पीडिता का क्या था दोष, क्यों मर रहे है निर्दोष।
क्या नहीं संस्कृति रही शेष, किधर जा रहा है मेरा देश।।
बदल रहा क्यों पूरा परिवेश, किसने धरा नेताओ का भेष।
बचा नहीं सभ्यता का अवशेष,किधर जा रहा है मेरा देश।।
कुचला जाता युवाओ का जोश,दिल दिल में फूट रहा आक्रोश।
अपराधी कर रहे खुले ऐश,किधर जा रहा है मेरा देश।।
सुन्न प्रशाशन व्यवस्था बेहोश,नियंताओ को क्यों न आता होंश।
सबक नहीं सिखाता जनादेश, किधर जा रहा है मेरा देश।।
गरीबो को मिलता सिर्फ रोष, रोज बढ़ता अमीरों का कोष।।
कुटिल चालो से फेलता द्वेष, किधर जा रहा है मेरा देश।।
बदलाव के होते कोरे उदघोष, कर्ता - धर्ता बने है मदहोश।।
सूरत नहीं बदलता आवेश, किधर जा रहा है मेरा देश।।
(इस कविता के लेखक कौन है इसका पता मुझे नहीं है किसी ने इसको फेसबुक पर शेयर किया और मुझे अच्छी लगी इसलिए मैंने अपने संग्रह में शामिल कर लिया और शेयर कर रहा हूँ )
6 टिप्पणियां :
आनन्-फानन में सरकार ने पीडिता को एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट करके चिता भी जलवा दी ! क्या इससे इनके गुनाह कम हो गए ? या छुप गए ? इतनी त्वरित कार्यवाई ? वो भी गूंगो बहरों द्वारा ? माजरा क्या है ?
बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति भारत सरकार को देश व्यवस्थित करना होगा .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (31-112-2012) के चर्चा मंच-1110 (साल की अन्तिम चर्चा) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
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कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रस्तुति...
नहीं रही संस्कृति अवशेष , बची नहीं सभ्यता शेष....
स्वयं से दूर जा रहा देश,यही रह गया है मेरा देश |
आपका सोचना सही ही है !!
वर्ष की इस सांध्यबेला पर सुंदर प्रस्तुति
नववर्ष की हार्दिक बधाई।।।
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