बुधवार, 5 दिसंबर 2012

पार्टी व्हिप :क्या लोकतंत्र कि मूल भावना के खिलाफ नहीं है !!

प्राय: यह देखा जाता है कि संसद में जब भी किसी मुद्दे पर वोटिंग वाले नियम के तहत चर्चा होती है तो हर पार्टी द्वारा अपने सांसदों को व्हिप जारी कर दिया जाता है जो देखा जाये तो लोकतंत्र की मूल भावना के ही खिलाफ है क्योंकि लोकतंत्र में असहमति का अधिकार तो सबको है लेकिन पार्टी व्हिप जारी करके पार्टियां सांसदों का पार्टी अध्यक्षों के साथ असहमति के अधिकार को छिन लेती है और सांसदों को उसी लाइन पर चलने को मजबूर कर देती है जो पार्टी अध्यक्ष और उनके विश्वासपात्र कुछ लोग निर्धारित कर देतें हैं !!

जब १९६७ में दलबदल पर रोक लगाने की जरुरत महसूस की गयी थी तो एक कमिटी गठित की गयी थी जिसमें मोरारजी देसाई,अटलबिहारी वाजपेई और मधु लिमये जैसे वरिष्ठ नेता शामिल थे उस कमिटी के सुझावों में भी इस बात पर जोर दिया गया था कि दलबदल तो रुकना चाहिए लेकिन ये भी सुनिश्चित किया जाना भी जरुरी है कि सदस्यों का पार्टी अध्यक्षों के साथ असहमति का अधिकार बना रहे जो लोकतंत्र की मूल भावना के लिए जरुरी है ! लेकिन इंदिराजी को कमिटी के सुझाव पसंद नहीं आये और उन्होंने इन सुझावों को ठन्डे बस्ते में डाल दिया और बाद में ३० जनवरी १९८५ को राजीव गाँधी की सरकार ने संविधान के ५२वें संशोधन के रूप में दलबदल विरोधी कानून लागू किया गया लेकिन कमिटी के उस सुझाव को वरीयता नहीं दी गयी जिसमें संसद और विधानसभा सदस्यों के पार्टी अध्यक्षों से असहमति के अधिकार को सुनिश्चित करने की बात की गयी थी !!


हालांकि इस कानून को कड़ा करने के लिए फिर २००३ में भी कुछ संशोधन किये गये थे लेकिन तब भी इस बात पर तवज्जो नहीं दी गयी और आज पार्टी व्हिप सांसदों के गले पर पार्टी अध्यक्षों के साथ असहमति के अधिकार पर तलवार बनकर लटक रहा है और ये उन मतदाताओं का भी अपमान है जिनके मतों से जीतकर ही सांसदों को संसद में मत देने का अधिकार मिलता है और पार्टी अध्यक्ष और उनके सिपहसालार एक लाइन बनाकर सांसदों को उसी लाइन पर चलने को मजबूर कर देते है और उनके खुद के विवेक को दफ़न करके पार्टी अध्यक्षों द्वारा निर्धारित लाइन पर ही चलने को मजबूर कर दिया जाता है जो गलत है !!

जब दलबदल कानून लागू किया गया था तब शायद ये नहीं सोचा गया होगा कि पार्टियां विश्वासमत के समय को छोडकर भी इसका उपयोग करेंगी लेकिन आजकल प्राय: देखा जाता है कि जब भी किसी ऐसे मुद्दे पर बहस होती है जिसके अंत में मतविभाजन होता है उस पर पार्टियां अपने सांसदों को व्हिप जारी कर देती है अब उस मुद्दे पर सांसदों की अपनी अलग राय भी हो सकती है लेकिन उसकी अपनी अलग राय का कोई मतलब नहीं रह जाता है और उसको अपनी अंतरात्मा की आवाज को दबाना पड़ता है ! 

3 टिप्‍पणियां :

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

व्हिप जारी करना लोकतन्त्र की भावना के खिलाफ है,,,

recent post: बात न करो,

virendra sharma ने कहा…

ये जो हाई कमान है और उसकी हेंकड़ी है कोड़ा है ब्लडी व्हिप है यह एक वंशीय राजवंश के शासन से संचालित रहा आया है .इसकी सूत्र धार उस इंदिरा कोंग्रेस को कहा जा सकता है जिसे शोषण के

प्रतीक आपातकाल के लिए भी याद किया जाएगा .यही है इस 127 पुरानी कांग्रेस का संसदीय अवदान .

विजय ने कहा…

वास्तव में इस कानून में संशोधन करके पार्टी व्हिप जरी करने का अधिकार सिर्फ अविश्वास प्रस्ताव तक सीमित कर दिया जाना चाहिए .