बुधवार, 13 मार्च 2013

विफल होती हमारी विदेशनीति खतरा बढ़ा रही है !!

हमारी विदेशनीति कि दुर्बलता हमारे सामने समस्याओं का पहाड़ खडा कर रही है ! हमारे सताधिशों का अमेरिकी प्रेम हमारे लिए दुर्बलता बनता जा रहा है ! वर्तमान समय में हमारे सताधिशों नें सारा ध्यान अमेरिका को खुश करनें में लगा रखा है और दूसरी तरफ चीन हमारे लिए लगातार खतरनाक बनता जा रहा है ! और अमेरिका को खुश करने के चक्कर में हमने रूस जैसे हमारे मित्र देश को चीन के नजदीक कर दिया और आज चीन और रूस मित्र कि भूमिका में है और आज हमारे साथ कोई विश्वासी मित्र देश नहीं है ! रूस को हमने दूर कर दिया और अमेरिका हमारा मित्र बन नहीं रहा है बल्कि केवल बनने का नाटक कर रहा है ! जो निश्चय हि दुखद: है !

जब भी किसी विवाद में हमारे साथ खड़े होने का समय आता है तब वो पाकिस्तान के साथ खड़ा दीखता है ! अमेरिका कि कथनी और करनी में हमेशा हि फर्क रहा है ! अमेरिका बार बार कहता है कि भारत आतंकी हमलों का शिकार है और भारत के दर्द को अपना दर्द बताता है लेकिन जब २६/११ के हमलों की एक कड़ी डेविड हेडली को भारत को सौंपने और उससे पूछताछ करने कि मांग भारत सरकार की तरफ से की गयी तो वो पाकिस्तान के नाराज होने के डर से कन्नी काट गया ! वैसे अमेरिका की दोस्ती का इतिहास खंगाला जाए तो वो आज तक किसी भी देश का स्थायी दोस्त नहीं बन पाया है ! उसकी दोस्ती तब तक हि रहती है जब तक उसे उस देश से फायदा उठाना हो  और जब उस देश को उसकी जरुरत होती है तब वो उस पर खरा नहीं उतरता है ! 

साल २००८ में जब अमेरिका आर्थिक मंदी से जूझ रहा था तब अमेरिका भारत के प्रधानमंत्री की तारीफों के पुल बांधते नहीं थकता था ! और उन तारीफों का असर यह हुआ कि हमारे प्राधानमंत्री समझ बैठे कि अमेरिका दिल से भारत कि तारीफ़ कर रहा है ! उस दौरान जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आये तो उनका शाही स्वागत किया गया ! उस समय उन्होंने भारतीय कंपनियों से समझौता करके ५०००० अमेरिकियों कि नौकरी बचाने में वो कामयाब रहे थे लेकिन वहीँ जब २०१२ में दुबारा आर्थिक मंदी ने दस्तक दी तो वही अमेरिका कहता है कि भारत में निवेश करना जोखिमभरा है ! अमेरिका के इस तरह के व्यवहार से पता चलता है कि वो पूर्ण रूप से व्यापारी है और उससे दोस्ती किसी भी देश के साथ तब तक बनी रह सकती है जब तक उसका खुद का व्यापारिक हित हो ! ऐसे में हम अमेरिका को खुश करने के चक्कर में उस पर हि निर्भर होते जा रहें है !

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

भारतीयों के हितों की रक्षा कर पाएगी हमारी सरकारें !

पिछले दिनों हमारी सरकार नें खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को मंजूरी दी थी तो जो लोग उसका विरोध कर रहे थे उनके विरोध को विदेशी निवेश के समर्थक यह कहकर खारिज कर रहे थे कि आज ईस्ट इण्डिया कम्पनी वाला ज़माना नहीं है ! हमारी सरकार है और अगर कहीं कुछ गलत होता है तो हमारी सरकार हमारे हितों की रक्षा करेगी ! यह कहने वालों में वो लोग शामिल थे जो बड़े बड़े बुद्धिजीवी और अर्थशास्त्र के जानकार माने जाते हैं ! अब सवाल यह उठता है कि उनकी बातों में सच्चाई है या फिर कुछ लोगों के फायदे के लिए हि इस बात को कहा जा रहा था !

जो लोग विदेशी निवेश के समर्थक हैं और सरकार पर वो लोग इतना भरोसा कर रहें है लेकिन में इस मामले पर कहना चाहता हूँ कि उनकी बात सच्चाई से कोसों दूर है ! हम शायद बहुत भुलक्कड़ हैं इसीलिए हमें याद नहीं रहता और इस तरह के तर्क देते हैं  वर्ना आजाद भारत में भी ऐसे उदाहरण हमारे सामने है कि हमारी सरकार विदेशी कंपनियों से हमारे हितों की रक्षा करने में नाकाम रही है ! ये लोग शायद भोपाल गैस कांड को भूल गए जिसमें एक हि रात में तक़रीबन १७००० से ज्यादा लोग मारे गए थे तथा हजारों लोग जीवन भर के लिए अपंग हो गए और उस कम्पनी यूनियन कार्बाइड के मुखिया एंडरसन को सत्ता से जुड़े लोगों ने इस देश से ना केवल यहाँ से जाने दिया बल्कि उसको देश से बाहर निकालने में मदद भी की ! 

मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

वालमार्ट की रिपोर्ट से कठघरे में सरकार !!

वालमार्ट द्वारा अमेरिकी सीनेट में पेश रिपोर्ट से सरकार कि मुश्किलें तो बढ़ ही गयी है और सरकार खुद कटघरे में खड़ी हो गयी है क्योंकि लोकसभा में सरकार के मंत्रियों ने खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के पक्ष में कई तर्क दिए और एफडीआई को देशहित में बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी ! लेकिन वालमार्ट कि यह रिपोर्ट सरकार की बड़ी बड़ी बातों कि पोल खोल रही है जिसमे वालमार्ट कि तरफ से कहा गया है कि भारत में खुदरा क्षेत्र में प्रवेश के लिए लोबिंग करवाई जिसमें उसने एक सौ पच्चीस करोड़ रूपये खर्च किये हैं और साथ ही उसने यह भी कहा है कि वह २००८ से ही इसके लिए प्रयासरत थी !!

अमरीकी कानून के हिसाब से लौबिंग भले ही जायज हो लेकिन भारत के कानून में लौबिंग को गैरकानूनी माना जाता है ! भारत में लौबिंग को रिश्वत माना जाता है इसलिए ये पता लगाना जरुरी हो जाता है कि ये रिश्वत किन लोगों को मिली थी और किन लोगों ने वालमार्ट के पक्ष में फैसले लेने के लिए भारत सरकार को प्रभावित किया और जब तक इस मामले की निष्पक्ष जांच नहीं हो जाती तब तक सरकार को खुदरा क्षेत्र में एफडीआई के फैसले को लंबित रखा जाना चाहिए क्योंकि यह देशहित से जुड़ा हुआ व्यापारिक मामला है  जो देश के हितों को प्रभावित कर सकता है !!

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

एफडीआई पर जनतंत्र हार गया राजनीति के सामने !!

एफडीआई पर संसद में जिस तरह की राजनितिक कलाबाजियां दिखाई गयी उसको देखकर जनता के मन में नेताओं के प्रति जो अविश्वास का भाव था उसमें और इजाफा ही हुआ है ! उसको देखकर ऐसा लगा कि जनता के सरोकार इन राजनितिक पार्टियों के लिए कोई मायने नहीं रखते हैं और इनकी राजनीति जनता के सरोकारों से ज्यादा जरुरी है ! देशहित की बड़ी बड़ी बातें इनके लिए केवल कहने भर को रह गयी है जबकि इनके व्यवहार से ऐसा लगता है कि इनके निजी हित देश हित से भी बड़े हो गये हैं !!

जिन पार्टियों ने संसद में एफडीआई का विरोध किया उन्ही ने एफडीआई के विरुद्ध संसद में मतदान नहीं किया तो जनता कैसे मान लें कि वो पार्टियां विरोध में है क्योंकि अन्तत्गोवा तो उन्ही पार्टियों ने खुदरा व्यापार में एफडीआई लागू करवाने में ही अपनी भूमिका निभाई और इसको लागू करने में जितनी भूमिका सरकार की है उतनी ही इन पार्टियों की है जिन्होंने एफडीआई के विरुद्ध मतदान ही नहीं किया या एफडीआई के विरुद्ध बड़ी बड़ी बातें करने के बावजूद मतदान एफडीआई के पक्ष में ही किया ! इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा इस तरह का दोहरा रवैया अपनाने वाली पार्टियां भी संसद में है और हर बार जीत कर आ जाती है !!

संसद में मतदान के आंकड़े भले ही  सरकार के पक्ष में आये हो लेकिन अगर संसद में हुयी बहस का सार देखा जाये तो बहुमत एफडीआई के विरुद्ध ही था और ऐसे में भले ही नीतिगत आधार पर सरकार को खुदरा व्यापार में एफडीआई लागू करने का अधिकार मिल गया हो लेकिन नैतिक रूप से देखा जाये तो सरकार को खुदरा व्यापार में एफडीआई लागू नहीं करना चाहिए लेकिन सरकार का रवैया देखकर लगता नहीं है कि वो नैतिकता का ख्याल रखेगी क्योंकि सरकार तो खुदरा व्यापार में एफडीआई लागू करने के लिए ऐसे अड़ी हुयी है जैसे उस पर इसको लागू करवाने के लिए किसी का जबरदस्त दबाव हो !!

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बहाने कहीं कालेधन को तो ठिकाने नहीं लगाना चाहती है सरकार !!


सरकार जिस तरह से विदेशी निवेश के मामले पर अड़ी हुयी है और उसको हर हालत में लागू करवाना चाहती है उससे देशवासियों के मन में शक तो जरुर पैदा हुआ है ! आखिर विदेशी निवेश के मुद्दे पर सरकार इतनी उतावली क्यों हो रही है और इस मुद्दे पर उसका अपने सहयोगी दलों से भी मतभेद है फिर भी सरकार इसको येनकेनप्रकारेण लागू करना चाहती है उससे लगता है कि सरकार का असली मकसद कुछ और ही है !!

बात अगर देश की आर्थिक हालत सुधारने की है तो अगर सरकार कालेधन को देश में लाने की और सकारात्मक कदम बढ़ाती तो भी आर्थिक हालात अच्छे हो सकते थे लेकिन सरकार ने उस दिशा में तो अंगद के पैर की तरह से अडिग है और सुप्रीम कौर्ट की लाख कोशिशों के बावजूद भी कुछ भी करना नहीं चाहती है और विदेशी निवेश के मामले में वो सरपट दौडना चाहती है ऐसे में बाबा रामदेव जी की वो बात सच प्रतीत होती है जिसमें उन्होंने कहा था कि एफडीआई कालेधन की चाबी है !!