मैंने अपने पिछले लेख में आपको बताया था कि किस तरह से विदेशी मुद्रा के लालच में हमारी सरकारें भारत के पशुधन को कत्लखानों के जरिये मरवा रही है लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि सरकारी आंकड़ों को देखा जाए तो यह बात निकलकर आती है कि हमारे दुधारू पशु लगातार कम होते जा रहें हैं लेकिन फिर भी दुग्ध उत्पादन लगातार बढ़ रहा है ! हालांकि जरुरत के हिसाब से नहीं बढ़ रहा है लेकिन फिर भी बढ़ रहा है ! जो देखा जाए तो एक अजीब हि कहानी कह रहा है !
१९९१-१९९२ में जहां भारत में दूध कि उपलब्धता प्रति व्यक्ति १७८ ग्राम थी वो २००४-२००५ में बढ़कर २३९ ग्राम हो गयी और इसका कारण यह है कि भारत में जितने दुधारू पशु है उनमें भी बड़ी संख्या जर्सी गायों और अन्य हाइब्रिड पशुओं कि है जो ज्यादा दूध दे रहें हैं ! इसका सीधा मतलब यह हुआ कि भारतीय प्रजाति के दुधारू पशु अब बहुत हि कम संख्या में रह गए हैं जो निश्चय हि चिंता कि बात है लेकिन हमारी सरकारों को तो निरीह जानवरों के मांस में भी विदेशी मुद्रा नजर आती है और यही कारण है कि भारत सरकार ना केवल नए नए कत्लखानों को मंजूरी दे रही है बल्कि कत्लखानों को आधुनिक मशीनें लगाने के लिए अनुदान और कम ब्याज पर ऋण भी उपलब्ध करवा रही है ताकि इस देश का ज्यादा से ज्यादा पशुधन को काटकर विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सके !
जिस दर से गाय सहित अन्य पशुधन कि संख्या लगातार घटती जा रही है उससे यह सवाल उठ सकता है कि क्या भारत कृषि प्रधान देश बना रह सकेगा क्योंकि कृषि के लिए उर्वरक जमीन ,खाद और पानी पहली आवश्यकता है और कुदरती खाद पशु हि तैयार करते हैं जिनके मल मूत्र ,विचरण और बैठने से धरती में फलद्रुप्ता आती है ! और अगर पशु हि नहीं बचेंगे तो यह सब होगा कैसे और अगर पशु नहीं बचेंगे तो फिर इंसान ये सब हासिल नहीं कर सकता है और इनके बिना खेती होना संभव नहीं है !
एक अमेरिकन वैज्ञानिक के अनुसार एक किलोग्राम मांस उत्पादन में ५ किलोग्राम अन्न और ३००० लीटर सिंचाई का पानी तथा २ लीटर गैसोलीन के बराबर ऊर्जा खर्च होती है और हर तरफ यही चर्चा होती है कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए हि होगा ! वहीँ वर्ल्ड वाच इंस्टीट्यूट ,वाशिंगटन ने भी दुनिया को सतर्क करते हुए कहा कि पशुओं का क़त्ल जल,भूमि और प्राकृतिक व्यवस्था को असंतुलित करते हैं ! वहीँ तीन भारतीय वैज्ञानिकों डॉ.अब्राहम ,डॉ. विजयराज सिंह और डॉ.मदन मोहन बजाज नें भी दो दशक तक शाकाहार और मांसाहार पर तुलनातमक शौध और अनुसंधान किया और उस खोज के सिदान्त को तीनों वैज्ञानिकों के नाम के प्रथम अक्षर बिस (BIS) कि संज्ञा दी गयी ! इस सिदान्त में सबसे चौकाने वाला जो तथ्य था वो यह था कि विश्व में जितनी भी प्राकृतिक आपदाएं आती है उनके पीछे मुख्य कारण हिंसा हि होती है ! भूकम्प ,ज्वालामुखी और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का विश्लेषण करके यह पता लगाया गया कि जिस तेजी से धरती और समुद्र के जीवों का सफाया किया जा रहा है उसके कारण यह संकट मानव जाति को निगलने कि तैयारी में है !
एक अमेरिकन वैज्ञानिक के अनुसार एक किलोग्राम मांस उत्पादन में ५ किलोग्राम अन्न और ३००० लीटर सिंचाई का पानी तथा २ लीटर गैसोलीन के बराबर ऊर्जा खर्च होती है और हर तरफ यही चर्चा होती है कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए हि होगा ! वहीँ वर्ल्ड वाच इंस्टीट्यूट ,वाशिंगटन ने भी दुनिया को सतर्क करते हुए कहा कि पशुओं का क़त्ल जल,भूमि और प्राकृतिक व्यवस्था को असंतुलित करते हैं ! वहीँ तीन भारतीय वैज्ञानिकों डॉ.अब्राहम ,डॉ. विजयराज सिंह और डॉ.मदन मोहन बजाज नें भी दो दशक तक शाकाहार और मांसाहार पर तुलनातमक शौध और अनुसंधान किया और उस खोज के सिदान्त को तीनों वैज्ञानिकों के नाम के प्रथम अक्षर बिस (BIS) कि संज्ञा दी गयी ! इस सिदान्त में सबसे चौकाने वाला जो तथ्य था वो यह था कि विश्व में जितनी भी प्राकृतिक आपदाएं आती है उनके पीछे मुख्य कारण हिंसा हि होती है ! भूकम्प ,ज्वालामुखी और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का विश्लेषण करके यह पता लगाया गया कि जिस तेजी से धरती और समुद्र के जीवों का सफाया किया जा रहा है उसके कारण यह संकट मानव जाति को निगलने कि तैयारी में है !
जिस पशु हिंसा अथवा मांसाहार के प्रति कल तक केवल धर्मगुरु हि लोगों को बता रहे थे और लोग इसे पाखंड कहकर टाल देते थे ! लेकिन हिंसा किस तरह से हमारे पर्यावरण के लिए खतरनाक साबित हो रही है इस पर अब विज्ञान भी आगाह कर रहा है ! बिस (BIS) के सिदान्त के अनुसार यदि शाकाहार कि गुणवता और सकारात्मकता को प्रचारित किया जाए तो विश्व के ७० % चिकित्सा व्यय को आसानी से बचाया जा सकता है ! इस तरह से देखा जाए तो पशुहिंसा से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में हर कोई हमें आगाह कर रहा है लेकिन हमारी सरकारें कब समझेगी कि हम अपने असली धन को डॉलर की चमक के आगे कुर्बान करते जा रहें हैं और जब तक यह बात सरकारों कि समझ में नहीं आएगी तब तक सकारात्मक परिणामों की अपेक्षा करना बेकार है !
लोगों को भी इस मामले में आगे आना होगा और पशुहिंसा के विरोध में होने वाले आंदोलनों में भाग लेकर सरकारों पर दबाव बनाना होगा वर्ना कहीं ऐसा ना हो कि जब तक हम समझें तब तक बहुत दैर हो जाए ! युवा वर्ग को खास तौर पर जागरूक होना होगा क्योंकि अभी तक युवा वर्ग इस तरह के आंदोलनों से अपने को दूर हि रखता आया है !
( तथ्यात्मक साभार मुजफ्फर हुसैन जी कि पुस्तक "इस्लाम और शाकाहार ")
5 टिप्पणियां :
शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .जन जीवन के लिए उपयोगी पोस्ट .पशु धन आज भी खेती की रीढ़ है पर्यावरण की नव्ज़ .
सकारात्मक परिणामो के लिए सरकार पर दबाव बनाना ही पड़ेगा,,,,,
RECENT POST बदनसीबी,
गोंडा यू पी का मंत्री थानों को पैसे भिजवाता है
ताकि उसके ट्रक न रोके जाएँ-
और वही पांडे जी हुंकारते भी हैं कि एक एक अधिकारी को देख लेंगे-
पशुधन कट रहा है-
दोहरे चरित्र वालों पर भरोसा करना बेकार है जो भी करना होगा वो अपने बूते हि करना होगा !!
सारगर्भित एवं विचारणीय आलेख ....
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