अंतर नहीं है इसलिए सब्सिडी बंद कर दी ! सरकार का यह तर्क हास्यास्पद था क्योंकि सरकार ही तो इनकी कीमतें तय करती है तो एक समान कीमतें होने कैसे दी ! हालांकि सरकार बहाना ये भी बनाती है कि कीमतें कम्पनियां तय करती है लेकिन सच्चाई तो यह है कि वो कम्पनियां भी सरकारी है और सरकारी मर्जी से ही काम करती है ! चुनावों में वही कम्पनियां कीमतें बढाने से परहेज करती है और चुनाव गुजरने के साथ ही उपभोक्ताओं पर कहर बरपा देती है !

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

हर संस्था की विश्वनीयता बनाए रखना क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं !!

अपनें राजनैतिक फायदे के लिए कांग्रेस समर्थित यूपीए सरकार नें देश की तमाम संस्थाओं की विश्वनीयता पर सवाल खड़े करनें में कोई कसर नहीं छोड़ी ! यह अलग बात है कि हर बार सरकार की खुद की विश्वनीयता संदेह के कठघरे में खड़ी होती गयी और आज हालात यह है कि वो विश्वनीयता के मामले में सबसे निचले पायदान पर है ! जब टूजी का मामला हुआ तो उसनें केग को कठघरे में खड़ा कर दिया लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट नें टूजी के मामले में फैसला सुनाया तो सरकार के सारे आरोप धराशायी हो गए ! इस दूसरे कार्यकाल में सरकार लगातार घोटालों के आरोपों में घिरती रही और सरकार हर उस संस्था पर सवाल खड़े करती !

अपनें इस कार्यकाल में सरकार नें हर संस्था की विश्वनीयता को संधिग्ध बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी ! देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी सीबीआई का जिस तरह से दुरूपयोग किया उसके लिए तो सर्वोच्च न्यायालय तक नें सीबीआई को सरकार के पालतू तोते की संज्ञा तक दे डाली ! सीबीआई के अलावा केग,सीवीसी,पीएसी जैसी संवैधानिक संस्थाओं की विश्वनीयता को संदिग्ध बनाने की भरपूर कोशिशें सरकार की और से लगातार की गयी ! और सरकार की ये कोशिशें हरदम मीडिया की सुर्खियाँ बनती रही लेकिन इन कोशिशों से इन संस्थाओं से ज्यादा खुद सरकार की विश्वनीयता गिर रही थी ! जिसका पता सरकार चला रही पार्टी कांग्रेस को भी था लेकिन उसकी इच्छा अपनीं विश्वनीयता की चिंता करनें से ज्यादा घोटालों को दबाने की थी जिसमें भी वो सर्वोच्च न्यायालय के कड़े रुख के कारण नाकामयाब होती गयी !

सरकार नें देश की सबसे विश्वनीय संस्था सेना को भी विवादों में लानें में कोई कसर नहीं छोड़ी ! थल सेनाध्यक्ष वी.के सिंह के उम्र का विवाद हो या फिर उनकी गोपनीय चिठ्ठी को मीडिया में गुपचुप तरीके से पहुंचाना हो ! और इन सब में देश के सुरक्षा हितों तक को ताक में रख दिया गया था ! जब सेनाध्यक्ष का उम्र विवाद चल रहा था और उस मामले में सरकार की फजीहत हो रही थी तो उस गोपनीय चिट्ठी को लीक किया गया था जिसमें जिसमें सेनाध्यक्ष नें हमारी सेना की कमजोरियों का जिक्र किया था ! जिन जानकारियों को हासिल करनें के लिए दुश्मन देश जासूसी का सहारा लेते हैं वही जानकारियाँ उन्हें सहज में हमारे मीडिया के द्वारा मिल गयी ! 

शनिवार, 31 अगस्त 2013

प्रधानमंत्री जी को गुस्सा क्यों आता है !

कल राज्यसभा में माननीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी को गुस्सा आया तो देश को पता तो चला कि उनको गुस्सा भी आता है वर्ना देश को तो अब तक पता ही नहीं था कि उनको गुस्सा भी आता है ! लेकिन उन्होंने अपनें गुस्से को जाहिर करनें के लिए गलत जगह और गलत मुद्दे का चुनाव कर लिया जिसके कारण उनके गुस्से की कोई अहमियत भी नजर नहीं आई ! वैसे प्रधानमंत्री जी से ज्यादा देश गुस्से में है और देश का गुस्सा खुद प्रधानमंत्रीजी के प्रति है और देश के पास उसकी वाजिब वजहें खुद प्रधानमंत्री जी नें ही देश को मुहैया करवाई है !

वैसे अपनें प्रधानमन्त्री जी को जिन बातों पर गुस्सा आना चाहिए उन पर गुस्सा आता नहीं है ! पाकिस्तानी सैनिक भारतीय जवानों के सर काटकर ले जाते हैं लेकिन प्रधानमंत्री जी को गुस्सा नहीं आता बल्कि अपनें मंत्रीमंडल के सहयोगी मंत्री को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की निजी भारत यात्रा की अगुवानी करनें भेज देते हैं ! उस अगुवानी से अभिभूत पाकिस्तान भारतीय सैनिकों की हत्या करके चले जाते हैं तब भी उनको गुस्सा नहीं आता है ! इटली के सैनिक भारतीय मछुआरों की हत्या कर देते हैं तब भी उनको गुस्सा आना तो दूर उल्टा उनको वोट देनें इटली जानें का विरोध तक सरकार नहीं कर पाती है ! वो तो भला हो सर्वोच्च न्यायालय का जिसनें इटली के राजदूत के देश छोड़ने पर रोक लगाकर उनको वापिस आनें पर मजबूर कर दिया !

अपनें मंत्रिमंडल के मंत्रियों के द्वारा किये गए भ्रष्टाचार पर भी उनको गुस्सा नहीं आया और वे आखिरी दम तक " कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ " का नारा दोहराते रहे लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में उस नारे की हवा निकल गयी और भ्रष्टाचार की बात पुख्ता हो गयी ! उनके दूसरे कार्यकाल से ही उनके मंत्रियों पर घोटालों के आरोप लगते रहें हैं और कुछ तो साबित भी हो गए हैं लेकिन खुद प्रधानमंत्री जी निजी तौर पर इससे बचे हुए थे लेकिन कोयले घोटाले की कालिख खुद प्रधानमंत्री तक भी पहुँचती दिखाई दे रही है जिससे बचने की कोशिश फायलें गायब करवा कर की जा रही है ! लेकिन इन सब बातों पर उनको गुस्सा नहीं आता है ! 

शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

इस भ्रष्टाचार और अपराध पोषित व्यवस्था को बदलनें का रास्ता आखिर क्या है !!

पिछले दिनों में दो अच्छे फैसले आये थे जिनकी सराहना हर किसी नें की थी जिनमें पहला फैसला केन्द्रीय सुचना आयोग से आया था जिसमें राष्ट्रीय पार्टियों को सूचना के दायरे में लानें के हक में दिया था और दूसरा फैसला राजनीति में अपराधीकरण को रोकनें के पक्ष में सर्वोच्च न्यायालय नें दिया था जिसमें दो साल की सजा पानें वाले व्यक्ति को चुनाव लडनें के लिए अयोग्य घोषित किया गया था और जेल से चुनाव लडनें पर भी रोक लगाई गयी थी ! दोनों फैसले जनता को तो अच्छे लगे लेकिन राजनैतिक पार्टियों के लिए ये फैसले आँख की किरकिरी बन गए थे जिसका जिक्र मैनें अपनें आलेख "राजनैतिक पार्टियां आरटीआई से इतनी डरती क्यों है " में किया था !

इसीलिए उन फैसलों के विरुद्ध सभी राजनैतिक पार्टियां पहले दिन से ही एकजुट नजर आ रही थी और कुछ इन फैसलों का दबे स्वरों में विरोध कर रही थी तो कुछ खुलकर इन फैसलों के विरुद्ध में बोल रही थी ! लेकिन अब इन पार्टियों और सरकार नें इन फैसलों की धज्जियां उड़ानें का मन बना लिया है ! सुचना के अधिकार के अंतर्गत पार्टियों को आनें से बचानें के लिए तो सुचना के अधिकार कानून में संसोधन का प्रस्ताव तो केबिनेट से पास हो चूका है और जैसा पार्टियों का रुख है उससे लगता है कि यह संसद में भी पास हो जाएगा ! इसी तरह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को भी विधेयक के जरिये बदलनें की मांग सभी राजनैतिक पार्टियों द्वारा की जा रही है !

इस तरह से जन आकांक्षाओं से जुड़े हुए फैसलों को बदलनें में हमारे देश की राजनैतिक पार्टियों को बिलकुल भी जनता का डर नहीं है ऐसे में यह सवाल तो उठेगा ही कि क्या देश में वास्तव में लोकतंत्र है ! या फिर छद्म लोकतंत्र के सहारे जनता को बहलाया जाता है क्योंकि लोकतंत्र में जनता सर्वोच्च होती है लेकिन यहाँ तो ऐसा लग रहा है कि राजनैतिक दल ही सर्वोच्च हो गए हैं ! पुरे को पुरे लोकतंत्र को इन राजनैतिक पार्टियों नें बंधक सा बना लिया है और इनकी मर्जी के बिना कुछ भी हो नहीं सकता है ! मुझे तो लगता है कि जनता को केवल छद्म लोकतंत्र के सहारे बहलाया जाता है ताकि जनता बगावत पर नहीं उतरे और लोकतंत्र के भूलभुलैया में जीती रहे !

रविवार, 28 जुलाई 2013

दंगो का दर्द क्या किसी को पार्टियों की सरकारें देखकर होता है !!

दंगो का दर्द क्या सरकारें देखकर होता है या फिर हर दंगे का दर्द होता ही है ! यह सवाल मेरा हर उस समझदार आदमीं से है और उस हर आदमीं से भी है जो अपनें आपको धर्मनिरपेक्ष कहता है ! जहाँ तक मेरा मानना है कि हर दंगे का दर्द बराबर होना चाहिए  लेकिन आज के मीडिया और छद्म धर्मनिपेक्षतावादियों के लिए हर दंगे का दर्द बराबर नहीं होता है और उनको दर्द भी सरकारें देखकर होता है ! 

२००२ के गुजरात दंगो के बारे में मीडिया और कथित धर्मनिरपेक्ष लोगों द्वारा इतनी चर्चा की गयी है और मोदी को कठघरे में खड़ा करनें की हरसंभव कोशिश की जा रही है ! और अभी तक इतनी जाँचें इन दंगो को लेकर करवाई गयी है लेकिन अभी तक मोदी के विरुद्ध ऐसा कुछ मिला नहीं है जो उनको दोषी साबित कर सके ! फिर भी मीडिया और कथित धर्मनिरपेक्षता के चोले में लिपटे ये लोग मोदी को दोषी करार देते रहते हैं ! लेकिन जब यही लोगों के मुख से और किसी पार्टी के शासनकाल में हुए दंगो का जिक्र तक नहीं होता है तो इनकी नियत पर संदेह होना लाजमी है !

गुजरात में तो २००२ में फिर भी दंगे हुए थे और उसकी भी शुरुआत गोधरा से तब हुयी थी जब ५९ हिंदुओं को रेलगाड़ी के अंदर जिन्दा जला दिया और उसकी प्रतिक्रियास्वरूप काफी जगहों पर हिंसा हुयी जिसमें दोनों समुदायों के लोग मारे गए थे ! और गोधरा कांड के दोषियों में कुछ लोग एक पार्टी से भी जुड़े हुए थे लेकिन मीडिया और इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों के मुहं से आप गोधरा का तो नाम ही नहीं सुनेंगे बल्कि इनके केंद्रबिंदु में उसके बाद की घटनाएं ही रहती है ! जबकि इन दंगों की पूरी जड़ ही गोधरा ही है क्योंकि गोधरा में वो घटना नहीं होती तो उसके बाद में गुजरात में जो हिंसा हुयी वो भी नहीं होती !

शनिवार, 20 जुलाई 2013

जनता के साथ अजीब खेल खेल रही है सरकारें !!

हमारे देश में सरकारों का अजब हाल है उन्होंने इस देश को फ़ुटबाल का मैदान समझ रखा है और जनता को फ़ुटबाल ,तभी तो वो जब चाहे जो चाहे और उनके मन में जो आये वो करती रहती है ! असल में सरकारों नें इस देश की जनता को मुर्ख समझ रखा है ! अब सरकार खाध सुरक्षा बिल ला रही है जिसके कारण सरकार की नियत पर सवाल उठना लाजमी है !

एक तरफ सरकार कहती है कि ८४ करोड़ लोगों की भूख मिटानें की यह महत्वाकांक्षी योजना है और इस पर एक लाख छब्बीस हजार करोड़ रूपये का खर्च प्रतिवर्ष आएगा ! दूसरी तरफ उसी सरकार का योजना आयोग कहता है कि शहरी क्षेत्र में ३२ रूपये और ग्रामीण क्षेत्र में २६ रूपये से ऊपर कमानें वाला गरीब नहीं है और भरपेट खाना खा सकता है ! योजना आयोग के हिसाब से तो सरकार झूठ बोल रही है क्योंकि उसके आंकड़े को गरीबी रेखा का पैमाना माना जाए तो गरीबों की संख्या बिना कुछ किये अपनें आप बहुत कम हो जाती है ! और अगर सरकार सच बोल रही है तो उसी सरकार का योजना आयोग नें पहले क्यों झूँठ बोल कर गरीबों के असली आंकड़ों को छुपाने की कोशिश की !

जब जनता को पेट्रोल और डीजल पर राहत देनें की बात आती है और जब सरकार की डीजल और रसोई गैस पर से सब्सिडी कम करने पर आलोचना होती है तो हमारे माननीय अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री कहतें हैं कि पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं तो अब माननीय प्रधानमंत्री जी को बताना चाहिए कि इस योजना के लिए पैसे कहाँ से आयेंगे ! और फिर जनता से ही सब्सिडी कम करके और तरह तरह के कर लगा कर इस योजना का खर्च वसूल करना है तो महज चुनावी नौटंकी के तहत पहले से ही महंगाई और सरकारी करों के बोझ से दबी जनता पर यह बोझ और क्यों डाला जा रहा है !

बुधवार, 17 जुलाई 2013

साम्प्रदायिकता की आड़ में नाकामियों पर पर्दा डालनें की कोशिश !!

मोदी के बयानों पर जिस तरह से बयानबाजी हो रही है उससे लगता है कि साम्प्रदायिकता की आड़ में कांग्रेस अपनी नाकामियों को छुपाना चाहती है ! मोदी जिन मुहावरों और जुमलों का प्रयोग कर रहें हैं उन्ही का सहारा लेकर कोंग्रेस के तमाम नेता उन पर हमलावर हो रहें है ! और उन्ही जुमलों का सहारा लेकर कांग्रेस मुसलमानों के बीच भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही है !

मोदी लगातार अपनें बयानों में कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं और उसकी नीतियों पर और यूपीए सरकार की नाकामियों पर बरस रहे हैं लेकिन कांग्रेस उसका जबाब देने की बजाय वो जुमलों के शब्दों को पकड़कर सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने की कोशिश कर रही है ! दरअसल कांग्रेस के पास मोदी की बातों के जबाब में कुछ कहनें को है नहीं क्योंकि यूपीए सरकार के माथे पर नाकामियों के इतने दाग लगे हुए है कि उससे कुछ कहते नहीं बन रहा है ! भ्रष्टाचार के इतनें मामले इस सरकार के शासनकाल में हुए है कि अब देश कोंग्रेस की इमानदारी को ही संदिग्ध मानने लग गया है ! हालत यह हो गयी कि सर्वोच्च न्यायालय तक को सरकार पर भरोसा नहीं रहा और टूजी घोटाले और कोयला घोटाले की जांच को अपनी निगरानी में ही करवाना उचित समझा !

घोटालों की जांच करने वाली एजेंसी सीबीआई को सरकार नें पालतू तोते की तरह इस्तेमाल करके उसकी विश्वनीयता को तार तार करनें में कोई कसर नहीं छोड़ी ! सरकार और उसके नेताओं नें केग जैसी सवैधानिक संस्था पर प्रहार करनें और उसकी विश्वनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाकर उसको कठघरे में खड़ा करनें की कोशिशें की गयी लेकिन जब टूजी पर फैसका सर्वोच्च न्यायालय नें दिया तो केग की रिपोर्ट पर मुहर लग गयी और सरकार की विश्वनीयता और प्रतिष्ठा दोनों रसातल में चली गयी !

सोमवार, 15 जुलाई 2013

राजनैतिक निशाने साधनें का खेल देश पर भारी नहीं पड़ जाए !!

इशरत जहाँ मामले को लेकर जिस तरह से देश की दो सर्वोच्च एजेंशियाँ आमने सामने है और अब जो ख़बरें सामने आ रही है वो देश की आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से चिंताजनक स्थति की और इशारा कर रही है !  अब ख़बरें ऐसी आ रही है कि अपनें चार अधिकारियों को बेवजह फंसाने को लेकर कुपित आईबी अधिकारियों नें अपना काम सिमित कर दिया है ! अगर सच यही है तो यही कहा जा सकता है कि सरकार नें आंतरिक सुरक्षा को रामभरोसे छोड़ दिया है ! 

आईबी के निदेशक आसिफ इब्राहिम नें प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के यहाँ लिखित आपति जताते हुए हस्तक्षेप की मांग की थी ! लेकिन उनकी किसी नें नहीं सुनी और इतना ही नहीं आईबी के पूर्व अधिकारियों नें भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सीबीआई को ऐसा करने से रोकने की मांग की थी ! लेकिन कहीं से कोई नतीजा नहीं आया और आज हालत ये है कि आईबी के अधिकारी गृह मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय को सुचना देनें से ही कतराने लगे है ! और यह गतिरोध ज्यादा दिन तक चला तो यह देश के लिए खतरनाक साबित हो सकता है ! 

जहाँ तक सीबीआई की जांच की बात की जाए उसमें अनेक विरोधाभास दिखाई देते हैं ! जहाँ सीबीआई इसको फर्जी मुठभेड़ बता रही है लेकिन सीबीआई ये नहीं बता रही कि उसमें मारे गए लोगों का संबंध आतंकवादियों से था अथवा नहीं ! जबकि अभी पिछले दिनों ही ये खबर आई थी कि इशरत जहाँ हथियार खरीदने के लिए अपनें साथियों के साथ उतरप्रदेश के एक गाँव गयी थी ! सीबीआई इस कथित फर्जी मुठभेड़ के पीछे के मकसद पर भी खामोश है ! वो यह बता नहीं पा रही कि किस मकसद से यह मुठभेड़ की गयी थी और बिना मकसद के भला क्यों कोई किसी को ऐसे ही अलग अलग जगहों से उठा उठा कर मार देगा जैसा कि सीबीआई कह रही है !

बुधवार, 26 जून 2013

क्या राजनीति करने के लिए इतना निचे गिरना भी जरुरी है !!

उतराखण्ड आपदा के बाद राहत कार्यों पर जिस तरह से राजनितिक सोच हावी है वो यह दर्शाती है कि हमारे राजनितिक दल कितनें निचे गिर सकती है ! हर कोई राहत और बचाव कार्यों के जरिये अपनी राजनैतिक चालें चलने पर आमादा है ! जहां इस मामले में बाकी पार्टियों के हालात बाद है तो कांग्रेस के हालात तो बदतर से ज्यादा बुरे हो गएँ है ! किस तरह से राजनीति हो रही है इसका उल्लेख मैनें कल अपनी पोस्ट "संवेंदनशून्य राजनीति को झेलने को मजबूर लोग  " में किया था ! लेकिन आज जो देखनें को मिला वो तो और भी भयावह है ! 

जहां प्रधानमंत्री और उतराखण्ड सरकार राहत के लिए लोगों से पैसे देने की अपील कर रहें है ! वहीँ उतराखण्ड सरकार विज्ञापनों पर पैसा खर्च कर रही है ! एक और विज्ञापनों से राहत और बचाव कार्यों में अपनी नाकामी छुपाने की कोशिश की जा रही है ! वहीँ इन विज्ञापनों के जरिये नाकामी पर तल्ख़ हो रहे मीडिया को लालच देकर उससे नरम रुख अख्तियार करनें की आशा की जा रही है ! जहां लोग राहत के नाम पर अपनी जेब का पैसा राहत कोष में जमा करवा रहे हैं वहीँ उतराखण्ड की सरकार सरकारी धन के जरिये अपनी छवि चमकाने और अपनी अपनी नाकामी को छुपाने की कोशिश की जा रही है ! अगर किसी को मेरी बात पर शंका हो तो इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं !

ऊपर जो विज्ञापन का चित्र मैंने दिया है उसमें सोनिया जी और मनमोहन सिंह जी का फोटो दिया है ! इस विज्ञापन को भी दो बार बदला गया है जिसके कारण दो बार सरकारी धन की बर्बादी हुयी है ! पहले एक विज्ञापन दिया जिसमें कुछ शब्दों की गडबडी और सोनियां गांधी का मुस्कराता हुआ चेहरा था ! जिससे सन्देश यह जा रहा था कि आपदाग्रस्त लोगों की बर्बादी पर सोनिया जी मुस्करा रही है ! उसके बाद उस विज्ञापन को बदला गया ! जिसका चित्र भी मैनें निचे दिया है जिसमें दोनों विज्ञापन दिखाई दे रहे हैं और उनकी त्रुटियाँ भी दिखाई दे रही है !

मंगलवार, 25 जून 2013

संवेदनशून्य राजनीति को झेलने को मजबूर है लोग !!

उतराखण्ड की आपदा नें पहले ही देश के लोगों को दुःख के सागर में धकेल दिया था और उसके बाद लचर आपदा प्रबंधन नें लोगों के दिलों में दुःख के साथ गुस्सा भर दिया ! और ऊपर से  राजनितिक नेताओं  द्वारा की जा रही राजनीति नें दुःख और गुस्से में डूबे देशवाशियों की भावनाओं को जबरदस्त आघात पहुंचाया है ! निर्ल्ल्जता की हद तो देखिये जिनके चहरे इस आपदा की कालिख से पुते हुए हैं वो अपना चेहरा छुपाने कि बजाय प्रचार पाना चाहते हैं ! लाशों के अम्बार पर बैठकर राजनीतिक रोटियां सेंकने कि कोशिश कर रहे हैं !

इस आपदा के लिए उतराखण्ड की सरकार और उसका प्रशासन जिम्मेदार है जिसनें मौसम विभाग की चेतावनी के बावजूद ध्यान नहीं दिया और ना ही यात्रा को स्थगित किया और ना ही स्थानीय लोगों के लिए कोई दिशा निर्देश जारी किये ! और पर्यावरणविदों की तमाम चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए विनाशकारी विकाश का प्रारूप अपनाया गया ! उतराखण्ड की वर्तमान सरकार का आपदा के बाद भी जो संजीदगी दिखानी चाहिए थी वो उसनें नहीं दिखाई और आपदा के हर गुजरते दिन वो अपनें राजनितिक मंसूबे पालती हुयी दिखाई दी !

आपदा के नौ दिनों में उतराखण्ड सरकार के कई ऐसे फैसले देखने को मिले जो यह दर्शाते हैं कि उतराखण्ड सरकार के लिए लोगों के प्राणों से ज्यादा अपनी पार्टी का सियासी नफ़ा नुकशान ज्यादा प्यारा हो गया ! जबकि हजारों लोगों के प्राण संकट में हो तो राजनितिक द्वेषता नहीं देखी जाती लेकिन उतराखण्ड सरकार इससे बाहर निकल ही नहीं पायी ! जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी नें २४ हेलिकॉप्टर देने की पेशकश की तो उतराखण्ड सरकार नें उस पेशकश को इस डर से ठुकरा दिया कि कहीं मोदी बढ़त नहीं ले ले ! अब सवाल यह उठता है कि उतराखण्ड सरकार के पास हेलिकोप्टर मौजूद थे तो लगाए क्यों नहीं गए और अगर नहीं थे तो मोदी के प्रस्ताव को क्यों ठुकरा दिया गया ! उतराखण्ड के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को आपदाग्रस्त इलाकों का जमीनी दौरा करनें की इजाजत नहीं देते है और वहीँ राहुल गांधी को ना केवल जमीनी दौरे की गुपचुप इजाजत देते हैं बल्कि आईटीबीपी के शिविर में रात भी गुजारने की व्यवस्था करते हैं ! भाई ये भेदभाव क्यों !  

आपदा के छटवें दिन जब दिल्ली में भगत सिंह कोश्यारी अपने स्तर पर इकट्ठी की गयी राहत सामग्री अपने सचिव के जरिये उतराखण्ड भवन के अधिकारियों को देनें गए तो वहाँ के अधिकारियों नें कहा कि उतराखण्ड सरकार का फरमान आया है की मदद करनी है तो नकद अथवा चेक के माध्यम से ही की जाए ! उनको राहत सामग्री लेनें से मना किया है ! जबकि इसका भी मूल कारण राजनैतिक सोच ही थी क्योंकि भगत सिंह कोश्यारी भाजपा के थे और जब आठवें दिन सोनिया गांधी और उनके लाडले कांग्रेस के युवराज नें राहत सामग्री को पुरे दिखावी तामझाम के साथ रवाना किया तो क्यों नहीं उतराखण्ड के मुख्यमंत्री नें कहा की हमें राहत सामग्री की आवश्यकता नहीं है ! 

गुरुवार, 6 जून 2013

राजनैतिक पार्टियां आरटी आई से इतनी डरती क्यों है !!

केन्द्रीय सुचना आयोग नें राजनैतिक पार्टियों को सुचना के कानून के अंतर्गत आने का निर्णय सुनाया है ! केन्द्रीय सुचना आयोग का यह एक अच्छा फैसला था जिसका स्वागत सभी को करना चाहिए था लेकिन जिस तरह से सभी पार्टियों नें एक सुर में इसका विरोध करना शुरू किया है ! जिससे यह जाहिर हो गया है कि ये पार्टियां अपने भीतर पारदर्शिता नहीं चाहती है और वो पार्टियों द्वारा किये जाने वाले खर्चे और आमदनी का हिसाब जनता को नहीं देना चाहती है ! 

लोकतांत्रिक प्रक्रिया में यही पार्टियां देश कि नीतियां बनाती है और इनकी नीतियों का देश पर प्रभाव पड़ता है इसलिए जनता को इन पार्टियों के खर्चे और आमदनी जानने का पूरा हक होना चाहिए ! इस फैसले के विरोध में इन पार्टियों का यह कहना बिलकुल गलत है कि "वो कोई सरकारी संस्थान नहीं है जो आरटीआई के दायरे में लाये जाए " वाकई हास्यास्पद है क्योंकि भले ही जाहिर तौर पर राजनैतिक पार्टियां सरकारी संस्थान नहीं हो लेकिन हकीकत यही है कि इनमें से जो भी पार्टी जहां भी सत्ता में रहती है वहाँ के सारी सरकारी संस्थान इन्ही की नीतियों के आधार पर ही तो चलते है ! इसलिए राजनैतिक पार्टीयों को तो सबसे पहले आरटीआई के अधीन होना चाहिए था ! असल में तो इन पार्टियों को मिलने वाला अवैध धन ही भ्रष्टाचार को पनपाने वाला है जिसका जिक्र मैंने अपने आलेख " अवैध चुनावी चंदा ही भ्रष्टाचार की असल जड़ है !!" में किया था ! आरटीआई  के अंतर्गत आने से उस पर कुछ लगाम लगने कि आशंका ही इन पार्टियों को डरा रही है !

कितनी हास्यास्पद बात है कि केन्द्रीय सूचना आयोग के इस फैसले के विरोध में पहला बयान भी उसी कांग्रेस पार्टी का आया जिसके नेता अपनी बात ही सुचना के कानून का अधिकार देनें को अपनी उपलब्धि बताकर ही शुरू करते हैं ! देश की सबसे बड़ी पार्टी को अब खुद को उस सुचना के अधिकार के कानून के अंतर्गत आनें में परेशानी होती दिख रही है ! कुछ ऐसा ही हाल दूसरी बड़ी पार्टी भाजपा की है उसनें भी शुरूआती तौर पर इसका समर्थन करने के बावजूद उलटी गुलाटी मारनी पड़ी और उसको भी इसके अंतर्गत आने में परेशानी दिखाई पड़ रही है ! जब देश की दो बड़ी पार्टियों की हालत यह हो तो बाकी की पार्टियों की बात करना ही बैमानी है !

बुधवार, 29 मई 2013

दोहरी सोच के सहारे नक्सलवाद पर काबू कैसे पाया जा सकता है !!

अपने देश के लोकतंत्र का भी अजीब हाल है ! जब नक्सली हिंसा में आम निरीह लोग मारे जाते हैं तो कोई उसको लोकतंत्र पर हमला नहीं मानता है ,उनके हमलों में सुरक्षाकर्मी मारे जाते हैं तब भी लोकतंत्र पर हमला नहीं माना जाता है ! और खासतौर पर राजनैतिक तबका तो बिलकुल भी नहीं मानता है ! लेकिन वहीँ हमला इस बार राजनैतिक वर्ग से जुड़े हुए बड़े लोगों पर हुआ तो वो लोकतंत्र पर हमला माना जा रहा है !  अब कोई ये तो समझाए कि यह कैसा लोकतंत्र है जिसमें केवल और केवल राजनैतिक वर्ग का ही वर्चस्व है !

अजीब विडम्बना है जब देश के किसान आत्महत्या करते हैं तब लोकतंत्र को कोई फर्क नहीं पड़ता है और तब भी लोकतन्त्र को कोई फर्क नहीं पड़ता है जब आधी रात के वक्त देश के लोगों पर इसी लोकतंत्र की रक्षा का दंभ भरने वाले लोगों के इशारे पर लाठियां भांजी जाती है और आंसू गैस के गोले दागे जाते हैं जिसमें भले ही एक महिला की जान चली जाती है ! देश की आधी आबादी भूख और कुपोषण की मार झेलते हुए भले ही मर जाए लेकिन लोकतंत्र को उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ता है ! लोकतंत्र के प्रतिनिधित्व वाले मुख्य केन्द्रों वाले शहर में जब किसी नारी के साथ दुराचार होता है तब भी लोकतंत्र के माथे पर शिकन नहीं आती है !  यह तब भी फर्क नहीं पड़ता जब उस नक्सली हमले में केवल साधारण नागरिक ही मारे जाते ! लेकिन इस बार नक्सलियों नें निशाना बना दिया बड़े राजनेताओं को और हो गया लोकतंत्र पर हमला !

देश के हर नागरिक की मौत पर दुःख होता है लेकिन यह दुःख तब और बढ़ जाता है जब उसमें भी आम और खास का फर्क किया जाए ! और यही वो सोच है जो नक्सलवादियों और अलगाववादियों को जमीन मुहैया करवा रही है ! ये वो सोच है जो शासक और शासित के भेद को जन्म देती है जबकि सच्चे लोकतंत्र में ऐसी सोच के लिए कोई स्थान नहीं होता है ! लेकिन राजनेताओं का वर्ग आज इसी सोच से ग्रसित है जिसके कारण वो साधारण जनता की जगह अपने को मानकर नहीं सोचता है बल्कि उसकी सोच उस मानसिकता से ग्रसित है जिस मानसिकता से राजशाही का जन्म होता है ! अगर ये नहीं होता और सत्ता पर काबिज लोग आम आदमी के दर्द को अपना दर्द मानते तो नक्सली समस्या का समाधान उसी दिन हो जाता जिस दिन पहली बार नक्सलियों के हाथों कोई आम नागरिक मारा गया था !

बुधवार, 15 मई 2013

राजनैतिक चालबाजियों का दौर है कुछ भी हो सकता है !!

पिछले दिनों चली राजनैतिक गतिविधियों नें कई सवाल खड़े कर दिए हैं ! जिस तरह से कांग्रेस कोर ग्रुप की मीटिंग में सोनिया गांधी का यह कहना कि किसी भी मंत्री का इस्तीफा देने का सवाल ही नहीं उठता और विपक्ष को मुखर जबाब दिया जाए ! संसद सत्र रेलमंत्री पवन बंसल और कानून मंत्री अश्विनी कुमार के इस्तीफे की मांग के शौर शराबे की भेंट चढ गया ! और सोनिया गांधी नें तब भी दोनों मंत्रियों के इस्तीफे के लिए कोई पहल नहीं करती है जबकि कर्नाटक में चुनाव का दौर भी चल रहा था ! फिर अचानक मीडिया में दस जनपथ के  दरबारी ये बात उछालते हैं कि मंत्रियों को लेकर सोनिया नाराज है और प्रधानमंत्री पर मंत्रियों के इस्तीफे के लिए दबाव बनाया जा रहा है !

उसके बाद नाटकीय तरीके से दोनों मंत्रियों के इस्तीफे दिलवाए गए और ऐसा दिखाया गया कि प्रधानमंत्री इन दोनों भ्रष्ट मंत्रियों को बचाना चाहते थे लेकिन सोनिया नें दबाव बनाकर इन दोनों मंत्रियों का इस्तीफा दिलवाया ! जिसके कारण कई सवाल उठना लाजमी है ! पहली बात तो यह है कि नौ साल के यूपीए शासन में देखा नहीं गया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सोनिया गांधी के इतर भी कुछ सोच सकते हैं और कोई कदम उठा सकते हैं और इसके कारण ही तो उन पर विपक्ष की और से लगातार रिमोट प्रधानमंत्री होनें के आरोप लगते रहे हैं इसलिए ऐसा सोचा नहीं जा सकता कि सोनिया गांधी मंत्रियों के इस्तीफे की इच्छुक हो और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनकी बात ठुकरा दें ! और ये बात उसके एकदम उलट है जिसमें अभी तक हर कांग्रेसी कहता आया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह निजी तौर पर ईमानदार हैं !  

दूसरी बात अगर सोनिया गांधी इन दोनों मंत्रियों के इस्तीफे की इच्छुक होती तो इन दोनों मंत्रियों से सीधे इस्तीफा देनें के लिए भी कह सकती थी क्योंकि इस बार तो दोनों मंत्री उनकी पार्टी के ही थे और राजनीति की थोड़ी समझ रखने वाला भी यह जानता है कि कांग्रेस्सियों के लिए दस जनपथ का आदेश भले ही अनमने मन से हो लेकिन शिरोधार्य होता है ! फिर ऐसा क्या कारण था कि सोनिया की नाराजगी की बात मीडिया में फैलाई जाती है और उसके बाद सोनिया गांधी और दस जनपथ के दरबारियों का प्रधानमंत्री से मुलाकातों का दौर चलता है और दोनों मंत्रियों का इस्तीफा दिलवाया जाता है ! 

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

क्या रटे रटाए और सुने सुनाये बयानों को सुनना हमारी मज़बूरी है !!

देश के सामने स्थतियाँ बड़ी विकट है जिनको देश चलाने कि जिम्मेदारी दी वही देश को लुट रहे हैं ! अपनी जिम्मेदारियों में वो ना केवल नाकाम साबित हो रहें है वर्ना दीमक कि तरह देश को खोखला करते जा रहे है ! ना हमारी सीमाएं सुरक्षित है ना हमारे जंगल ,जमीं और नदियाँ सुरक्षित है ! आम आदमी भूख और भय के वातावरण में जी रहा है ! माँ,बहन बेटियाँ हमारी सुरक्षित नहीं है ! इसी देश के वाशिंदे शरणार्थी बनकर रहने को मजबूर है ! इतना सब सामने होते हुए भी हमें केवल और केवल उन्ही घिसे पीटे और रटे रटाए बयानों को सुनना पड़ता है जिनको हम कितनी बार आगे भी सुन चुके होते हैं !

क्या उन्ही बयानों से हमारा भला हो सकता है या फिर उन्ही बयानों को सुनना हमारी मज़बूरी है और हम क्या कुछ नहीं कर सकते हैं ! अगर हम इतने लाचार और मजबूर हैं तो फिर हम कैसे लोकतंत्र में जी रहें हैं ! दरअसल खराबी हमारे लोकतंत्र में नहीं है बल्कि हमारी सोच में है क्योंकि हम सहन करने के आदी हो गए हैं और हम अपने आप में इतने सिमट गए हैं कि हमें कहीं पर कुछ होता है तो उससे फर्क भी नहीं पड़ता है मानो हम तो गहरी नींद में सो रहे हो ! और कभी जागते हैं तो कुछ चीखना चिलाना और दोषारोपण करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और फिर  गहरी नींद में सो जाते हैं ! और हमारी याददास्त तो इतनी कमजोर होती है कि जब वापिस किसी को देश चलाने कि जिम्मेदारी देने कि बात आती है तो हम सब कुछ भूल जाते हैं और हमें याद रहता है तो केवल यह कि उम्मीदवार किस जाति का है अथवा किस धर्म का है !

हमें अपनी गलतियां दिखाई नहीं देती और हम दूसरों पर दोषारोपण करते रहते हैं लेकिन यह एक शास्वत नियम है कि हमारी गलतियों कि सजा हमें भुगतनी ही होगी और वही हो रहा है ! इतिहास में झाँकने और उससे सबक लेना हमारी आदत नहीं है ! इतिहास गवाह है कि जिस पार्टी नें सता में रहते हुए धार्मिक कट्टरपंथ के आगे घुटने टेकते हुए सुप्रीम कौर्ट के फैसले को संविधान संसोधन द्वारा पलटकर देश की सभी मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों अथवा हकों का गला घोट दिया था आज हम उसी पार्टी से यह आशा कर कर रहें है और गुहार लगा रहे हैं कि वो महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करे ! जो पार्टी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हो उसी से हम ये आशा करते हैं कि वो भ्रष्टाचार पर लगाम लगायेगी ! जिस पार्टी को यह दिखाई नहीं देता कि अपने ही देश के लोग शरणार्थी शिविरों में कैसे रह रहे हैं उसी से हम अपने और देश के बेहतर भविष्य कि आशा पाल रहें हैं ! अब इसे क्या हमारी मूर्खता नहीं कहा जाएगा !

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

दिग्भ्रमित से लगते राहुल गांधी !!

कांग्रेस जहां राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की सोच रही है वहीँ लगता है अभी तक राहुल गांधी राजनीति में अपरिपक्व ही है ! उनको राजनीति में आये लगभग दस वर्ष से ज्यादा हो गये हैं लेकिन वो जनता के बीच अपनी गांधी परिवार से जुड़े होनें के अलावा कोई छाप छोड़ पानें में नाकाम ही साबित हुए है ! और कई बार तो खुद राहुल गाँधी ही दिग्भार्मित से नजर आते है जिससे उनकी समझदारी पर ही प्रश्नचिन्ह लगता हुआ दिखाई पड़ता है ! ऐसे में पारिवारिक पृष्ठभूमि के सहारे ही वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार नजर आते है ! वैसे उनके अभी तक के नजरिये पर गौर किया जाए तो वो अस्पष्ट सा ही नजर आता है ! वो समस्याएं गिनाते है लेकिन समाधान उनके पास नहीं है ! वे लोगों की दुर्दशा कि बात करते हैं लेकिन उनकी बेहतरी का रास्ते के बारे में वो अनजान हैं !

राहुल गांधी कि कांग्रेस में जो हैसियत उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण है ! उसके कारण अगर वो करना चाहे और कुछ करनें कि उनकी इच्छा हो तो अभी तक बहुत कुछ कर सकते थे क्योंकि इस देश का बच्चा बच्चा जानता है कि गांधी परिवार ही कांग्रेस है और जब गांधी परिवार ही कांग्रेस हो तो जाहिर है कि प्रधानमंत्री कोई भी क्यों नहीं हो उस परिवार कि सोच ही सरकार कि सोच होती है और उसी सोच के सहारे नीतियां बनती है और उन पर अमल होता है ! इसलिए राहुल गांधी के पास अगर जनता कि बेहतरी के लिए कुछ करनें कि इच्छाशक्ति होती तो यूपीए सरकार के इन नौ सालों में वो बहुत कुछ कर सकते थे ! लेकिन हकीकत के आयने में देखे तो ऐसा कुछ नजर नहीं आता है !

गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

अरविन्द केजरीवाल के समर्थक नदारद !!

दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल महंगी बिजली और पानी को लेकर अनशन कर रहें हैं और अनशन करते हुए बारह दिन हो गये लेकिन लगता है सरकार उनको खास तवज्जो नहीं देना चाहती है ! और इस बार युवा प्रदर्शनकारियों और मीडिया का भी उनको सहयोग नहीं मिल रहा है ! और यही कारण है कि सरकार के कानों पर उनके अनशन को लेकर जूं तक नहीं रेंग रही है ! लेकिन ऐसा होनें के पीछे खुद अरविन्द केजरीवाल के बर्ताव अथवा सोच ही है जिन्होंने यह कहकर आप पार्टी का गठन किया था कि अनशन को सरकार गंभीरता से नहीं ले रही है ! इसलिए अब अनशन करने का कोई फायदा नहीं है ! अब तो चुनाव लड़कर लोकसभा में पहुंचकर ही कुछ किया जा सकता है !

जब इसी सोच के तहत "आप" पार्टी का गठन किया गया था तो फिर अब अरविन्द केजरीवाल अनशन पर क्यों बेठे हैं ! और जब अनशन ही करना था तो अन्ना हजारे भी तो उसी रास्ते पर चल रहे थे ! फिर केजरीवाल नें अपना अलग राजनैतिक रास्ता क्यों चुना ! इसी सवाल का जवाब युवाओं को नहीं मिल रहा है और जब युवाओं को उनके इस सवाल का जवाब ही नहीं मिल रहा है तो वो फिर अरविन्द केजरीवाल के साथ भला क्यों आयेंगे ! अन्ना हजारे कि नैतिक शुचिता और मीडिया के सहयोग के कारण ही युवावर्ग जन लोकपाल आंदोलन के साथ जुड़ा हुआ था ! लेकिन जब अन्ना का रास्ता अलग हो गया और मीडिया भी साथ छोड़ गया तो केजरीवाल के पास समर्थकों का अकाल सा पड़ गया !

सोशल मीडिया से जुड़े हुए युवाओं में भी जन लोकपाल आंदोलन के समय जो जोश नजर आता था वो अब केजरीवाल के समर्थन में दूर दूर तक नजर नहीं आता है ! समर्थन तो दूर कि बात है अब तो शोशल मीडिया में केजरीवाल के विरोध अथवा चुटकियाँ लेने के स्वर ज्यादा दिखाई दे रहें हैं ! जिसका सीधा सा अर्थ है कि अनशन स्थल से लेकर शोशल मीडिया तक हर जगह से केजरीवाल के लिए अच्छे संकेत दिखाई नहीं दे रहे हैं ! और उनके लिए उनका असली रास्ता जो उन्होंने चुना है वो तो इससे भी कठिन साबित होने वाला है ! 

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

हमारी गलतियों का खामियाजा तो हमें हि भुगतना होगा !!

एक अटल सत्य है कि गलती करने वाले को हि अपनी गलती का नुकशान उठाना पड़ता है ! लेकिन  इतनी सी बात हमारे देश के कर्णधारों को समझ में नहीं आ रही है और इसका खामियाजा भारत बराबर भुगतता आ रहा है और यही रवैया रहा तो आगे भी भारत को तो भुगतना हि पड़ेगा ! अब गलती आप करेंगे और उसका नुकशान उठाने के लिए भी आपको हि तैयार रहना होगा भले हि आप उसका दोष किसी दूसरे पर थोप दें लेकिन जिस पर आप दोष डाल रहें हैं उसका तो कुछ भी बुरा होने से रहा ! 

बात चाहे इटली के नौसैनिकों की हो या फिर पाकिस्तान द्वारा पोषित आतंकवाद कि हो हर जगह भारत के हुक्मरानों की असफलता साफ़ नजर आती है अब वो इसके लिए भले हि वो दोष इटली को दें या फिर पाकिस्तान को दें ! लेकिन सच्चाई यही है कि उनको अपनी खुद की गलती नजर नहीं आती है ! अभी हाल हि में हुयी दो घटनाओं का जिक्र यहाँ जरुर करना चाहूँगा जिनमें भारतीय सताधिशों की गलतियां खुद चीख चीख कर बता रही है कि भारतीय सताधिशों नें गलतियां की है लेकिन अफ़सोस तो तब होता है जब भारतीय सताधिश खुद ये मानने को तैयार नहीं है कि उनसे कोई गलती हुयी है !

अभी हाल हि में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री कि निजी यात्रा के समय भारतीय विदेशमंत्री द्वारा दिए गये भोज नें हमारा मजाक उड़ाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी ! उनके द्वारा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को दिए गये भोज के बाद पाकिस्तानी मीडिया नें जोर शोर से यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि सीमा पर भारतीय सैनिकों कि ह्त्या पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा करने कि बात भारतीय सरकार और भारतीय मीडिया द्वारा गढा गया झूठ है और इसके पक्ष में दलील यह है कि अगर ये बात सच होती तो भारतीय विदेशमंत्री  पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से मिलते भी नहीं , भोज देना तो दूर कि बात होती ! और दुनिया इस सच को जानती है कि जिसके दिए जख्मों से दिल छलनी हो तो मिलना तो दूर देखना भी अच्छा नहीं लगता और यहाँ तो हम उनसे मिलने के लिए दिल्ली से जयपुर का रास्ता भी तय कर लिया !