दिल्ली गेंगरेप को लेकर दिल्ली पुलिस कठघरे खड़ी नजर आ रही है ! बात चाहे विरोध प्रदर्शनों पर की गयी पुलिसिया कारवाई कि हो या फिर पुलिस कांस्टेबल कि मौत का मामला हो या फिर पीड़िता के बयानों की बात हो ! हर सवाल पुलिस को कठघरे में खड़ा कर रहा है ! पुलिस अपने को पाकसाफ बताने कि हरसंभव कोशिश कर रही है लेकिन कुछ ऐसे तथ्य सामने आ रहें है जो पुलिस कि अकर्मण्यता और लापरवाही को साफ़ साफ़ दिखा रहें हैं !
पहले ही दिन से साफ़ दिखाई दे रहा था कि दिल्ली पुलिस प्रदर्शनों को सख्ती से दबाना चाह रही थी जबकि दो दिन तक प्रदशनकारियों की तरफ से किसी भी तरह कि शान्ति भंग नहीं की गयी थी उसके बावजूद पुलिस ने अपना दमनात्मक रवैया अपनाते हुए इण्डिया गेट के आसपास के सभी मेट्रो स्टेशन बंद कर दिए ताकि प्रदर्शनकारी वहाँ तक पहुँच ना पाए ! फिर भी प्रदर्शनकारी नहीं रुके तो पूरी नयी दिल्ली में धारा १४४ लगा दी गयी जो सीधा सीधा लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन था लेकिन फिर भी वो प्रदर्शनकारियों को नहीं रोक पायी ! तब उसने अपना अंतिम हथियार का उपयोग किया जिसके लिए पुलिस जानी जाती है और उसने प्रदर्शनकारियों की तरफ हंगामे का हवाला देकर पुलिसिया कारवाई की ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि कहीं पुलिस ने ही तो हंगामे कि साजिश नहीं रची हो और जिस दिन पुलिस कारवाई हुयी थी उसी दिन उस प्रदर्शन में शामिल कुछ महिलाओं ने इसका इशारा भी किया था !