शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

क्या खुद्दारी से जीना भूल गये हम ,स्वाभिमान भी गँवा बैठे है !


क्या खुद्दारी से जीना भूल गये हम ,आत्मसम्मान भी गँवा बैठे है !
जिनकी खुद कि कोई औकात नहीं ,वो भी हमें औकात बता बैठे हैं !!
काश इंदिरा ,शास्त्री आज जिन्दा होते ,दुश्मन को औकात दिखा देते !
फिर कभी हिम्मत दुश्मन ना करता ,उसे छटी का दूध याद दिला देते !!

गांधी के तीन बंदरों का हाल है ,सबकुछ जानकार भी अंजान  हैं !
दुश्मन हर बार धोखा देता है ,फिर भी कहते है कि वो नादान हैं !!
क्यों मुहंतोड़ जवाब नहीं दे पाते हैं,आखिर हम किस से डरते  हैं !
इन्तजार उसके हमले का क्यों ,हमारी और से क्यों नहीं करते हैं !!

अपने जवानों को हमने खोया है ,उसने तो हमको घात किया है !
भारत माँ का सीना छलनी करके ,हमको गहरा आघात दिया है !!
अब भी हम उसी से आस लगाए हैं ,हमसा कोई नादान ना होगा !
क्यों हम गहरी ख़ामोशी में हैं,ईंट का जवाब पत्थर से देना होगा !!


इस बार अगर जवाब हम नहीं दे पाये ,तो हिम्मत बढ़ जायेगी !
हमारी ख़ामोशी को कमजोरी समझ ,फिर से यह दोहराई जायेगी !!
इस बार ख़ामोशी नहीं रखनी होगी ,उसकी औकात बतानी होगी !
दोनों में कौन शेर है और कौन बिल्ली ,यह बात उसे बतानी होगी !!

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