गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

जनता अगर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन ना करे तो !!


जब सरकारों द्वारा अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन सही तरीके से नहीं किया जाता है तो हर कोई सरकारों पर निशाना साधता हुआ दिखाई देता है ! जिसका अधिकार लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के तहत हर किसी को है ! लेकिन जनता के लिए भी तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सरकारों कि आलोचना करने के अलावा भी तो कुछ जिम्मेदारियां होती है और जब जनता ही अपनी जिम्मेदारियों अथवा कर्तव्यों का पालन सही तरीके से नहीं कर पाए तो दोष किसको दिया जाए !

जनता की जिम्मेदारियों को अलग अलग श्रेणियों में रखा जा सकता है जिनमें मानवीय, नैतिक और अधिकारपूर्ण जिम्मेदारी के रूप में समझा जा सकता है ! मानवीय जिम्मेदारियों के अंतर्गत वो कार्य आते हैं जिनको करने के लिए बाध्य तो नहीं है लेकिन मानवता को ध्यान में रखते हुए वो कार्य करने चाहिए ! नैतिक जिम्मेदारियों का अर्थ होता है कि आपसे शासन नीति द्वारा बनाए हुए नियमों और दिशानिर्देशों के पालन करने कि आशा की जाती है ! और तीसरी और अहम जिम्मेदारी जनता को लोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा अधिकार के रूप में मिली हुयी है और वो जिम्मेदारी है ऐसे योग्य जनप्रतिनिधियों को चुनने की जो इस देश की व्यवस्था को सही तरीके में सक्षम हो और देश को उन्नति के रास्ते पर आगे लेकर जा सके !

हमारे देश में आज की वास्तविक स्थति देखें तो जनता अपनी इन तीनों जिम्मेदारियों में असफल ही नजर आती है ! मानवीय जिम्मेदारी कि बात करें तो इसका हाल रोज देखा जा सकता है ! कहीं पर भी किसी भी तरह कि दुर्घटना के शिकार लोगों कि मदद करना तो दूर बल्कि रुकना तक नहीं चाहते हैं ! और कुछ लोग अगर रुक भी जाए तो मदद को आगे नहीं आते बल्कि देखकर आगे चल देते हैं ! क्या यही हमारी मानवीय जिम्मेदारियों को निर्वहन करने का सही तरीका है !


नैतिक जिम्मेदारियों के उलंघन के मामले तो आपको हर जगह देखने को मिल जाएगा ! अब वो चाहे आप रेलयात्रा कर रहे हो या फिर अस्पताल में हो हर जगह नीति द्वारा निर्धारित नियमों कि धज्जियां उड़ाते आपको बहुत सारे लोग मिल जायेंगे ! और नैतिक नियमों के उल्लंघन के मामले में वही लोग सबसे आगे मिलेंगे जिनको पढ़ा लिखा  समझा जाता है !

और अधिकारपूर्ण जिम्मेदारियों के निर्वहन के बारे में तो ज्यादा कुछ कहने कि जरुरत ही नहीं है क्योंकि देश की आधी जनता तो अपने को उस जिम्मेदारी से दूर ही रखती है और जो आधी जनता उस जिम्मेदारी को निभाने कि कोशिश करती है उसका नतीजा भी रोज देखा जा सकता है जहां राजनैतिक पार्टियों द्वारा सौदेबाजियां की जाती है ! अब सवाल ये उठता है कि जनता द्वारा अपनी जिम्मेदारियों का असफल निर्वहन के लिए किसको दोष दिया जाए ! 

7 टिप्‍पणियां :

HARSHVARDHAN ने कहा…

पिछले दिनों हुई एकाध घटनाओं से ऐसा लगता है, जैसे हम मानव अपने मानवीय कर्तव्यों को भूलते जा रहे।
सटीक एवं सुन्दर प्रस्तुति। आभार।

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धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

जनता खुद अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन सही नहीं करती,तो सरकार को दोष देना बेकार है,
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कविता रावत ने कहा…

बहुत सही कहा है आपने ..
प्रेरक प्रस्तुति ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सही बात ...अधिकार सब चाहते हैं , कर्तव्य भूल जाते हैं

Guzarish ने कहा…

सही कहा जी
तेरे मन में राम [श्री अनूप जलोटा ]

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

आभार !!

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सादर आभार माननीय !!