शनिवार, 8 दिसंबर 2012

एफडीआई पर जनतंत्र हार गया राजनीति के सामने !!

एफडीआई पर संसद में जिस तरह की राजनितिक कलाबाजियां दिखाई गयी उसको देखकर जनता के मन में नेताओं के प्रति जो अविश्वास का भाव था उसमें और इजाफा ही हुआ है ! उसको देखकर ऐसा लगा कि जनता के सरोकार इन राजनितिक पार्टियों के लिए कोई मायने नहीं रखते हैं और इनकी राजनीति जनता के सरोकारों से ज्यादा जरुरी है ! देशहित की बड़ी बड़ी बातें इनके लिए केवल कहने भर को रह गयी है जबकि इनके व्यवहार से ऐसा लगता है कि इनके निजी हित देश हित से भी बड़े हो गये हैं !!

जिन पार्टियों ने संसद में एफडीआई का विरोध किया उन्ही ने एफडीआई के विरुद्ध संसद में मतदान नहीं किया तो जनता कैसे मान लें कि वो पार्टियां विरोध में है क्योंकि अन्तत्गोवा तो उन्ही पार्टियों ने खुदरा व्यापार में एफडीआई लागू करवाने में ही अपनी भूमिका निभाई और इसको लागू करने में जितनी भूमिका सरकार की है उतनी ही इन पार्टियों की है जिन्होंने एफडीआई के विरुद्ध मतदान ही नहीं किया या एफडीआई के विरुद्ध बड़ी बड़ी बातें करने के बावजूद मतदान एफडीआई के पक्ष में ही किया ! इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा इस तरह का दोहरा रवैया अपनाने वाली पार्टियां भी संसद में है और हर बार जीत कर आ जाती है !!

संसद में मतदान के आंकड़े भले ही  सरकार के पक्ष में आये हो लेकिन अगर संसद में हुयी बहस का सार देखा जाये तो बहुमत एफडीआई के विरुद्ध ही था और ऐसे में भले ही नीतिगत आधार पर सरकार को खुदरा व्यापार में एफडीआई लागू करने का अधिकार मिल गया हो लेकिन नैतिक रूप से देखा जाये तो सरकार को खुदरा व्यापार में एफडीआई लागू नहीं करना चाहिए लेकिन सरकार का रवैया देखकर लगता नहीं है कि वो नैतिकता का ख्याल रखेगी क्योंकि सरकार तो खुदरा व्यापार में एफडीआई लागू करने के लिए ऐसे अड़ी हुयी है जैसे उस पर इसको लागू करवाने के लिए किसी का जबरदस्त दबाव हो !!


अब अगर सरकार सारी बातों को दरकिनार करते हुए खुदरा व्यापार में एफडीआई लागू करती है तो अब इन विदेशी कंपनियों पर नजर रखने की जिम्मेदारी किसान संघठनों और उपभोक्ताओं से जुड़े संघठनों पर आ जाती है और ये विदेशी कंपनियां किसानों और उपभोक्ताओं का शोषण करने कि कोई कोशिश करती नजर आती है तो उनका मुखर विरोध होना चाहिए ताकि ये कंपनियां मनमानी ना कर सके !!

5 टिप्‍पणियां :

रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) ने कहा…

उत्कृष्ट लेखन !!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-12-2012) के चर्चा मंच-१०८८ (आइए कुछ बातें करें!) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!

Gyanesh kumar varshney ने कहा…

भाई जी सादर नमस्कार
हमने देखा है कि आजकल देश में हिन्दु विरोधी लोग इन्टर नेट पर भी काविज है और हमारे हिन्दु ब्लागर या कहै की भारतीयता के पक्षधर ब्लागर उनका मुकाबला भी करते हैं किन्तु अभी तक हम लोग अपने पाठय वर्ग को इकठ्ठा नही कर सके हैं उसका एक कारण तो मेरी नजर में यह आता है कि हम लोगों के ब्लाग तो प्रभु कृपा से कम नही हैं किन्तु समस्या ये है कि ये सब अन्तरजाल पर विखरे पड़े हैं लोग एक जगह न होने की वजह से इन तक पहुँच नही बना पाते हैं सो इस समस्या से कुछ मुक्ति के एक प्रयास में मैने अपने राष्ट्रधर्म को ही एग्रीगेटर बनाने का विचार किया है।सो कुछ हिस्सा बना भी दिया है अब ज्यादा रात हो गयी है कल इसे ठीक से लगाउगा आपका लिंक दे दिया है बहाँ आकर देखे तथा शामिल हो फोलो करके जिससे हम हिन्दु एक जन जागरण ला सके आपकी जानकारी के ब्लागरों को मेरा पता बताऐं जिससे ज्यादा से ज्यादा हिन्दु ब्लागों की एट्री यहाँ हो सके

virendra sharma ने कहा…


बहुत सार्थक आलेख भाईसाहब .संसद का नीति गत आधार ढह चुका है .सत्ता के दल्ले दल्लियाँ नीतियाँ लागू करवा रहें हैं

,डी आई जी के हाथ से पान खा रहें हैं .सोने चांदी में खुदको तुलवा रहें हैं .चांदी की जूती और सोने का जूड़ा बांधतीं हैं एक

दलित देवी .जिधर सीरा मिले खिसक लो .

रचना दीक्षित ने कहा…

सार्थक लेखन.