दोहा क़तर में हुए पर्यावरण सम्मलेन में विकसित देशों नें आरोप लगाया कि पशुओं के गौबर से और गौबर गैस से बहुत ज्यादा मीथेन गैस का उत्पादन होता है जिस पर रोक लगाने की जरुरत है ! जिस पर भारत ने यह कहकर आपति जताई है कि इसके लिए पशुओं की संख्या में कमी करनी पड़ेगी और चारे में भी बदलाव करना पड़ेगा जो संभव नहीं है !!
ग्लोबल वार्मिंग पुरे विश्व के लिए बड़ी समस्या है और ये हो रहा है वातावरण में फ़ैल रही कार्बनडाई आक्साइड और मीथेन जैसी गैसों की वजह से और यह भी सच है पशुओं के गौबर से मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है लेकिन विकसित देशों द्वारा कल कारखानों द्वारा फैलाई जा रही कार्बन डाई आक्साइड भी तो ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है और अमेरिका कार्बन डाई आक्साइड फैलाने में सबसे आगे है लेकिन अमेरिका इस मामले को लेकर बिलकुल गंभीर नहीं है और ना ही कार्बनडाई आक्साइड के उत्सर्जन में किसी भी तरह कमी करने को तैयार है और ये विकसित देश सारा का सारा दोष विकासशील देशों पर थोपना चाहते है !!
मांसाहार भी मीथेन गैस का एक कारण है लेकिन विकसित देश खुद मांसाहारी है इसलिए मांसाहार पर रोक लगाने जैसी बात वो कहना नहीं चाहते हैं क्योंकि ऐसा कहने से खुद उनकी जीवनशैली पर असर पड़ता है जिसके लिए वो कतई तैयार नहीं है ! और अन्य कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक सामान भी ग्लोबल वार्मिंग के कारणों में शामिल है लेकिन ये सब पश्चिमी देशों की जीवनशैली में शामिल है इसलिए विकसित देश उन पर बात करना नहीं चाहते हैं और विकासशील देशों पर ही सारा दबाव बनाना चाहते हैं !!
गौबर गैस और गौबर की बात करके विकसित देशों ने इस बार भारत पर दबाव बनाने कि कोशिश की है क्योंकि भारत में पशु सबसे ज्यादा है जबकि वैज्ञानिक भी मानते हैं कि गौबर और गौबर गैस से निकलने वाली मीथेन गैस का एक प्रतिशत हिस्सा भी वायुमंडल में नहीं जाता है बल्कि वो जल जाता है ! ऐसे में जरुरत है विकसित देशों को सही जवाब दिया जाये और हानिकारक गैसों के उत्सर्जन करने वाले देशों की हिस्सेदारी के हिसाब से ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए जबाबदेही तय की जाये और विकसित देशों के दबाव में आने से बचा जाये क्योंकि विकसित देश अपनी जीवनशैली में किसी तरह का बदलाव नहीं करना चाहते हैं और वो चाहतें हैं कि सारा कुछ विकासशील देश ही करें इस सोच का विरोध होना ही चाहिए और विकासशील देश इसका विरोध कर भी रहें हैं !!
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