भारतीय समाज आज दिग्भ्रमित क्यों है जबकि आदिकाल से ही वो अपने उच्च आध्यात्मिक,सामाजिक और नैतिक मूल्यों को लेकर शीर्ष पर रहा है और कभी विश्वगुरु के रूप में जाना जाता था और विडम्बना देखिये आज वही समाज अपने अंदर आ रही गिरावट को लेकर दिग्भ्रमित है उसे समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है !
भारतीय समाज अपने जिन उच्च आदर्श मूल्यों के लिए जाना जाता था उनका इस तरह से हास क्यों हो रहा है इस पर समाज को विचार करना होगा ! परिवार ही मिलकर समाज बनाते हैं इसलिए सबसे पहले हमें अपने परिवारों की तरफ ध्यान देना होगा ! किसी जमाने में पुरे गांव को ही परिवार समझा जाता था और जिस तरह से आज हम एकल परिवारों में रिश्ते निभाते हैं उसी तरह ग्रामस्तर पर रिश्ते निभाये जाते थे ! फिर आया सयुंक्त परिवारों का ज़माना जिसके बारे में तो सब कोई जानता है लेकिन अब सयुंक्त परिवार भी अँगुलियों पर गिनने लायक बचे हैं ! सयुंक्त परिवारों का सबसे बड़ा फायदा था कि बच्चों के ऊपर ज्यादा लोगों कि नजर रहती थी और जहां कुछ गलत नजर आता वहाँ बच्चों को डाँटकर समझाया जाता था और बच्चे आगे से ऐसी गलती नहीं करते थे ! और वही बच्चे जब बड़े होते तब तक उनमे वहीँ संस्कार घर कर जाते थे जिसके कारण ऐसी घटनाएं नहीं घटती थी जैसी आज घट रही हैं !
आज एकल परिवार का ज़माना है जहां पर ना तो माता पिता के पास समय है यह देखने के लिए कि हमारा बच्चा क्या कर रहा है और समय भी है तो दो बच्चों के जमाने में लाड प्यार में बच्चों कि गलत हरकतों को नजरअंदाज कर देते है ! एकल परिवारों में माता पिता के पास समय का अभाव रहता है जिसके कारण बच्चों को भली प्रकार से संस्कार नहीं मिल पाते हैं ! जिससे बच्चों के पारिवारिक संस्कारों की नीवं कमजोर रह जाती है और जब पारिवारिक संस्कारों की नीवं ही कमजोर हो तो उसका नुकशान तो आगे जाकर समाज को भुगतना ही पड़ेगा ! इसलिए अगर सब कुछ ठीक करना है तो हमें सबसे पहले अपने परिवारों की तरफ ध्यान देना होगा और अच्छा हो अगर हम सयुंक्त परिवारों में ही रहना सीखें और अगर ये नहीं हो सकता तो इस पर विचार किया जाए कि एकल परिवार में भी बच्चों को कैसे बेहतर संस्कार दे पायें !
पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण भी कहीं ना कहीं हमारे लिए मुसीबतें खड़ी कर रहा है ! हम यह तय नहीं कर पा रहें है कि क्या हमारे लिए अच्छा है और क्या बुरा है ! बिना सोचे समझे हम आगे बढे जा रहें है ! हम पूरी तरह से भारतीय सभ्यता को तो त्याग नहीं सकते है और पश्चिमी सभ्यता कि नक़ल करने कि कोशिश कर रहें है जो हमारे समाज के लिए घातक साबित हो रही है क्योंकि दो नावों पर सवारी करने वाली हालत हो रही है ! हमें अंधानुकरण करने से परहेज करना चाहिए और जो अच्छा हो वही अपनाना चाहिए !
टेलीविजन चेन्नल भी हमारे आदर्श मूल्यों में गिरावट के लिए अहम भूमिका निभा रहें है और एक ऐसी संस्कृति विकसित करने कि कोशिश कर रहें है और ऐसी सामग्री दर्शकों के सामने परोस रहें है जिनके कारण सामाजिक मूल्यों में गिरावट आ रही है ! विज्ञापनों के जरिये तो ऐसी सामग्री दिखाई जाती है जिनमें औरत को सीधे तौर पर दर्शकों के सामने भोग कि वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जाता है ! इसलिए इस और भी ध्यान दिया जाना चाहिए और टेलीविजन चेन्न्लों को ऐसी सामग्री नहीं दिखाने के लिए पाबन्द किया जाना चाहिए !
भारतीय समाज के पास आज भी इतना सामर्थ्य है कि वो सब कुछ ठीक कर सकता है बस जरुरत है तो उसको मनन और चिंतन करने कि और अपने अंदर आई कमियों को दूर करने की अगर वो यह सब करने की इच्छाशक्ति अपने अंदर पैदा कर सके तो आज भी सबकुछ ठीक हो सकता है !!
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