सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

पशुधन के मामले में कंगाल होता भारत !! ( भाग -२ )

मैंने अपने पिछले लेख में आपको बताया था कि किस तरह से विदेशी मुद्रा के लालच में हमारी सरकारें भारत के  पशुधन को कत्लखानों के जरिये मरवा रही है लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि सरकारी आंकड़ों को देखा जाए तो यह बात निकलकर आती है कि हमारे दुधारू पशु लगातार कम होते जा रहें हैं लेकिन फिर भी दुग्ध उत्पादन लगातार बढ़ रहा है ! हालांकि जरुरत के हिसाब से नहीं बढ़ रहा है लेकिन फिर भी बढ़ रहा है ! जो देखा जाए तो एक अजीब हि कहानी कह रहा है !

१९९१-१९९२ में जहां भारत में दूध कि उपलब्धता प्रति व्यक्ति १७८ ग्राम थी वो २००४-२००५ में बढ़कर २३९ ग्राम हो गयी और इसका कारण यह है कि भारत में जितने दुधारू पशु है उनमें भी बड़ी संख्या जर्सी गायों और अन्य हाइब्रिड पशुओं कि है जो ज्यादा दूध दे रहें हैं ! इसका सीधा मतलब यह हुआ कि भारतीय प्रजाति के दुधारू पशु अब बहुत हि कम संख्या में रह गए हैं जो निश्चय हि चिंता कि बात है लेकिन हमारी सरकारों को तो निरीह जानवरों के मांस में भी विदेशी मुद्रा नजर आती है और यही कारण है कि भारत सरकार ना केवल नए नए कत्लखानों को मंजूरी दे रही है बल्कि कत्लखानों को आधुनिक मशीनें लगाने के लिए अनुदान और कम ब्याज पर ऋण भी उपलब्ध करवा रही है ताकि इस देश का ज्यादा से ज्यादा पशुधन को काटकर विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सके !

जिस दर से गाय सहित अन्य पशुधन कि संख्या लगातार घटती जा रही है उससे यह सवाल उठ सकता है कि क्या भारत कृषि प्रधान देश बना रह सकेगा क्योंकि कृषि के लिए उर्वरक जमीन ,खाद और पानी पहली आवश्यकता है और कुदरती खाद पशु हि तैयार करते हैं जिनके मल मूत्र ,विचरण और बैठने से धरती में फलद्रुप्ता आती है ! और अगर पशु हि नहीं बचेंगे तो यह सब होगा कैसे और अगर पशु नहीं बचेंगे तो फिर इंसान ये सब हासिल नहीं कर सकता है और इनके बिना खेती होना संभव नहीं है !

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

पशुधन के मामले में कंगाल होता भारत !! (भाग -१)

भारत को अहिंसावादी देश माना जाता है ! इतिहास बताता कि यहाँ कभी घी और दूध कि नदियाँ बहती थी और पशुओं के प्रति जनता का अगाध प्रेम था ! पशु पक्षी प्रेम को धर्म का अंग मानकर उनकी पूजा होती थी ! इस आधार पर देखा जाए तो विश्व में सर्वाधिक पशु पक्षी भारत में ही होने चाहिए थे लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में लगातार पशु पक्षियों की संख्या में गिरावट आ रही है और कुछ प्रजातियां तो ऐसी है जो या तो लुप्त हो गयी या फिर लुप्त होने के कगार पर पहुँच गयी है ! 

अगर हम भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में १९५१ में जहां १००० भारतीयों के अनुपात में ४३० दुधारू पशु थे जो घटकर २००१ में मात्र ११० रह गयी ! अब इसको दूसरों देशों के साथ तुलना करें तो अर्जेंटीना में २०८४ ,आस्ट्रेलिया में १४६५ ,कोलम्बिया में ९१९ , ब्राजील में ७२६ दुधारू पशु प्रति एक हजार व्यक्ति है ! इसी तरह कि स्थति अन्य पशुओं के मामले में भी है ! विचार करने योग्य बात यह है कि क्या कारण है कि हम पशुधन के मामले में कंगाल होते जा रहें है तो इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि हमारी सरकारों ने एक बहुत ही घिनोना काम यह किया कि अपने पशुधन को विदेशी मुद्रा अर्जित करने का सबसे बड़ा स्रोत मान लिया और निरंतर कत्लखानों के जरिये हर वर्ष लाखों पशुओं का क़त्ल कराकर विदेशी मुद्रा अर्जित कि जा रही है !