बुधवार, 26 दिसंबर 2012

बेनकाब होती दागदार दिल्ली पुलिस !!


दिल्ली गेंगरेप को लेकर दिल्ली पुलिस कठघरे खड़ी नजर आ रही है ! बात चाहे विरोध प्रदर्शनों पर की गयी पुलिसिया कारवाई कि हो या फिर पुलिस कांस्टेबल कि मौत का मामला हो या फिर पीड़िता के बयानों की बात हो ! हर सवाल पुलिस को कठघरे में खड़ा कर रहा है ! पुलिस अपने को पाकसाफ बताने कि हरसंभव कोशिश कर रही है लेकिन कुछ ऐसे तथ्य सामने आ रहें है जो पुलिस कि अकर्मण्यता और लापरवाही को साफ़ साफ़ दिखा रहें हैं !

पहले ही दिन से साफ़ दिखाई दे रहा था कि दिल्ली पुलिस प्रदर्शनों को सख्ती से दबाना चाह रही थी जबकि दो दिन तक प्रदशनकारियों की तरफ से किसी भी तरह कि शान्ति भंग नहीं की गयी थी उसके बावजूद पुलिस ने अपना दमनात्मक रवैया अपनाते हुए इण्डिया गेट के आसपास के सभी मेट्रो स्टेशन बंद कर दिए ताकि प्रदर्शनकारी वहाँ तक पहुँच ना पाए ! फिर भी प्रदर्शनकारी नहीं रुके तो पूरी नयी दिल्ली में धारा १४४ लगा दी गयी जो सीधा सीधा लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन था लेकिन फिर भी वो प्रदर्शनकारियों को नहीं रोक पायी ! तब उसने अपना अंतिम हथियार का उपयोग किया जिसके लिए पुलिस जानी जाती है और उसने प्रदर्शनकारियों की तरफ हंगामे का हवाला देकर पुलिसिया कारवाई की ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि कहीं पुलिस ने ही तो हंगामे कि साजिश नहीं रची हो और जिस दिन पुलिस कारवाई हुयी थी उसी दिन उस प्रदर्शन में शामिल कुछ महिलाओं ने इसका इशारा भी किया था ! 


पुलिस द्वारा प्रयोग किये अश्रुगैस के गौले भी ऐसे थे जिनकी उपयोग कि तिथि मई २००९ में ही खतम हो चुकी थी ऐसे में यह सवाल उठेगा ही कि एक्सपायर हो चुके गोलों का प्रयोग क्यों किया गया और क्यों अभी तक ये गौले पुलिस के पास थे और नया माल कहाँ पर है और इसकी जिम्मेदारी किसकी थी ! लेकिन इसका कोई जवाब अभी तक पुलिस की तरफ से नहीं आया है और शायद पुलिस इसका जवाब देना भी उचित समझे ! 


दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल की मौत को लेकर भी दिल्ली पुलिस कटघरे में खड़ी होती जा रही है ! खुद दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने मीडिया को बताया कि उनकी मौत चोटें लगने से हुयी लेकिन चश्मदीद जो उनको अस्पताल ले जाने तक उनके साथ था ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर की बातों पर यह कहकर सवाल खड़े कर दिए कि कांस्टेबल को किसी भी तरह की चोट नहीं लगी हुयी थी और कांस्टेबल सुभाष तौमर को किसी ने पीटा नहीं था और वो दौड़ते हुए अपने आप गिरे थे और चश्मदीद वहाँ मौजूद था इस बात का सबूत तो मीडिया में आई तस्वीरें भी दे रही है ऐसे में सवाल यह उठता है क्यों दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने मीडिया को झूँठ बोला और क्या इस तरह झूँठ बोलने पर दिल्ली पुलिस के इस आला अफसर के विरुद्ध कारवाई नहीं होनी चाहिए !

दिल्ली पुलिस इस गेंगरेप को लेकर कितनी संजीदा थी इसका प्रमाण तो उन एसडीएम महोदया की चिट्ठी से सामने आ ही चूका है जिन्होंने वाकायदा चिट्ठी लिखकर पुलिस के तीन अफसरों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है और यह आरोप लगाया है कि पुलिस के इन तीन अफसरों ने उनको बयानों की वीडियो रिकोर्डिंग नहीं करने दी गयी और उन पर पुलिस द्वारा तय सवाल ही पीड़िता से पूछने का दबाव बनाने कि कोशिश की और ऐसा नहीं करने पर उनको धमकी भी दी गयी  और यह चिट्ठी मीडिया में आते ही तुरंत पुलिस कमिश्नर ने इन आरोपों का बिना जांच के खंडन भी कर दिया जिससे जाहिर होता है कि या तो कमिश्नर साहब को पूरा मामला पहले से ही पता था और उनके इशारे पर ही यह सब हुआ था या फिर उनको अपनी पुलिस दूध की धुली हुयी लगती है और दोनों ही परिस्तिथियों में खुद कमिश्नर साहब कठघरे में खड़े होते है !

इन सभी प्रश्नों को देखते हुए ऐसा लगता है कि पुलिस येनकेन प्रकारेण इस आंदोलन को कुचलने पर आमादा थी और उसने हंगामे का झूंठा बहाना बनाकर इस आंदोलन पर पुलिसिया कारवाई की है और ऐसा वो पहले भी बाबा रामदेव के आंदोलन के समय भी कर चुकी है जब उसने आतंकवादी हमले का बहाना बनाया था ! और सवालों के घेरे में खुद दिल्ली पुलिस कमिश्नर भी आ चुके हैं और मुझे नहीं लगता कि उनके विरुद्ध किसी तरह की कारवाई भी होगी क्योंकि जिन लोगों पर कारवाई करने कि जिम्मेदारी है उन्ही के आदेशों पर ही यह सब कुछ उन्होंने किया होगा ! कारवाई हो या नहीं यह तो साफ़ नहीं है लेकिन एक बात साफ़ है कि इस तरह के रवैये से लोगों का व्यवस्था के प्रति गुस्सा कम होने कि बजाय और बढ़ता ही जाएगा !

1 टिप्पणी :

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

पुलिश को अपनी जिम्मेदारी लेनी होगी,,,

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