हमारी विदेशनीति कि दुर्बलता हमारे सामने समस्याओं का पहाड़ खडा कर रही है ! हमारे सताधिशों का अमेरिकी प्रेम हमारे लिए दुर्बलता बनता जा रहा है ! वर्तमान समय में हमारे सताधिशों नें सारा ध्यान अमेरिका को खुश करनें में लगा रखा है और दूसरी तरफ चीन हमारे लिए लगातार खतरनाक बनता जा रहा है ! और अमेरिका को खुश करने के चक्कर में हमने रूस जैसे हमारे मित्र देश को चीन के नजदीक कर दिया और आज चीन और रूस मित्र कि भूमिका में है और आज हमारे साथ कोई विश्वासी मित्र देश नहीं है ! रूस को हमने दूर कर दिया और अमेरिका हमारा मित्र बन नहीं रहा है बल्कि केवल बनने का नाटक कर रहा है ! जो निश्चय हि दुखद: है !
जब भी किसी विवाद में हमारे साथ खड़े होने का समय आता है तब वो पाकिस्तान के साथ खड़ा दीखता है ! अमेरिका कि कथनी और करनी में हमेशा हि फर्क रहा है ! अमेरिका बार बार कहता है कि भारत आतंकी हमलों का शिकार है और भारत के दर्द को अपना दर्द बताता है लेकिन जब २६/११ के हमलों की एक कड़ी डेविड हेडली को भारत को सौंपने और उससे पूछताछ करने कि मांग भारत सरकार की तरफ से की गयी तो वो पाकिस्तान के नाराज होने के डर से कन्नी काट गया ! वैसे अमेरिका की दोस्ती का इतिहास खंगाला जाए तो वो आज तक किसी भी देश का स्थायी दोस्त नहीं बन पाया है ! उसकी दोस्ती तब तक हि रहती है जब तक उसे उस देश से फायदा उठाना हो और जब उस देश को उसकी जरुरत होती है तब वो उस पर खरा नहीं उतरता है !
साल २००८ में जब अमेरिका आर्थिक मंदी से जूझ रहा था तब अमेरिका भारत के प्रधानमंत्री की तारीफों के पुल बांधते नहीं थकता था ! और उन तारीफों का असर यह हुआ कि हमारे प्राधानमंत्री समझ बैठे कि अमेरिका दिल से भारत कि तारीफ़ कर रहा है ! उस दौरान जब अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आये तो उनका शाही स्वागत किया गया ! उस समय उन्होंने भारतीय कंपनियों से समझौता करके ५०००० अमेरिकियों कि नौकरी बचाने में वो कामयाब रहे थे लेकिन वहीँ जब २०१२ में दुबारा आर्थिक मंदी ने दस्तक दी तो वही अमेरिका कहता है कि भारत में निवेश करना जोखिमभरा है ! अमेरिका के इस तरह के व्यवहार से पता चलता है कि वो पूर्ण रूप से व्यापारी है और उससे दोस्ती किसी भी देश के साथ तब तक बनी रह सकती है जब तक उसका खुद का व्यापारिक हित हो ! ऐसे में हम अमेरिका को खुश करने के चक्कर में उस पर हि निर्भर होते जा रहें है !